Basant Kunj Yojana: बसंतकुंज में फिर लटका कब्जा मामला, आवंटियों को फिर मिला धोखा
Basant Kunj Yojna Plot Dispute Update: लखनऊ की बहुप्रतीक्षित बसंतकुंज योजना एक बार फिर विवादों में है। एलडीए की अतिक्रमण हटाने की कोशिश पुलिस बल के अभाव में विफल रही। आवंटियों को उम्मीद थी कि उन्हें उनका हक मिलेगा, लेकिन प्रशासनिक असमंजस और किसानों के विरोध ने एक और मौका छीन लिया।
बसंतकुंज : प्लॉट आवंटियों को फिर मिली निराशा, पुलिस न मिलने से खाली नहीं हो सके भूखंड
Basant Kunj Yojana Lucknow: राजधानी लखनऊ की चर्चित आवासीय योजना बसंतकुंज एक बार फिर विवादों में घिर गई है। एलडीए (लखनऊ विकास प्राधिकरण) द्वारा निर्धारित अतिक्रमण हटाओ अभियान सोमवार को इसलिए सफल नहीं हो सका क्योंकि मौके पर पुलिस बल नहीं पहुंचा। नतीजतन 272 प्लॉट आवंटियों को एक बार फिर निराशा का सामना करना पड़ा।
बसंतकुंज योजना के सेक्टर-ए के जिन 272 भूखंडों पर कब्जा हटाने की योजना थी, वहां एलडीए का दस्ता समय से पहुंच गया था। टीम में ओएसडी विपिन शिवहरे, उप सचिव अतुल कृष्ण सिंह और अधिशासी अभियंता संजीव गुप्ता सहित कई अधिकारी मौजूद थे। लेकिन पुलिस फोर्स के बिना अभियान शुरू करना संभव नहीं था। दिनभर टीम जागर्स पार्क में बैठी रही, पुलिस बल का इंतजार करती रही और अंततः शाम को वापस लौट गई।
पुलिस फोर्स की मांग पर भी नहीं मिली कार्रवाई
एलडीए सचिव विवेक श्रीवास्तव द्वारा पहले ही पुलिस कमिश्नरेट को पत्र भेजकर फोर्स की मांग की गई थी। अभियान की तारीख भी तय कर दी गई थी, लेकिन जब वास्तविक दिन आया, तो पुलिस की अनुपस्थिति ने पूरे अभियान को विफल कर दिया। ग्रामीणों ने मौके पर पहुंचकर विरोध जताया और भारी तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई।
थाने में पंचायत, किसानों ने रखी परिसंपत्तियों की मांग
किसानों ने विरोध को औपचारिक रूप देकर छंदोइया गांव से थाने तक मार्च निकाला। वहां किसान नेता मनीष यादव के नेतृत्व में पंचायत हुई, जिसमें गांववालों ने मांग रखी कि उनकी अधिग्रहित भूमि और परिसंपत्तियों का संयुक्त सर्वे कराया जाए, जिसके आधार पर मुआवजा तय हो। एलडीए अधिकारियों ने बताया कि पूर्व में सर्वे हो चुका है और मुआवजा वितरित किया जा चुका है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि सर्वे निष्पक्ष नहीं हुआ था।
पिछले कई हफ्तों से बसंतकुंज आवंटी जन कल्याण समिति के नेतृत्व में प्लॉट आवंटियों द्वारा लगातार प्रदर्शन किया जा रहा है। उनका कहना है कि उन्होंने वर्षों की मेहनत की कमाई से एलडीए के भरोसे प्लॉट खरीदे, लेकिन आज तक कब्जा नहीं मिल सका। एलडीए द्वारा पहले इस योजना को निरस्त भी कर दिया गया था, लेकिन आवंटियों के विरोध और बढ़ते दबाव के चलते फैसला वापस लेना पड़ा।
एलडीए के अर्जन अनुभाग की रिपोर्ट के अनुसार, किसानों के साथ कई दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन कोई भी ठोस समाधान नहीं निकल सका। यह भी सामने आया है कि ज़मीन पर कब्जा विवाद सुलझने में देरी होने से REARA, मान्य न्यायालय और मॉन्यूमेंट कोर्ट में एलडीए के खिलाफ आदेश पारित हो सकते हैं। इससे प्राधिकरण की साख और विश्वसनीयता को गहरा आघात लग सकता है।
2019 में खुले थे पंजीकरण, भारी उत्साह से हुई थी भागीदारी
बसंतकुंज योजना के अंतर्गत 72 से 200 वर्गमीटर के प्लॉटों के लिए 2019 में पंजीकरण शुरू किए गए थे। हजारों लोगों ने आवेदन किया और लॉटरी के माध्यम से 272 लोगों को प्लॉट आवंटित किए गए। एलडीए ने उनसे पूरी राशि भी जमा करा ली, लेकिन ज़मीन पर किसान कब्जा किए बैठे हैं, जिससे रजिस्ट्री भी नहीं हो सकी।
राजनीतिक दबाव और किसान यूनियन की भूमिका
इस विवाद को और जटिल बना दिया किसान यूनियन की उस गतिविधि ने, जिसमें एक बोर्ड/होर्डिंग लगाई गई। इसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उनके प्रतिनिधि नीरज सिंह, बीजेपी लखनऊ महानगर अध्यक्ष आनंद द्विवेदी, पूर्व अध्यक्ष मुकेश शर्मा, और पूर्व प्रत्याशी अंजनी श्रीवास्तव की तस्वीरें लगाकर यह संदेश दिया गया कि यह किसान यूनियन भाजपा का सहयोगी संगठन है। इस बोर्ड को लेकर बीजेपी नेताओं ने साफ कहा कि उन्होंने ऐसा कोई समर्थन नहीं दिया है और इस तरह के दावों से पार्टी का कोई संबंध नहीं है। इससे स्पष्ट है कि कुछ तत्व राजनीतिक दबाव बनाकर कब्जा हटाने के प्रयास को विफल कराना चाहते हैं।
यह सवाल अब गंभीर रूप से उठ रहा है कि जब एलडीए ने दिन तय कर अभियान की पूरी तैयारी की थी, तो पुलिस बल क्यों नहीं उपलब्ध कराया गया? क्या प्रशासनिक समन्वय की कमी है या फिर दबाव के चलते कोई रणनीतिक निर्णय लिया गया? इस मुद्दे पर अब न्यायिक और राजनीतिक दोनों ही स्तर पर चर्चाएं तेज हो सकती हैं।
आवंटियों का कहना है कि वे वर्षों से किराए पर रह रहे हैं, एलडीए से मिली जमीन को घर मान बैठे थे, लेकिन अब उन्हें न तो कब्जा मिला और न ही कोई वैकल्पिक समाधान। कई लोगों ने कोर्ट में याचिकाएं दायर कर दी हैं और कुछ ने रेरा में शिकायतें भी की हैं।
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