मेरे पापा नींद से क्यों नहीं उठ रहे…मुझे उनके पास जाने दो। ये शब्द थे सात वर्षीय आरुषि के, जो अपने पिता नरेश कुमार की देह को देख-देखकर बार-बार यही सवाल पूछ रही थी। परिवहन निरीक्षक नरेश कुमार के निधन की खबर जब उनके घर पहुंची तो पूरे घर में कोहराम मच गया। माहौल मातम में बदल गया, लेकिन इस दुःख को सबसे गहराई से महसूस किया उनकी मासूम बेटी आरुषि ने। गौरतलब है कि चालान काटने से गुस्साए ड्राइवर ने आरटीओ इंस्पेक्टर नरेश कुमार को कुचल दिया था।
जब मुक्तिधाम में नरेश कुमार का अंतिम संस्कार हो रहा था, तब भी आरुषि बार-बार पूछ रही थी, पापा कहां हैं? कब आएंगे?” दिनभर वह पिता को कॉल करती रही, लेकिन जब फोन नहीं उठा तो मासूमियत से अपने दादा से पूछ बैठी, दादा, पापा मेरा कॉल क्यों नहीं उठा रहे? अब तो उनकी ड्यूटी भी खत्म हो गई है…रोज तो इस समय घर आ जाते थे, आज क्यों नहीं आए?
तस्वीर से पूछ रही सवाल
हर दिन पापा के साथ पार्क जाने की आदत, उनके साथ हंसना-खेलना, छोटी-छोटी बातों पर मनुहार करना, ये सब अब अचानक छिन गया। जब उसने घर की दीवारों पर टंगी तस्वीरों की ओर देखा और बोली, पापा मुझे घुमाने कब ले जाएंगे? तो वहां मौजूद हर व्यक्ति की आंखें भर आईं। परिजन उसे समझाते रहे, बेटा, पापा ड्यूटी पर हैं, थोड़ी देर में आ जाएंगे। सभी के दिलों में यह टीस थी कि अब नरेश कुमार कभी लौटकर नहीं आएंगे।
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दिल को चीर रहे सवाल
आरुषि के सवाल हर किसी का दिल चीर रहे हैं। शायद वक्त ही उसे धीरे-धीरे समझा पाए कि उसके पापा अब किसी ड्यूटी पर नहीं, बल्कि सदा के लिए एक शांत यात्रा पर निकल चुके हैं। नरेश के परिवार में अब उनकी पत्नी डोली, मां बालीबाई, पिता घासीलाल, दो बेटियां आरुषि और ऋषिका तथा छोटे भाई वीरेंद्र का परिवार शोक में डूबा हुआ है। था।