राज्य सरकार ने 17 फरवरी को जारी एक आदेश में कहा कि पिछली सरकार के कार्यकाल में एमएसपी योजना के तहत खरीदी प्रक्रिया में कई गड़बड़ियां सामने आई हैं। इसमें नोडल एजेंसियों द्वारा किसानों से पैसे मांगने, खरीद प्रक्रिया में अवैध कटौती करने और पारदर्शिता के अभाव जैसे गंभीर आरोप लगे हैं। इस संबंध में एक व्यापक नीति तैयार करने के लिए एक छह सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है। यह कमेटी इस प्रक्रिया को सुधारने के लिए एक व्यापक नीति बनाएगी।
यह निर्णय महाराष्ट्र के विपणन मंत्री जयकुमार रावल के नेतृत्व में लिया गया है। प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (PM-AASHA) योजना के तहत नोडल एजेंसियों की संख्या में पिछली सरकार में बेतहाशा बढ़ोतरी की गई. इनमें से कई एजेंसियों का चयन तो नियमों को ताक पर रखकर किया गया।
रावल ने कहा कि अनियमितताएं करने वाली एजेंसियों के खिलाफ निश्चित रूप से कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने बताया कि पहले राज्य में केवल दो राज्य स्तरीय एजेंसियां (SLA) थीं। बाद में उद्धव ठाकरे की एमवीए सरकार के कार्यकाल के दौरान छह नए एसएलए को अनुमति दी गई। जबकि पिछली महायुति सरकार के दौरान यह संख्या बढ़कर 47 हो गई, जो देश में सबसे अधिक है।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कुछ एजेंसियों को योग्यता के बिना ही इसकी अनुमति मिल गई, और इनमें व्यापारी और नेता भी शामिल हैं। कई एजेंसियों के पास तो इस काम कोई अनुभव तक नहीं है। इसके अलावा, कई नोडल एजेंसियों के बोर्ड में एक ही परिवार के एक से अधिक सदस्य शामिल थे।
इस पूरे मामले में अब पूर्व विपणन मंत्री और शिवसेना (शिंदे गुट) के नेता अब्दुल सत्तार सवालों के घेरे में आ गए हैं, क्योंकि उनके कार्यकाल में ही इन एजेंसियों की संख्या में अचानक वृद्धि हुई थी। हालांकि, उन्होंने इस मामले में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
सरकार द्वारा गठित छह सदस्यीय कमेटी एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी, जिसमें एमएसपी योजना को लागू करने की प्रक्रिया और राज्य स्तरीय नोडल एजेंसियों के चयन पर सुझाव दिए जाएंगे। हालांकि इस फैसले ने महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी और डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे के बीच बढ़ती तनातनी की अटकलों को बल दे दिया है। पिछले कुछ महीनों में कई मुद्दों पर दोनों दलों बीजेपी और शिवसेना के बीच टकराव देखने को मिला है, और अब कमेटी के गठन का आदेश सत्तारूढ़ गठबंधन में नए तनाव को जन्म दे सकता है।