जब मृत्यु का दुख संवाद मां को सुनाया जाएगा…
जन्मदात्री जननी,इस जीवन में तो तुम्हारा ऋण-परिशोधन करने के प्रयत्न का भी अवसर न मिला। इस जन्म में तो क्या, यदि अनेक जन्मों में भी प्रयत्न करूं, तो भी तुमसे उऋण नहीं हो सकता। जिस प्रेम व दृढ़ता के साथ तुमने इस तुच्छ जीवन का सुधार किया है, वह अवर्णनीय है। मुझे जीवन की प्रत्येक घटना का स्मरण है कि तुमने किस प्रकार अपनी देववाणी का उपदेश देकर मेरा सुधार किया है। तुम्हारी दया से ही मैं देश सेवा में संलग्र हो सका। धार्मिक जीवन में भी तुम्हारे ही प्रोत्साहन ने सहायता दी। जो कुछ शिक्षा मैंने ग्रहण की, उसका भी श्रेय तुम्हीं को है। जिस मनोहर रूप से तुम मुझे उपदेश करती थी, उसका स्मरण कर तुम्हारी मंगलमयी मूर्ति का ध्यान आ जाता है और मस्तक नत हो जाता है।
महान से महान संकट में भी तुमने मुझे अधीर नहीं होने दिया। सदैव अपनी प्रेम भरी वाणाी को सुनाते हुए मुझे सांत्वना देती रहीं। तुम्हारी दया की छाया में मैंने जीवनभर कोई कष्ट अनुभव न किया। इस संसार में मेरी किसी भोग विलास व ऐश्वर्य की इच्छा नहीं। केवल एक तृष्णा है, वह यह कि एक बार श्रद्धापूर्वक तुम्हारे चरणों की सेवा करके अपने जीवन को सफल बना लेता। किंतु यह इच्छा पूर्ण होती नहीं दिखाई देती और तुम्हें मेरी मृत्यु का दुख संवाद सुनाया जाएगा।
जन्मदात्री, वर दो कि अंतिम समय में मेरा ह्रदय किसी प्रकार विचलित न हो और तुम्हारे चरणों को प्रणाम कर मैं परमात्मा का स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करूं। काकोरी कांड के नायक
शहीद रामप्रसाद बिस्मिल
गोरखपुर जेल से मां मूलमती के नाम
फांसी से पहले बहादुर बनकर आएं और बेटे को बहादुर बनाकर जाएं…
मेरी प्यारी मां,4 जून को मुकदमे की सुनवाई खत्म हो गई और असेसरान की राय ले ली गई। यह सुनकर आपको बहुत दुख होगा कि उन्होंने क्या राय दी। मैं आपको हरगिज न लिखता, मगर मैं इसको अपना फर्ज खयाल करता हूं कि अपने मुकदमे के हालात से आपको काफी तौर पर आगाह कर दूं। मैं बचपन से ही आपकी सब्र-आजमा तबीयत देखता चला आ रहा हूं और आपको एक साबिर और खुदा की इच्छा पर राजी पाया।
अब सुनिए, आपको मालमू हो जाना चाहिए कि मेरे लिए साफ अलफाज में कह दिया गया है कि सजा-ए-मौत मिलेगी। मेरे लिए तो यह एक बड़े मजे की बात है। मेरे लिए इससे ज्यादा फख्र की बात कौनसी हो सकती है। मेरी मां से बढकऱ मेरे खानदान में कौन सी मां हो सकती है, जिसका बेटा जवांमर्दी और बहादुरी से सच्चाई के साथ कुरबानगाहे वतन पर कुरबान हो जाए। मेरे लिए सुकून और इत्मीनान यह है कि मैं खुद को निरपराध समझता हूं और आपके सब्र के लिए भी यह काफी है कि आपका बेगुनाह लडक़ा ऐसे मकसद की खातिर जान से जाएगा जो बड़ा ऊंचा और नेक व पाक है।
आप खुदा पर शाकिर रहिए। सब्र कीजिए और मेरे लिए दुआ फरमाइए और अगर मुझे शहादत की इज्जत देना मकसूद है, तो इसकी हिम्मत भी अदा करे और इम्तिहान के दिन मुझे बहादुर बनाए। आप कभी अफसोस न करें कि मैंने मजिस्ट्रेट ऐनुद्दीन साहब के कहने पर अमल न किया। क्या वह इस बात की गारंटी कर सकते थे कि मैं कभी न मरूंगा। उनके मुताबिक मैं अप्रूवर हो सकता था, मैं इकबाली बन सकता था, मगर दूसरों की जान फंसाने के लिए और अपनी जिंदगी बचाने के लिए, वह इंसान जो अपनी जिंदगी की खातिर ऐसी हरकत करता है, क्या वह आने वाली नस्नों के लिए बाइसे-नाज हो सकता है- नहीं, कभी नहीं।
मुझे इत्मीनान है- मुझे खुशी है कि आने वाली नस्ल मुझको डरपोक न कहेगी, बल्कि सच्चा और बहादुर कहेगी। अगर मौत से मुकाबला करना पड़े, तो आपको भी खुद को एक बहादुर मां साबित करना होगा। मैं आपसे एक बार जबानी बातचीत करना चाहता हूं। मगर बहादुर बनकर आएं और मुझको बहादुर बनाकर वापस जाएंगी।
शहीद अशफाकउल्ला खां
मां मजहरउलनिसा बेगम के नाम
मां, यह सुख और दुख एक ही समय भोगने जैसा है
मेरी प्यारी मां,इस बार मैंने अंग्रेजी में लिखना इसलिए चुना है क्योंकि इन रियासतों की जेलों में बंगाली में खत लिखना बड़ी उलझन भरा है। बहरहाल, आप मुझे हिंदी में ही जवाब भेजें और जल्दी भेजें। वो सात अंग्रेजी किताबें और 50 रुपए मुझे मिल गए हैं। जगत कथा सेंसर के लिए सीआईडी को भेज दी गई है। अब मुलाकात का मौका 9 नवंबर के बाद ही मिलेगा। मैं तो कहता हूं कि आप इस बार मत आइएगा। मां, मैं जानता हूं कि एक-दूसरे को देखना कैसा होता है, मगर यह सुख और दुख एक ही समय भोगने जैसा है। ओ मां, मैं जानता हूं कि आपने पूरी जिंदगी मुसीबतें उठाई हैं। आपने हमारे लडक़पन के दिनों से ही एक फरिश्ते की तरह हमारी देखभाल की और बहुत मुश्किल दौर में भी तमाम उलझनों और तनाव के बावजूद हमें राह दिखाई।
आपका बहुत चहेता शचींद्र
शचींद्रनाथ सान्याल
मां क्षीरोदवासिनी देवी सभी पत्र सुधीर विद्यार्थी के संकलन ‘बिदाय दे मा’ से साभार