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मुंबई

‘हिंदी’ विरोध में ठाकरे भाई आए करीब, दो दशक बाद एक मंच पर बैठेंगे साथ, शिंदे सेना बोली- कोई फर्क नहीं पड़ेगा

Shiv Sena UBT-MNS Alliance : एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र में उठाया गया हिंदी-मराठी विवाद सब बीएमसी चुनावों के लिए है, लेकिन जनता अब इन बातों को समझ चुकी है।

मुंबईJul 01, 2025 / 01:23 pm

Dinesh Dubey

Uddhav Thackeray Raj Thackeray Alliance

उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे (Photo- IANS)

महाराष्ट्र में ‘हिंदी’ पर राजनीति नहीं थम रही है। विपक्ष खासकर ठाकरे भाईयों के भारी विरोध के बीच महायुति सरकार ने रविवार को प्राथमिक स्कूलों में तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी पढ़ाने से जुड़ा अपना फैसला वापस ले लिया। ठाकरे भाई इसे अपनी और मराठी भाषी जनता कि जीत बता रहे है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि हिंदी भाषा विवाद में दो दशक से अलग-अलग सियासी रास्ते पर चल रहे उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे काफी करीब आ गए है। यहां तक की दोनों भाई अब एक साथ एक मंच पर नजर आने वाले है।

‘हिंदी’ विरोध में ठाकरे भाईयों के जुड़े दिल!

उद्धव की शिवसेना (UBT) के सांसद संजय राउत ने कहा, “…मराठी जनता, राज ठाकरे, उद्धव ठाकरे, शरद पवार, कांग्रेस के नेता एक साथ आए और हिंदी भाषा को जबरदस्ती यहां थोपा जा रहा था, उस अध्यादेश को हमने हटा दिया। महाराष्ट्र के लिए यह विजय और उत्सव का दिन है। आगामी 5 तारीख को हम इस अध्यादेश के खिलाफ मोर्चा निकालने वाले थे, जिसकी अब आवश्यकता नहीं है। इसलिए हम 5 तारीख को मराठी विजय दिवस के रूप में विजयोत्सव का कार्यक्रम आयोजित करेंगे… इस दौरान उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे दोनों नेता एक साथ मंच साझा करेंगे…”
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शिंदे सेना ने साधा निशाना

ठाकरे भाईयों के साथ आने की खबर पर एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने दावा किया कि इससे कुछ बदलने वाला नहीं है। शिवसेना सांसद नरेश म्हस्के ने उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के एक साथ आने की अटकलों को खारिज करते हुए दोनों नेताओं पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि दोनों भाई हैं, और उनके एक होने या न होने से शिवसेना को कोई फर्क नहीं पड़ता।
नरेश म्हस्के ने कहा, हर बार जब बीएमसी चुनाव नजदीक आते हैं, कुछ लोग ‘मराठी खतरे में है’ या ‘मुंबई खतरे में है’ जैसे भावनात्मक नारे उछालते हैं। यह इनका पुराना एजेंडा है। उद्धव ठाकरे अब वही बातें दोहरा रहे हैं, जो पहले यूबीटी के एजेंट बोला करते थे। हमने उनके साथ काम किया है, इसलिए जानते हैं कि यह सब चुनावी रणनीति का हिस्सा है।

महाराष्ट्र में ऐसे बने नए सियासी समीकरण

बता दें कि महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में एक संशोधित आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया कि मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पहली से पांचवीं कक्षा तक हिंदी को आमतौर पर तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा। हालांकि, बढ़ते दबाव के बीच सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि हिंदी अनिवार्य नहीं होगी और छात्र किसी अन्य भारतीय भाषा को भी पढ़ सकते हैं।
इस सबके बीच, स्कूलों में हिंदी भाषा को पढ़ाए जाने के फैसले के बाद ठाकरे बंधुओं यानी उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने फडणवीस सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दोनों ने विरोध प्रदर्शन की चेतावनी देते हुए कहा कि वह मराठी अस्मिता से खिलवाड़ और हिंदी थोपने को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
हालांकि रविवार को महाराष्ट्र सरकार ने तीन-भाषा नीति के कार्यान्वयन से संबंधित दो सरकारी संकल्प (GR) वापस ले लिया। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने त्रिभाषा फार्मूले के कार्यान्वयन पर चर्चा के लिए डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने कि घोषणा की। उन्होंने कहा कि जब तक समिति अपनी रिपोर्ट पेश नहीं करती, सरकार ने दोनों- 16 अप्रैल और 17 जून के जीआर को रद्द कर दिया है।
ठाकरे भाईयों का करीब आना महाराष्ट्र के राजनीतिक समीकरणों में बड़ा संकेत माना जा रहा है। दरअसल, राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच फूट की कहानी शिवसेना के भीतर बढ़ते मतभेदों से शुरू हुई थी। 1989 में राज ठाकरे ने शिवसेना की विद्यार्थी शाखा से राजनीति में कदम रखा और छह वर्षों में महाराष्ट्र में पार्टी का मजबूत जनाधार खड़ा किया। इस दौरान युवाओं में उनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी।
लेकिन 2003 में महाबलेश्वर अधिवेशन में बालासाहेब ठाकरे ने उद्धव को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का निर्णय लिया, जिससे राज आहत हुए। उन्हें लगा कि पार्टी में उनकी मेहनत की अनदेखी हो रही है। 2005 तक उद्धव का दबदबा पार्टी में स्पष्ट रूप से दिखने लगा। जिसके चलते राज ठाकरे ने पार्टी में अपमान होने का आरोप लगाकर शिवसेना छोड़ दी। तब उन्होंने कहा था कि उनका विवाद शिवसेना या चाचा बालासाहेब से नहीं है, बल्कि उनके आसपास के पुजारियों से है। बाद में 9 मार्च 2006 को राज ठाकरे ने अपनी नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) बनाई।
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राज ठाकरे ने शिवसेना को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वह भारतीय विद्यार्थी सेना के अध्यक्ष थे और उस समय कांग्रेस का जबरदस्त वर्चस्व था। फिर भी उन्होंने शिवसेना को खड़ा किया और शिवसेना को गांव-गांव तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई।

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