वैज्ञानिकों के मुताबिक आमतौर पर भूकंप की तरंगें पूर्व से पश्चिम की ओर जाती हैं। लेकिन तिब्बत में आए भूकंप की तरंगें उत्तर से दक्षिण की ओर गईं। वाडिया संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालयी रीजन में दक्षिण की ओर आबादी ज्यादा होने के कारण इस पैटर्न के भूकंप अत्यंत विनाश कर सकते हैं। 50 साल बाद आए इस प्रकार के पैटर्न वाला भूकंप चिंता का विषय बन गया है। लिहाजा वैज्ञानिकों ने इस प्रकार के भूकंपों को लेकर अधिक जागरुकता और सतर्कता अपनाने की सलाह दी है।
फिर जल्द आ सकता है ऐसा भूकंप
वैज्ञानिक डॉ. नरेश कुमार के मुताबिक, इस तीव्रता का यह भूकंप यदि इसी पैटर्न पर भारतीय हिमालय क्षेत्र में आता तो उसका नुकसान अधिक होता। तिब्बत क्षेत्र में आबादी कम होने की वजह से नुकसान भी कम हुआ। तिब्बत के मुकाबले भारतीय हिमालयी बेल्ट में अधिक आबादी और अधिक निर्माण हैं। हिमालय श्रंखलाओं के आर्क का विस्तार पूर्व से पश्चिम दिशा को है। हिमालय के भूगर्भ में इंडियन-यूरेशियन प्लेट की टेक्टोनिक बाउंड्री 25 से 30 किलोमीटर गहराई पर है, जिसमें इस समय रिसेटलमेंट चल रहा है। वैज्ञानिक मानते हैं कि अगले दो-तीन माह तक इस स्तर के भूकंप आए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
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वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के अध्ययन में तिब्बत के ताजा भूकंप का पैटर्न हिमालय के बाकी भूकंपों के मैकेनिज्म से कुछ अलग दिखा। ‘मैकेनिज्म’ अर्थ भूकंप के कारणों और प्रक्रिया से है। मसलन भूकंप के लिए जिम्मेदार टेक्टोनिक प्लेट की गति और उनके बीच की जटिलताएं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक पिछले दो दिनों में भूकंप की दो गतिविधियों को छोड़कर ज्यादातर हलचल 05 से 15 किमी की गहराई में हुई हैं। तिब्बती क्षेत्र में भूकंप की ताजा गतिविधि उत्तर से दक्षिण की ओर पाई गई है। किन्नौर में 1975 में आए 6.8 तीव्रता के भूकंप की तरंगें उत्तर से दक्षिण दिशा में फैली थीं, जो कौरिक चांगो फॉल्ट जोन की दिशा से मेल खाती हैं। यह इलाका तिब्बत की सीमा से लगता हुआ है, जो इसे भूकंप के लिए अधिक संवेदनशील बनाता है।