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यौन उत्पीड़न की शिकार को बच्चा पैदा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते: बॅाम्बे हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

Bombay High Court Abortion Ruling: बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court Ruling) ने कहा ​है कि यौन उत्पीड़न की शिकार किसी लड़की को उसका अवांछित गर्भ जारी रखने के लिए मजबूर नहीं (Unwanted Pregnancy Forced Termination) किया जा सकता। कोर्ट ने 28 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति दी और कहा कि अगर किसी महिला […]

भारतJun 21, 2025 / 10:01 pm

M I Zahir

Bombay High Court Abortion Ruling

बॉम्बे हाईकोर्ट का यौन उत्पीड़न पीड़िता के गर्भ गिराने के मामले में अहम निर्णय। (फोटो: पत्रिका)

Bombay High Court Abortion Ruling: बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court Ruling) ने कहा ​है कि यौन उत्पीड़न की शिकार किसी लड़की को उसका अवांछित गर्भ जारी रखने के लिए मजबूर नहीं (Unwanted Pregnancy Forced Termination) किया जा सकता। कोर्ट ने 28 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति दी और कहा कि अगर किसी महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह उसके जीवन के “मार्ग” तय करने के अधिकार का उल्लंघन होगा। गर्भपात के चिकित्सीय समापन अधिनियम के तहत 20 सप्ताह के बाद गर्भपात निषिद्ध (Medical Termination of Pregnancy Act) है, लेकिन अदालत की अनुमति जरूरी है। भारत में गर्भपात के संबंध में गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम (Medical Termination of Pregnancy Act) के तहत 20 सप्ताह के बाद गर्भपात निषिद्ध है, जब तक कि उच्च न्यायालय इसकी अनुमति न दे। हालांकि, विशेष परिस्थितियों में, जैसे कि यौन उत्पीड़न का मामला, गर्भवती महिला के स्वास्थ्य को खतरा हो, या भ्रूण में असामान्यता हो, तब कोर्ट गर्भपात की अनुमति दे सकता है।

यह कदम महिला के स्वतंत्रता-अधिकारों की रक्षा की दिशा में अहम कदम

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 12 वर्षीय यौन उत्पीड़न पीड़िता के मामले में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया। इस निर्णय में अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि कोई लड़की, खासकर जो यौन उत्पीड़न का शिकार हुई है, उसे उसके अवांछित गर्भ को जारी रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। यह कदम न्यायालय की ओर से महिला के स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा को सुनिश्चित करने के रूप में देखा गया।

12 वर्षीय लड़की को 28 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति

यौन उत्पीड़न का शिकार हुई 12 वर्षीय लड़की ने अपनी याचिका में कहा था कि वह अवांछित गर्भ को जारी रखने के बजाय उसे समाप्त करना चाहती है। इस मामले को लेकर अदालत के समक्ष मेडिकल विशेषज्ञों की एक टीम ने अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें कहा गया कि लड़की की उम्र और भ्रूण के विकास के चरण के कारण गर्भपात की प्रक्रिया अत्यधिक जोखिमपूर्ण हो सकती है।

ऐसा करना उसे अपने जीवन के मार्ग तय करने के अधिकार से वंचित कर देगा

न्यायमूर्ति नितिन साम्ब्रे और सचिन देशमुख की पीठ ने 17 जून 2025 को दिए गए आदेश में कहा कि, “यह अदालत पीड़िता को उसकी इच्छा के खिलाफ गर्भधारण करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती, क्योंकि ऐसा करना उसे अपने जीवन के मार्ग को तय करने के अधिकार से वंचित कर देगा।” अदालत ने यह भी कहा कि इस प्रकार की कठिन परिस्थितियों में न्यायपालिका को संवेदनशील और सही निर्णय लेना चाहिए, जिसमें महिला के अधिकारों की रक्षा की जाए।

गर्भपात के लिए सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन

बॉम्बे हाईकोर्ट ने गर्भपात की अनुमति देते हुए यह स्पष्ट किया कि गर्भपात के दौरान सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन किया जाएगा। बाल रोग विशेषज्ञ और एक विशेष मेडिकल टीम की ओर से गर्भपात प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा, ताकि किसी भी प्रकार की जटिलता से बचा जा सके। इस तरह की घटनाओं में महिलाओं की सुरक्षा और स्वास्थ्य के मामलों में सावधानी बरतना बहुत जरूरी होता है।

महिला के अधिकार और अवांछित गर्भावस्था: एक संवेदनशील मामला

अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा कि, “हमें इस तथ्य के प्रति भी समान रूप से संवेदनशील होना चाहिए कि एक महिला अपनी वैवाहिक स्थिति के बावजूद अपनी इच्छा से गर्भवती हो सकती है, हालांकि, अवांछित या आकस्मिक गर्भावस्था के मामले में बोझ अनिवार्य रूप से गर्भवती महिला/पीड़ित पर ही पड़ता है।”

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