Tiger in Lucknow: 40 बीघा जंगल, 22 कैमरा, आखिर क्यों पकड़ से दूर है “बाघ”, दहशत के 30 दिन
Tiger in Lucknow: लखनऊ- उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पिछले 30 दिन से एक बाघ दहशत फैला रहा है। लखनऊ के रहमानखेड़ में डेरा जमा चुका बाघ वन विभाग के लिए अब बड़ी चुनौती बन गया है। खबर में ये भी जानने की कोशिक करेंगे की बाघ को ट्रैंक्विलाइज के आखिर नियम क्या है ?
Tiger in Lucknow: लखनऊ- उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पिछले 30 दिन से एक बाघ दहशत फैला रहा है। वन विभाग की तमाम कोशिशें अबतक नाकाम साबित हुई है। ऐसा ही एक मामला राजस्थान के अलवर और दौसा में भी सामने आया है। बाघ अपनी टेरिटरी छोड़कर ग्रामीण क्षेत्रों में आ रहे हैं।
बाघ इतने शातिर है कि रेस्क्यू टीम के सामने शिकार करते हैं और ओझल हो जाते हैं। लखनऊ के रहमानखेड़ में डेरा जमा चुका बाघ वन विभाग के लिए अब बड़ी चुनौती बन गया है। अब दुधवा टाइगर रिजर्व से दो प्रशिक्षित हथिनी सुलोचना और डायना को बुलाया गया है।
Tiger in Lucknow: कुछ मुख्य सवाल ?
इस ऑपरेशन में 6 अलग-अलग टीम दिन रात जंगल की खाक छान रह है। इनमें कानपुर, पीलीभीत और लखनऊ की टीम शामिल है। बड़ा सवाल ये है कि आखिर बाघ अभी अभी भी पकड़ से दूर क्यों हैं ? क्या कारण है कि बाघ अपनी टेरीटरी छोड़ कर ग्रामीण और रिहायशी इलाकों में आ रहे हैं ? क्या बाघों की बढ़ती संख्या आपसी संघर्ष की ओर इशारा कर रही है ? क्या कहते हैं एक्सपर्ट ? खबर में ये भी जानने की कोशिक करेंगे की बाघ को ट्रैंक्विलाइज के आखिर नियम क्या है ?
लखनऊ रहमानखेड़ा में कैसे पहुंचा बाघ
वन विभाग के अनुसार लखनऊ के रहमानखेड़ा क्षेत्र में पिछले 30 दिन से दहशत का पर्याय बन चुका बाघ संभवतः दुधवा टाइगर रिज़र्व से आया है। बाघ के पगचिह्न कुशमौरा और अमेठिया सलेमपुर गांवों के पास पाए गए हैं। जिससे स्थानीय निवासियों में दहशत है। बाघ के रहमानखेड़ा क्षेत्र में आने का सही कारण नहीं पता चला है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि भोजन की तलाश, प्राकृतिक आवास का सिकुड़ना, या क्षेत्रीय संघर्ष इसके संभावित कारण हो सकते हैं। वन विभाग की टीम बाघ की सुरक्षित वापसी के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रही है।
2014 – दुधवा टाइगर रिजर्व
दुधवा के बाघ लखीमपुर खीरी जिले के गांवों में देखे गए। यह घटना लगभग 10 दिनों तक चली, जिसमें वन विभाग ने बाघ को जंगल में वापस भेजा।
2018-पीलीभीत टाइगर रिजर्व
पीलीभीत के एक बाघ ने पास के गन्ने के खेतों में शरण ली और कई बार मवेशियों पर हमला किया। यह बाघ लगभग 15 दिनों तक खेतों में छिपा रहा।
2020-बहराइच- कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य
कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य के पास एक बाघ मानव बस्ती में घुस गया। इस घटना में बाघ ने 2-3 मवेशियों को मार डाला, जिससे ग्रामीणों में डर फैल गया।
2022-सहारनपुर-गन्ने के खेतों में बाघ
सहारनपुर के पास जंगल से बाहर निकला बाघ गन्ने के खेतों में देखा गया। बाघ ने किसी इंसान को नुकसान नहीं पहुंचाया, और उसे सुरक्षित वापस लाया गया।
घटनाओं के चार प्रमुख कारण
भोजन की कमी जिसकी वजह से जंगल में शिकार की घटती संख्या बाघों को इंसानी इलाकों की ओर खींचती है। जंगलों के सिकुड़ने के कारण मानव अतिक्रमण और कृषि विस्तार के कारण बाघों के प्राकृतिक आवास घट रहे हैं। जंगलों को जोड़ने वाले गलियारे अवरुद्ध हो जाते हैं, जिससे बाघ अन्य क्षेत्रों की ओर बढ़ते हैं। प्रजनन के लिए बाघ अपनी टेरिटरी छोड़ सकते हैं।
बाघ को ट्रैंक्विलाइज करने के क्या हैं नियम ?
केवल प्रशिक्षित वन्यजीव विशेषज्ञ और पशु चिकित्सक ही ट्रैंक्विलाइजेशन कर सकते हैं। इस प्रक्रिया के लिए राज्य के वन विभाग से अनुमति लेना अनिवार्य है। ट्रैंक्विलाइजेशन के लिए डार्ट गन या एयर गन का उपयोग किया जाता है। बाघ से 20-30 मीटर की दूरी होनी चाहिए। ट्रैंक्विलाइज करने के लिए ज़ायलाज़ीन और केटामाइन जैसी दवाओं का उपयोग किया जाता है।
2022 में उत्तर प्रदेश के पीलीभीत टाइगर रिजर्व में एक बाघ गन्ने के खेतों में घुस गया था। वन विभाग ने ट्रैंक्विलाइजेशन और रेस्क्यू के लिए चार घंटे का ऑपरेशन चलाया। बाघ को सुरक्षित रूप से जंगल में वापस छोड़ दिया गया। इस घटना में सभी प्रोटोकॉल का पालन किया गया जिससे मानव और बाघ दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकी।
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