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सेवा, सादगी और स्वावलंबन की मिसाल: पंजाब का बाबा आया सिंह रियाड़की कॉलेज

पंजाब का बाबा आया सिंह कॉलेज सेवा, सादगी और आत्मनिर्भरता सिखाता है। यहां छात्र पढ़ाई के साथ खेती, प्रबंधन और सेवा कार्य करते हैं, शिक्षा को जीवन से जोड़ते हैं। पढ़िए डॉ. मीना कुमारी की खास रिपोर्ट…

भारतApr 13, 2025 / 08:21 am

Shaitan Prajapat

Baba Aya Singh Riarki College of Punjab: देशभर में जहां शिक्षा को व्यापार के रैंप पर चढ़ाकर मुनाफा कमाया जा रहा है, वहीं पंजाब में एक ऐसा शिक्षण संस्थान भी है, जहां सेवा, सुमिरन, सहयोग, सादगी, शुचिता, ईमानदारी और परोपकार का व्यावहारिक पाठ पढ़ाया जाता है। कड़वे दौर में इस मीठे शिक्षण संस्थान का नाम बाबा आया सिंह रियाड़की कॉलेज, तुगलवाला है। इसकी स्थापना रियाड़की क्षेत्र के परोपकारी बाबा आया सिंह ने 1923 में पुत्री पाठशाला के रूप में की थी। बाबा आया जीवन के अंतिम अध्याय तक इस पाठशाला से जुड़े रहे। यह शाला जिला गुरदासपुर के उत्तर-पूर्व, दरिया व्यास के साथ पग-पग बहती अपरबारी दोआब नदी के किनारे रियाड़की क्षेत्र के गांव तुगलवाला में है।

निर्धन विद्यार्थियों से कोई फीस नहीं

चंडीगढ़ के सुरिंदर बांसल के अनुसार पाठ्य पुस्तकों के साथ-साथ यहां जीवन से साक्षात्कार की व्यावहारिक शिक्षा दी जाती है। नकल तथा निठल्लेपन की इस शाला में कोई जगह नहीं। संस्थान में एम.ए. तक की शिक्षा दी जाती है। लगभग पंद्रह एकड़ में फैले इस कॉलेज में दस एकड़ जमीन पर खेती की जाती है। जिसमें विद्यार्थियों का सहयोग रहता है। पांच एकड़ में छात्राओं का हॉस्टल है। जहां लगभग 2400 छात्राएं रहती हैं। संस्थान एक साल के लिए प्रति छात्रा से 800 रुपए लेती है। निर्धन विद्यार्थियों से कोई फीस नहीं ली जाती।
Baba Aya Singh Riarki College of Punjab

4,000 विद्यार्थियों की संख्या वाले संस्थान में पांच शिक्षक

यहां सभी कक्षाओं के सीनियर विद्यार्थी ही जूनियर कक्षाओं के विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं। यह सिलसिला एम.ए. से लेकर नर्सरी तक चलता है। 4,000 विद्यार्थियों की संख्या वाले इस संस्थान में मात्र पांच ही शिक्षक हैं। शिक्षण प्रक्रिया के पहले चरण में एक विद्यार्थी सौ विद्यार्थियों को एक समूह में पढ़ाता है, फिर 10-10 के अन्य समूहों को पढ़ाया जाता है। पढ़ाई में किसी कारण से पिछड़ रहे विद्या​​र्थियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। ऐसे छात्रों में से एक-एक छात्र को एक-एक शिक्षक विशेष मेहनत कर पढ़ाते हैं।

पढ़ाई, प्रोफेसर, प्रिंसिपल, क्लर्क का सारा काम संभालती हैं लड़कियां लड़कियां

संस्थान में ‘अपने हाथ अपना काज स्वयं ही संवारने’ की शिक्षा दी जाती है। कॉलेज की सभी लड़कियां पढ़ाई के साथ-साथ, प्रोफेसर, प्रिंसिपल, क्लर्क का सारा काम संभालती हैं। इसके लिए विद्यार्थियों की कमेटी है, जो सभी कार्यकर्ताओं को स्वयं सेवा, स्व-निर्भरता तथा सद्चित्त जैसे जीवन मूल्यों के प्रति सदैव सचेत करती है। खुद पर भरोसे से निर्णय लेना, आत्मनिर्भरता के लिए डेयरी, बागवानी, रसोई तथा खेती का सारा काम, हॉस्टल में उपयोग होने वाला अनाज तथा सब्जियां लड़कियां स्वयं ही उगाती हैं। संस्थान में बचत के उपाय भी निरन्तर खोजे जाते रहते हैं। इसमें संस्थान की अपनी आटा चक्की, धान छानने की मशीन, गन्ने के रस की मशीन, सौर ऊर्जा वाला पंप तथा बिजली प्रबंधन स्कूल का अपना है।
Baba Aya Singh Riarki College of Punjab
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गुरुवाणी के पाठ से होती है दिन की शुरुआत

दिन की शुरुआत गुरुवाणी के पाठ, शब्द कीर्तन तथा अरदास से होती है। दिन भर की साफ-सफाई, पढ़ाई तथा खाना बनाने की जिम्मेदारी भी विद्यार्थियों की ही होती है। प्रत्येक विद्यार्थी अपने बर्तन स्वयं साफ करता है। संस्थान में कोई राजपत्रित अवकाश नहीं होता। सभी धर्मों के गुरुओं, अवतारों के जन्म तथा शहीदी दिवस पूरे उत्साह से मनाए जाते हैं।
Baba Aya Singh Riarki College of Punjab
परीक्षा सत्र में गुरुनानक देव विश्वविद्यालय से किसी उड़न दस्ते की बजाय सरकारी प्रक्रिया पूरी करने के लिए मात्र एक ही व्यक्ति आता है। इस अधिकारी का काम केवल इतना होता है कि वह सील बंद लिफाफों को खोल सके। शेष सभी काम कॉलेज प्रबंध या विद्यार्थी करते हैं।

संस्थान की सभी परीक्षाओं का परिणाम शत-प्रतिशत रहता

कॉलेज के प्रिंसिपल और सबके लिए पितातुल्य स्वर्ण सिंह विर्क यहां चौबीस घंटे किसी भी काम के लिए उपलब्ध रहते हैं। कॉलेज का आर्थिक पक्ष कैसे मजबूत हो सके, इसके लिए कॉलेज परिसर में 12 गोबर गैस प्लांट बनवाए हैं, ताकि विशाल हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए भोजन बिना बाहरी लकड़ी अथवा गैस के पकाया जा सके।
Baba Aya Singh Riarki College of Punjab

नकल और निठल्लेपन के लिए कोई जगह नहीं

नकल मार कर, पैसे देकर सर्टिफिकेट, डिग्रियां लेकर ली गई शिक्षा का कोई अर्थ नहीं है। अगर शिक्षा चरित्र नहीं बनाती तो उस शिक्षा का कोई अर्थ नहीं। शिक्षा का असली अर्थ है मनुष्य को सच्चा इंसान बनाना। अगर शिक्षा बच्चों को हाथ से कर्म करना, संघर्ष करके ऊपर उठना, प्रकृति से प्रेम और अपने परिवेश के प्रति ज़िम्मेदार नागरिक नहीं बनाती तो उस शिक्षा का कोई अर्थ नहीं है।
-स्वर्ण सिंह विर्क, प्रिंसिपल,बाबा आया सिंह रियाड़की कॉलेज, तुगलवाला

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