Aankhon Ki Gustaakhiyan Review: विक्रांत मैसी-शनाया कपूर की ‘आंखों की गुस्ताखियां’ देखने से पहले जान लीजिए ये बातें …
Movie Review: विक्रांत मैसी और शनाया कपूर की फिल्म ‘आंखों की गुस्ताखियां’ को लेकर दर्शकों में काफी उत्साह है। फिल्म का नाम जितना रोमांटिक है, कहानी भी उतनी ही इमोशनल और दिल को छू लेने वाली लगती है। लेकिन क्या यह फिल्म वाकई दर्शकों की उम्मीदों पर खरी उतरती है या सिर्फ नाम से ही दिल जीतने की कोशिश करती है? अगर आप फिल्म देखने का प्लान बना रहे हैं, तो उससे पहले हमारा यह रिव्यू जरूर पढ़ लें क्योंकि हो सकता है ये फिल्म आपकी उम्मीद से कुछ अलग निकले।
निर्माता: मानसी बागला, वरुण बागला, विपिन अग्निहोत्री निर्देशक: संतोष सिंह बैनर: ज़ी स्टूडियोज़, मिनी फिल्म्स, ओपन विंडो फिल्म्स कहानी पर आधारित: रस्किन बॉन्ड की लघुकथा The Eyes Have It मुख्य कलाकार: विक्रांत मैसी, शनाया कपूर संगीत: विशाल मिश्रा गीतकार: मनोज मुंतशिर गायक: जुबिन नौटियाल रेटिंग: 3 स्टार
कहानी में कितना है दम
‘आंखों की गुस्ताखियां’ एक ऐसी लव स्टोरी है, जो दो अजनबियों की ट्रेन यात्रा से शुरू होती है। विक्रांत मैसी फिल्म में एक ऐसे संगीतकार का रोल निभा रहे हैं, जो देख नहीं सकता, लेकिन दुनिया को आवाज और एहसास से समझता है। इसी सफर में उसकी मुलाकात शनाया कपूर से होती है, जो एक थिएटर आर्टिस्ट है और अपने सपनों की तलाश में निकली है।
ट्रेन के छोटे से सफर में, दोनों के बीच एक खास रिश्ता बनता है। ये प्यार आंखों से नहीं, बल्कि खामोशी और दिल की बातों से जुड़ता है। बिना ज्यादा बोले ही दोनों एक-दूसरे को समझने लगते हैं।
विक्रांत मैसी ने एक बार फिर दिखा दिया कि वो कितने शानदार एक्टर हैं। उनका चेहरा, आवाज और हर इमोशन इतना सच्चा लगता है कि हर सीन में दिल छू जाता है। शनाया कपूर की ये पहली फिल्म है, और उन्होंने अपनी सादगी से अच्छा असर छोड़ा है। हालांकि उनके डायलॉग बोलने में थोड़ी कमी दिखती है, लेकिन उनकी मासूमियत फिल्म के मूड के साथ अच्छी तरह जुड़ती है। विक्रांत और शनाया के बीच की खामोश केमिस्ट्री फिल्म की सबसे खूबसूरत बात बन जाती है।
संतोष सिंह ने एक साधारण कहानी को भावनात्मक गहराई के साथ खूबसूरती से पेश किया है। ट्रेन के सीन और कैमरा वर्क प्रभावशाली हैं, हालांकि शुरुआत में गति थोड़ी धीमी लगती है। वहीं विशाल मिश्रा का संगीत दिल छूता है। जुबिन नौटियाल का टाइटल ट्रैक और मनोज मुंतशिर के बोल फिल्म को खास बनाते हैं। मानसी और वरुण बागला की यह फिल्म तकनीकी रूप से मजबूत है। सीमित सेटअप के बावजूद सिनेमेटोग्राफी और एडिटिंग बेहतरीन है, हालांकि पहला हाफ थोड़ा और कसाव मांगता है।
देखें या न देखें?
“आंखों की गुस्ताखियां” उन फिल्मों में से है जो शोर में नहीं, खामोशी में प्यार ढूंढती है। ये फिल्म उन लोगों के लिए है जो जानते हैं कि मोहब्बत सिर्फ बोलने से नहीं, महसूस करने से होती है।अगर आप गहराई से भरीरोमांटिक फिल्में पसंद करते हैं, तो यह फिल्म आपकी वॉचलिस्ट में जरूर होनी चाहिए। एक नजर में इश्क और एक सफर में पूरी कहानी।