क्या है लट्ठमार होली की धार्मिक मान्यता
धार्मिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन मास की नवमी को राधारानी के धाम बरसाना में लट्ठमार होली खेली जाती है, और अगले दिन नंदगांव के कृष्ण के सखा नंदगांव से होली खेलने आते हैं। यह एक ऐसा अवसर होता है, जब राधा रानी अपनी सखियों के साथ नंदगांव पहुंचती हैं और भगवान कृष्ण से होली खेलने का आग्रह करती हैं। इस अवसर पर भगवान कृष्ण गोपी रूप में और राधा रानी ब्रज गोप के रूप में होली खेलते हैं।
कैसे खेली जाती है लट्ठमार होली
लट्ठमार होली का यह अद्वितीय रूप धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है, जहां पुरुषों को महिला की भूमिका में देखा जाता है। इस खेल में महिलाएं पुरुषों को लट्ठ से मारती हैं, और पुरुष सुरक्षा करते हैं। यह एक खास प्रकार का खेल है, जिसमें श्रद्धा और भक्ति का समावेश होता है। नंद गांव में होली के इस आयोजन में हजारों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक शामिल हुए। रंगों की बौछार के बीच भक्तों ने भगवान कृष्ण और राधा रानी के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित की। इसके साथ ही, नंद गांव में यह दिन श्रद्धा और उल्लास से भरा हुआ था, जहां लोग एक-दूसरे को रंगों में रंग कर आनंदित हो रहे थे। लट्ठमार होली की इस परंपरा को लेकर स्थानीय लोग और पर्यटक बेहद उत्साहित रहते हैं और यह आयोजन हर साल मथुरा की धार्मिक संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।
पांच हजार वर्षों से चली आ रही है परंपरा
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो नंदगांव की होली पिछले पांच हजार वर्षों से चली आ रही है और यह ब्रज की एक अनूठी परंपरा है। जब होलाष्टक शुरू होते हैं, तो बरसाने से राधा रानी के यहां से होली की शुरुआत होती है। बरसाने से नंदलाल को होली खेलने का निमंत्रण आता है, जिसके बाद नंदगांव के लोग बरसाने जाते हैं। बरसाने में रंग होली और लठमार होली दोनों खेली जाती हैं। लठमार होली और रंगोली के बाद ब्रज में एक पुरानी परंपरा के तहत फगुआ दिया जाता है। राधा रानी ने जब ठाकुर जी से फगुवा मांगा, तो ठाकुर जी ने कहा कि फगुआ लेने के लिए तुम्हें नंदगांव आना होगा। इसी परंपरा के तहत बरसाने से राधा रानी अपनी सखियों के साथ नंदगांव आती हैं।