35 साल पुराना अनसुलझा मामला
1990 में, 20 वर्षीय बी.कॉम. छात्र वेंकटेश वैद्य, जो अपनी पढ़ाई के लिए छोटे-मोटे काम करते थे, की मुलाकात सिरसी में “प्रभावशाली” माने जाने वाले बी. केशवमूर्ति राव से हुई। राव ने वैद्य को सरकारी नौकरी दिलाने का वादा किया और 200 रुपये की रिश्वत मांगी। वैद्य ने अपने मजदूर माता-पिता की मेहनत की कमाई और एक बुजुर्ग से उधार लेकर राव को पैसे दिए। लेकिन, राव रातोंरात गायब हो गए। वैद्य ने पुलिस में शिकायत दर्ज की, पर मामला अनसुलझा रहा। वैद्य ने बताया, “उस समय 200 रुपये मेरे लिए बहुत बड़ी रकम थी। मैं रोया, लेकिन फिर जीवन में आगे बढ़ गया।”
शुरू हुई जांच
दो महीने पहले सिरसी ग्रामीण पुलिस स्टेशन का कार्यभार संभालने वाले इंस्पेक्टर मंजूनाथ गौड़ा ने स्टेशन के सबसे पुराने लंबित मामले की फाइल खोली। इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने कहा, “यह मामला 200 रुपये का था, जो उस समय बहुत मायने रखता था। मुझे यह दिलचस्प लगा।” गौड़ा ने अपने पुराने नेटवर्क के जरिए राव का पता लगाया, जो अब बेंगलुरु में एक कन्नड़ कार्यकर्ता के रूप में अकेले रह रहे थे।
कूरियर चाल से पकड़ा गया आरोपी
सिरसी पुलिस के लिए 400 किलोमीटर दूर बेंगलुरु जाना संभव नहीं था। संयोग से, कांस्टेबल मारुति गौड़ा, जो एक कबड्डी खिलाड़ी भी हैं, जून के अंत में पुलिस खेल प्रतियोगिता के लिए बेंगलुरु जा रहे थे। इंस्पेक्टर गौड़ा ने उन्हें राव का पता लगाने का जिम्मा सौंपा। मारुति ने कूरियर कर्मचारी बनकर राव को फोन किया और एक पार्सल लेने के बहाने बुलाया। जब राव वहां पहुंचे, मारुति ने उन्हें गिरफ्तार कर सिरसी ले आए।
माफी और केस खत्म
वैद्य, जो अब बेंगलुरु में एसबीआई से सेवानिवृत्त मुख्य प्रबंधक हैं, को पिछले हफ्ते पुलिस से फोन आया कि राव पकड़ा गया। वैद्य ने कहा, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि राव को फिर देखा भी जाएगा।” अदालत में राव ने वैद्य से माफी मांगी। वैद्य ने कहा, “उस समय 200 रुपये बड़ी रकम थी, लेकिन अब नहीं। उनकी उम्र 72 साल है, इसलिए मैंने मानवीय आधार पर उन्हें माफ कर दिया।” वैद्य के केस वापस लेने के फैसले के बाद अदालत ने मामले को बंद कर दिया।