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नागौर

कहीं किताबों में सिमट न जाएं अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे राजस्थान के राज्य स्तरीय पशु मेले

ग्रामीण अर्थव्यवस्था की धुरी और रोजगार देने में रहती अहम भूमिका, स्थानीय पशु नस्लों को रखते हैं जिंदा

नागौरFeb 03, 2025 / 11:38 am

shyam choudhary

Ramdev pashu mela
नागौर. ग्रामीण अर्थव्यवस्था की धुरी और स्थानीय ग्रामीण इलाकों की पहचान कहे जाने वाले पशु मेले वर्तमान में अपने अस्तित्व की लड़ाईलड़ते नजर आ रहे हैं। वर्षों पहले तत्कालीन शासकों ने जगह-जगह पशु मेलों का आयोजन शुरू किया था फिर आजादी के बाद राज्य सरकार ने यह जिम्मा उठाया और अब पशुपालन विभाग को इन आयोजनों की जिम्मेदारी दी हुई है। देश और विदेश में अपनी पहचान रखने वाले राजस्थान के इन मेलों में से दस मेले तो राज्य स्तरीय पशु मेलों का दर्जा रखते हैं। पिछले 20-25 साल से इन मेलों का दायरा सिमट रहा है। अगर सरकार ने इन मेलों को लेकर ठोस कदम नहीं उठाए तो अगली पीढिय़ों को इन मेलों के बारे में सिर्फ किताबों में ही पढ़ने को मिलेगा।
आंकड़े दे रहे गवाही

प्रदेश के प्रमुख 10 राज्य स्तरीय मेलों में वर्ष 1998-99 में पशुओं की आमद पौने 2 लाख से अधिक थी, वहीं वर्ष 2023-24 में 32,719 रह गई। इसी प्रकार 25 साल पहले सरकार को रवन्ना से 6,57,843 रुपए की आय हुई, जो वर्ष 2023-24 में 1.11 लाख रुपए रह गई।
पशु मेलों की दुर्गति के प्रमुख कारण

– राजस्थान में कृषि कार्य में पशुओं की उपयोगिता कम होना।

– तीन साल तक के बछड़ों के परिवहन पर रोक।

– पशु मेलों को लेकर सरकार की उपेक्षा।
पशुपालकों की सुरक्षा भी रामभरोसे

राज्य स्तरीय पशु मेलों में जो राज्य या राज्य से बाहर से अनेक पशुपालक पशु खरीदने आते हैं। वे लाखों रुपए के पशु खरीदकर लौटते हैं तो उन्हें और पशुओं को सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती है। ऐसे में अनेक बार उनके साथ मारपीट की घटनाएं हो जाती हैं जबकि उनके पास मेला अधिकारी की ओर से जारी रवन्ना सहित पशुपालन विभाग की ओर से जारी स्वास्थ्य जांच के प्रमाण पत्र भी होते हैं। ऐसे में पशुपालकों के मन में भय उत्पन्न होता है और वे मेलों में नहीं आते इससे भी मेलों की आवक पर असर पड़ता है।
राज्य स्तरीय मेलों में 25 साल में यूं घटी पशुओं की आमद

मेला – वर्ष 1998-99 में पशुओं की आमद – वर्ष 2023-24 में पशुओं की आमद

गोमतीसागर पशु मेला, झालरापाटन – 9004 – मेला निरस्त
गोगामेड़ी पशु मेला, हनुमानगढ़ – 19,120 – 1355

वीर तेजाजी पशु मेला, परबतसर – 23,560 – 3384

जसवंत प्रदर्शनी एवं पशु मेला, भरतपुर – 12,090 – 4543

कार्तिक पशु मेला पुष्कर – 21,280 – 8087
चंद्रभागा पशु मेला, झालरापाटन – 8575 – 1335

रामदेव पशु मेला, नागौर – 30,544 – 7463

शिवरात्रि पशु मेला, करौली – 19,572 – 448

मल्लीनाथ पशु मेला, तिलवाड़ा, बाड़मेर – 24,918 – 2921
बलदेव पशु मेला, मेड़तासिटी, नागौर – 9,858 – 3183

कुल – 1,78,521 – 32,719

दे सकते हैं व्यावसायिक मेलों का रूप

मेले हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। पशु मेलों में न केवल पशुओं की खरीद-फरोख्त होती है, बल्कि इन मेलों में अन्य ग्रामीण वस्तुओं का भी बड़ा बाजार लगता है और यहां से किसान और पशुपालक कृषि औजार, घरेलू उपकरण आदि बड़ी मात्रा में खरीदकर ले जाते हैं। इससे सैकड़ों लोगों को रोजगार मिलता है। यदि सरकार पशु मेलों को व्यावसायिक रूप दे तो इन मेलों की तस्वीर बदल सकती है और सरकार की आय भी।
एक्सपर्ट व्यू… सरकार गंभीरता से दे ध्यान

पशु मेलों की दुर्गति होने के दो बड़े कारण हैं। पहला जब तक तीन वर्ष तक के बछड़ों को बाहर ले जाने की अनुमति नहीं मिलेगी, तब तक नागौरी नस्ल को कोई नहीं पालेगा। दूसरा, कृत्रिम गर्भाधान से जो बछड़े पैदा हो रहे हैं, वो किसी काम के नहीं हैं। उन्हें कोई नहीं खरीदता यानी कृत्रिम गर्भाधान में नागौरी नस्ल को बचाने या सुधार पर कोई ध्यान नहीं है। सरकार को पशु मेलों को बचाने के लिए व्यावसायिक रूप देना चाहिए, ताकि मेले रोजगार का जरिया भी बने और अधिक से अधिक लोगों को लाभ हो। साथ ही पर्यटन से भी मेलों को जोड़ा जाए।
– उम्मेदाराम चौधरी, सेवानिवृत्त उपनिदेशक, पशुपालन विभाग

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