मुरैना. शहद तगड़ा इम्यूनिटी बूस्टर है। इसकी डिमांड लगातार बढ़ रही है। किसी दौर में मधुमक्खियों के नैचुरल छत्तों को तोडकऱ घंटों के इंतजार के बाद उनका शहद जुटाया जाता था। जंगली इलाकों में रहने वाले जनजातीय लोग यह काम करते थे। अब शहद जुटाने का काम मधुमक्खी पालन के जरिए चंबल में भी किया जा रहा है। मध्यप्रदेश में मुरैना शहद उत्पादन का गढ़ बन चुका है। सरसों के फूलों से होने वाला शहद लाजवाब होता है। स्वाद और गुण में बेस्ट क्वालिटी निकलती है। यही वजह है कि यहां जब सरसों की फसल होने वाली होती है तो बी कीपर्स यहां डेरा डाल देते हैं। जब तक सरसों नहीं होती तब तक शीशम और बेर का शहद जुटाया जाता है। पूरे प्रदेश में शहद का उत्पादन सबसे ज्यादा मुरैना जिले में हो रहा है, क्योंकि यहां सरसों की खेती भी सबसे ज्यादा है। जिले के अलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश के साहरनपुर से लेकर बिहार व पंजाब तक के किसान अपने-अपने बाक्स लेकर मुरैना में शहद उत्पादन के लिए आते हैं और कृषि विभाग व जिला प्रशासन इन्हें बाक्स रखने के लिए जमीन तक मुहैया कराता है।
ऐसे तैयार होता है शहद मधुमक्खियां व्यापारियों के लिए शहद के रूप में सोना उगल रही हैं। बाहर से आए श्रमिक रामहेत ने बताया बहुत मेहनत है। लकड़ी के ये बॉक्स पहले तैयार कराए जाते हैं। बक्से दो बाई तीन के हैं। इनमें मोम शीट वाली 7-8 स्लाइड लगाई जाती हैं। इन बक्सों को खेत के किनारे खुली जमीन पर निश्चित दूरी पर रख दिया जाता है। बक्सों में मधुमक्खियां स्लाइड पर आती हैं। हर बक्से में एक रानी मक्खी होती है और बाकी श्रमिक मक्खियां। शहद जुटाने का काम श्रमिक मक्खियां ही करती हैं। ये मक्खियां मोम की शीट पर सेल तैयार करती हैं। इन्हीं सेल में वे फूल और फसल से रस चूसकर शहद इका करती हैं। इस प्रक्रिया में चार से पांच महीने का वक्त लग जाता है। मोम की स्लाइड एक तरह से मधुमक्खी का एक छत्ता बन जाता है। श्रमिक ने बताया कि शहद से भरी स्लाइड्स को मशीन के फ्रेम में फिट किया जाता है। फिर चकरी को 20 किमी/घंटे की स्पीड से 30 सेकेंड के लिए घुमाया जाता है। इससे स्लाइड से शहद छिटक कर ड्रम के सहारे बाल्टी में इका होता है।
मधुमक्खी पालक के साथ किसान को भी फायदा कृषि अधिकारी चंद्रभान श्योराण ने बताया कि मधुमक्खी पालक को भी फायदा एवं जिस खेत के नजदीक मधुमक्खी पालन किया जा रहा है उसके आसपास भी फायदा होता है। बेरोजगार युवकों को रोजगार के अवसर मिलते हैं। ये धारणा गलत है कि मधुमक्खी फसल की पैदावार को घटा देती है।
सरसों के शहद से बदल रही चंबल के किसानों की किस्मत मुरैना से लेकर श्योपुर और भिंड तक करीब 10 हजार किसानों की किस्मत शहद ने बदल डाली है। यह चमत्कार पिछले एक दशक में हुआ है। श्योपुर, मुरैना और भिंड में शहद उत्पादन प्रदेश में ज्यादा हो रहा है। अकेले मुरैना में सालाना 2 से 2.5 हजार टन शहद उत्पादन होता है, जिसे डाबर, वैद्यनाथ, और हिमालया जैसी कंपनियां इन इलाकों से करीब 30 करोड़ रुपए का शहद हर साल खरीद रहीं हैं। कई किसानों ने तो अपने खुद के शहद शोधन संयंत्र लगाकर अपने खुद के ब्रांड रजिस्टर्ड कराए हैं और इनका शहद देश के अलावा विदेशों में भी एक्सपोर्ट हो रहा है। इसके साथ ही जिन खेतों में मधुमक्खियों के डिब्बों को रखा जाता है, परागण की वजह से वहां पैदावार भी करीब 20 प्रतिशत बढ़ जाती है।
मस्टर्ड हनी की विदेशों में है डिमांड सरसों की फसल से प्राप्त मकरंद और पराग से बने शहद की विदेशों में बहुत मांग रहती है, क्योंकि वहां ब्रेड पर मक्खन के स्थान पर शहद लगाकर खाने का प्रचलन है। विशेषज्ञों के मुताबिक मस्टर्ड हनी में पौष्टिक तत्वों की भरमार होती है। इसमें ग्लूकोज की मात्रा 34 और फ्रक्टोज की मात्रा 38 फीसदी होती है। इसके अलावा इसमें सुक्रोज की मात्रा भी एक से 1.5 फीसदी तक होती है। इसलिए यहां के शहद को बहुत अधिक पंसद किया जाता है। यही कारण है कि सरसों फसल के सीजन के दौरान जमा किए गए शहद को खरीदने की चाहत देश की बड़ी-बड़ी कंपनियों को रहती है।
फैक्ट फाइल जिले में कुल 01 लाख 61 हजार 688 हेक्टेयर में फसल अंबाह 20,114 पोरसा 19,956 जौरा 24,514 मुरैना 42,231 पहाडगढ़़ 21,609 कैलारस 16,112 सबलगढ़ 17,152
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