Supreme Court का बड़ा फैसला, बच्चे नहीं करेंगे माता-पिता की सेवा तो वापस ले सकते है संपत्ति
Supreme Court on Elderly Act: सुप्रीम कोर्ट (SC) ने एक महत्वपूर्ण फैसला लिया, अगर बच्चे माता-पिता की देखभाल नहीं करते हैं,तो माता-पिता की ओर से बच्चों के नाम पर की गई संपत्ति की गिफ्ट डीड को रद्द किया जा सकता है।
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बुजुर्गों के लेकर बहुत अहम फैसला सुनाया है। यदि संतान ने बुजुर्ग माता-पिता की बुढ़ापे में सेवा नहीं की तो वे बच्चों को सशर्त उपहार में दी गई संपत्ति वापस भी ले सकते हैं। वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण एवं कल्याण कानून के तहत बना ट्रिब्युनल को ऐसे संपत्ति हस्तांतरण को शून्य घोषित करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश से संबंधित एक मामले में हाईकोर्ट की खंडपीठ के निर्णय को पलटते हुए यह व्यवस्था दी है। जस्टिस सीटी. रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने कहा कि यदि कोई वरिष्ठ नागरिक किसी व्यक्ति को इस शर्त पर संपत्ति हस्तांतरित करता है कि वह उनकी सेवा करते हुए बुनियादी सुविधाएं देगा लेकिन संपत्ति लेने वाला इस शर्त का उल्लंघन करता है तो संपत्ति का हस्तांतरण धोखाधड़ी माना जाएगा। वरिष्ठ नागरिक चाहे तो इसे शून्य घोषित किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में ट्रिब्युनल बुजुर्ग माता-पिता को संपत्ति वापस हस्तांतरित करने और बेदखली का आदेश दे सकता है। वरिष्ठ नागरिकों द्वारा उपहार में दी गई संपत्ति को वापस करने की ट्रिब्युनल की शक्ति के बिना, बुजुर्गों को लाभ पहुंचाने वाले कानून के उद्देश्य ही विफल हो जाएंगे। मध्यप्रदेश की उर्मिला दीक्षित ने अपने बेटे सुनील शरण दीक्षित को इस शर्त के साथ संपत्ति उपहार में दी थी कि वह उनके सेवा-सुश्रुषा करेगा। बेटे की उपेक्षा और दुर्व्यवहार के कारण मां ने ट्रिब्युनल में गिफ्ट डीड रद्द करने का केस किया तो वह जीत गईं लेकिन हाईकोर्ट खंडपीठ ने इस आदेश को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए बने कानून की उदार व्याख्या की जानी चाहिए। कोर्ट ने मध्यप्रदेश प्रशासन को निर्देश दिए कि 28 फरवरीतक उर्मिला दीक्षित को संपत्ति का कब्जा वापस दिलाएं।
बुजुर्गों को कैसे होगा फायदा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब कानून के मकसद को पूरा करने के लिए उदार दृष्टिकोण ( liberal view) अपनाने की जरूरत थी तो मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने कानून पर ‘सख्त नजरिया’ अपनाया। इस एक्ट के सेक्शन 23 में बताया गया है कि इस अधिनियम के शुरू होने के बाद, किसी भी वरिष्ठ नागरिक ने अपनी प्रॉपर्टी और गिफ्ट अपने बच्चों को ट्रांसफर अगर किए हैं तो यह इस शर्त के साथ होंगे कि वो उनका पूरी तरह से ख्याल रखें, उनकी जरूरतों को पूरा करें और अगर वो ऐसा करने में सफल नहीं हो पाते हैं तो उन की संपत्ति का ट्रांसफर शून्य घोषित किया जाएगा, साथ ही ऐसे केस में संपत्ति ट्रांसफर धोखाधड़ी या जबरदस्ती या अनुचित प्रभाव के तहत किया गया माना जाएगा।
क्या था MP उच्च न्यायालय का फैसला?
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने कहा था कि गिफ्टी डीड में एक क्लॉज़ होना चाहिए जो बच्चों को माता-पिता की देखरेख करने के लिए बांध दें, लेकिन बच्चों को माता-पिता की देखभाल न करने पर प्रॉपर्टी वापस नहीं ली जा सकती है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले को खारिज कर दिया है।