scriptMuharram 2025: लखनऊ में हिंदू संत ने किया मोहर्रम में मातम, इमाम हुसैन की कुर्बानी को दी श्रद्धांजलि, दिया एकता का संदेश | Hindu Saint Swami Sarang Performs Matam in Lucknow Muharram Procession, Sends Strong Message of Unity | Patrika News
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Muharram 2025: लखनऊ में हिंदू संत ने किया मोहर्रम में मातम, इमाम हुसैन की कुर्बानी को दी श्रद्धांजलि, दिया एकता का संदेश

Muharram Hindu Muslim Unity: लखनऊ में 10वीं मोहर्रम के मौके पर हिंदू धर्मगुरु स्वामी सारंग ने ताजिया जुलूस में शामिल होकर छुरियों से मातम किया। यह पहल धर्मनिरपेक्षता और एकता की मिसाल बन गई। उन्होंने इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद कर इंसानियत और भाईचारे का संदेश दिया।

लखनऊJul 06, 2025 / 03:06 pm

Ritesh Singh

लखनऊ में 10वीं मोहर्रम पर स्वामी सारंग का मातम, एकता का दिया संदेश फोटो सोर्स : Patrika

लखनऊ में 10वीं मोहर्रम पर स्वामी सारंग का मातम, एकता का दिया संदेश फोटो सोर्स : Patrika

Muharram Tazia Procession:  हिन्दू धर्मगुरु स्वामी सारंग ने आज ताजिया जुलूस में शामिल होकर 10वीं मोहर्रम के अवसर पर मातम किया और एकता भाईचारे का संदेश दिया। उन्होंने छुरियों से छलनी किए जाने वाले पारंपरिक मातम के माध्यम से इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद किया और भारतीय समाज में धार्मिक सहिष्णुता की मिसाल पेश की।

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स्वामी सारंग का अनूठा अंदाज

10वीं मोहर्रम के पवित्र अवसर पर, स्वामी सारंग लखनऊ में ताजिया जुलूस में पधारे। उनके इस कदम ने सभी को चौंका दिया, क्योंकि पारंपरिक रूप से यह कार्यक्रम केवल मुसलमानों की सहभागिता तक सीमित रहता है। स्वामी सारंग ने छुरियों से अपना छाती और पीठ पर मातम किया, जैसा कि शिया समुदाय में परंपरागत रूप से मातम के दौरान किया जाता है। उनके साथ मुस्लिम धर्मगुरु, इमामों और साधारण श्रद्धालुओं ने मिलकर इमाम हुसैन की तहरीर और विसाल की याद में नारे लगाए। समुदाय ने इस पहल को धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक बताया।
Muharram Hindu Muslim Unity

इमाम हुसैन की कुर्बानी और मातम की परंपरा

इमाम हुसैन ने ईर्ष्या, अत्याचार और अत्याचार के खिलाफ लड़ते हुए कर्बला में अपनी जान न्योछावर कर दी थी। 10वीं मोहर्रम के दिन उनकी शहादत को याद करते हुए उनके अनुयायी आम तौर पर खून देने वाली छुरी (ज़ंजीर) से अपनी छाती पर मातम करते हैं,कोफ़ियां उठाते हुए “हुसैन, हुसैन” के नारों से गूंजता जुलूस निकाला जाता है,शहीद की महिमा का वर्णन एवं दुआओं से इमाम हुसैन को श्रद्धांजलि दी जाती है। स्वामी सारंग ने आज इसी सिलसिले के अनुसार अपना मातम किया, यह बताने के लिए कि किसी धर्म विशेष की खातिर नहीं, बल्कि धार्मिक आस्थाओं की कद्र करना मुख्य है।

 एकता, भाईचारे और सामाजिक समरसता

मातम के दौरान स्वामी सारंग ने एकता भाईचारे और सामाजिक सौहार्द्र का संदेश भी दिया। उन्होंने कहा कि “हम यहाँ सिर्फ इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद करने आए हैं, क्योंकि उनकी शहादत इंसानियत और ईमानदारी की मिसाल है। किसी भी धर्म को अपमानित नहीं किया जा सकता”। स्वामी के मातम ने दर्शाया कि जब आस्था और मानवता साथ हों, तो धर्म और जाति की दीवारें टूट जाती हैं। आसपास मौजूद श्रद्धालुओं ने इस कदम की खूब सराहना की, यह कहते हुए कि स्वामी का यह कदम तारीफ के काबिल है।
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मुस्लिम समुदाय ने सराहा समरसता का संस्कार

ताजिया जुलूस के आयोजकों और इमामों ने स्वामी सारंग के मातम को साहसिक और प्रेरणादायक बताया। इमाम सईद अहमद ने कहा कि “स्वामी साहब का कदम देख कर मुझे बेहद खुशी हुई है। उन्होंने सच्चा इंसान धर्म निभाया है”।
आयोजक समिति के अध्यक्ष मौलाना शफीक ने कहा कि “हिन्दू-मुस्लिम एकता का यह जीवंत चित्र हमें प्रेरित करता है कि जब मानवता बुलाये तो धर्म जाति पीछे रह जाते हैं”।

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