वित्त मंत्री पर तंज और आम आदमी की आवाज
अपने भाषण की शुरुआत में आप सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि वित्त मंत्री जी हर बार मेरे सवालों का जवाब निजी तंज से देती हैं, कभी कहती हैं कि मैं चार्टर्ड अकाउंटेंट नहीं हूं, कभी मेरी डिग्री पर सवाल उठाती हैं। मैं उनका सम्मान करता हूं, वे अनुभव, ओहदे और उम्र में मुझसे बड़ी हैं। लेकिन आज मैं उस डिग्री को किनारे रखकर, एक आम आदमी की तरह यह दिखाना चाहता हूं कि जन्म से मृत्यु तक सरकार हर कदम पर टैक्स वसूलती है, बिना यह सोचे कि आम आदमी को बदले में क्या सुविधा मिल रही है।
टैक्स के बदले सुविधाएं कहां?
सांसद राघव चड्ढा ने सवाल उठाया कि इस टैक्स के बदले देशवासियों को क्या मिल रहा है? उन्होंने पूछा- ”क्या सरकार हमें मुफ्त या क्वॉलिटी वाली स्वास्थ्य सेवाएं देती है? क्या हमारे पास बेहतर सड़कें, किफायती शिक्षा या सुरक्षित पब्लिक ट्रांसपोर्ट है?” उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “हम भारत में विकसित देशों की तरह टैक्स भरते हैं, लेकिन सुविधाएं अविकसित देशों की तरह हैं।” जिंदगी के हर पड़ाव पर टैक्स की मार
राघव चड्ढा ने अपने भाषण में जिंदगी के हर पड़ाव पर टैक्स की मार को विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा, “जिस पल एक बच्चा जन्म लेता है, उसी पल से सरकार टैक्स वसूलने के लिए तैयार खड़ी होती है और जब तक एक परिवार उसकी मृत्यु पर शोक मना रहा होता है, तब भी सरकार टैक्स वसूलने में पीछे नहीं हटती।”
‘लाइफ साइकिल टैक्सेशन मॉडल’ का खुलासा
उन्होंने बताया कि हमारी मेहनत की कमाई का एक बड़ा हिस्सा टैक्स चुकाने में चला जाता है। सवाल यह है कि जनता को टैक्स के बदले क्या मिल रहा है?” राघव चड्ढा ने देश की मौजूदा टैक्स व्यवस्था को ‘लाइफ साइकिल टैक्सेशन मॉडल’ करार दिया और जीवन के आठ चरणों में लगने वाले टैक्स का विवरण सदन के सामने रखा।
पहला चरण: जन्म के साथ टैक्स की शुरुआत
आप सांसद राघव चड्ढा ने पहले चरण के बारे में बताया, “जब एक बच्चा जन्म लेता है, तो उसकी आंखें खुलने से पहले ही टैक्स शुरू हो जाता है। नवजात के लिए वैक्सीनेशन पर 5% जीएसटी लगता है। अस्पताल के कमरे का किराया अगर 5,000 रुपए से ज्यादा है, तो 5% जीएसटी। बेबी केयर आइटम्स पर 5% से 18% जीएसटी। जन्म प्रमाणपत्र के लिए रजिस्ट्रेशन फी और उस पर भी जीएसटी।” उन्होंने हल्के अंदाज में कहा, “अगर जन्म की खुशी में मिठाई या ब्रांडेड चॉकलेट बांटी जाती है, तो उस पर भी 5 से 28 फीसदी तक का जीएसटी चुकाना पड़ता है।”
दूसरा चरण: बचपन में टैक्स का बोझ
वहीं, जन्म के बाद बचपन की स्टेज का जिक्र भी उन्होंने अपने भाषण में किया। राघव चड्ढा ने बताया, “माता-पिता बेबी फूड खरीदते हैं तो उस पर 18% तक जीएसटी लगता है। डायपर्स पर 12% जीएसटी। बेबी स्ट्रॉलर पर 5% से 12% जीएसटी। बच्चों के खिलौनों पर भी 12% जीएसटी, चाहे वो पेडल टॉयज हों।”
स्कूलिंग और टैक्स की चपेट
उन्होंने आगे कहा, “बच्चे का पहला हेयरकट या मुंडन- सैलून में 18% जीएसटी। पहली बर्थडे की फोटोशूट पर 18% जीएसटी। बर्थडे पार्टी में कैटरिंग पर 18% जीएसटी। बर्थडे केक पर भी 18% जीएसटी। जब बच्चा स्कूल जाने लगता है, तब भी टैक्स पीछा नहीं छोड़ता। यूनिफॉर्म, जूते, स्कूल बैग, लंच बॉक्स- इन सब पर जीएसटी। स्टेशनरी आइटम्स पर 18% जीएसटी लगाया जाता है।”
तीसरा चरण: किशोरावस्था और टैक्स का जाल
तीसरी किशोरावस्था में टैक्स का बोझ और बढ़ जाता है। उन्होंने कहा, “यह जीवन का सबसे मस्त और बेफिक्री का समय होता है। इस उम्र में बच्चा पहला स्मार्टफोन खरीदता है, उस पर जीएसटी। अगर फोन महंगा या विदेशी है, तो इम्पोर्ट ड्यूटी। फोन रिचार्ज पर जीएसटी। ब्रॉडबैंड इंटरनेट पर जीएसटी लगता है। नेटफ्लिक्स, स्पॉटिफाई, वीडियो गेम्स की सब्सक्रिप्शन पर जीएसटी देना पड़ता है। दोस्तों के साथ मूवी देखने जाएं, एंटरटेनमेंट टैक्स, पॉपकॉर्न और कोल्ड ड्रिंक्स पर जीएसटी देना पड़ता है।” वाहन और टैक्स की भरमार
उन्होंने आगे कहा, “18 साल की उम्र में पहली बाइक या स्कूटर खरीदते हैं, तो उस पर भी जीएसटी, रोड टैक्स, रजिस्ट्रेशन फी, के अलावा इंश्योरेंस और व्हीकल एक्सेसरीज पर भी जीएसटी भरना पड़ता है।”
चौथा चरण: उच्च शिक्षा में टैक्स की मार
सांसद राघव चड्ढा ने कहा, “चौथे चरण में यानी उच्च शिक्षा के दौरान भी टैक्स की मार जारी रहती है। प्राइवेट कॉलेज की ट्यूशन फी पर जीएसटी लगता है। हॉस्टल या पीजी का रेंट भर रहे हैं, तो उस पर जीएसटी लगता है। स्टूडेंट लोन की प्रोसेसिंग फी पर जीएसटी। किताबों से लेकर लैपटॉप तक, हर चीज पर जीएसटी लगता है।”
विदेशी पढ़ाई और अतिरिक्त टैक्स
उन्होंने कहा, “वहीं, जब तक आप ग्रेजुएट होते हैं, तब तक आपको एहसास हो जाता है कि सरकार आपकी मेहनत की कमाई को अपने पास रखने नहीं देती। अगर आप विदेश में पढ़ाई करते हैं, तो फॉरेन रेमिटेंस पर टीसीएस (टैक्स कलेक्टेड एट सोर्स) देना पड़ता है।”
पांचवां चरण: करियर शुरू होते ही टैक्स का जंजाल
पांचवें चरण में करियर की शुरुआत होते ही पड़ने वाले टैक्स की मार को भी राघव चड्ढा ने समझाया। उन्होंने कहा, “यह डायरेक्ट टैक्स का जंजाल है। पहली नौकरी लगती है, तो स्लैब रेट के हिसाब से टीडीएस काटा जाता है। इनकम टैक्स वसूला जाता है। पहली सैलरी मिलती है, तो माता-पिता या दोस्तों को खाने या पिक्चर दिखाने ले जाएं, उस बिल पर भी सरकार जीएसटी वसूलती है। सैलरी बढ़ती है, तो स्लैब के हिसाब से इनकम टैक्स बढ़ता है। वर्क फ्रॉम होम में इंटरनेट बिल्स, लैपटॉप, ब्रीफकेस, इन सब पर जीएसटी।”
निवेश और टैक्स का बोझ
उन्होंने कहा, “अगर निवेश करते हैं, तो फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट की खरीद पर सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स, ब्रोकरेज पर जीएसटी, फाइनेंशियल एडवाइजरी पर जीएसटी। मुनाफा होने पर कैपिटल गेन टैक्स। हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस प्रीमियम पर भी जीएसटी भरना पड़ता है।”
छठा चरण: सुखी जीवन पर टैक्स की छाया
छठी अवस्था का जिक्र करते हुए आप सांसद ने कहा, “प्रमोशन या अप्रेजल से सैलरी बढ़ती है, टैक्स स्लैब बढ़ता है, परफॉर्मेंस बोनस पर भी टैक्स। कार खरीदते हैं, जीएसटी, रोड टैक्स, इंश्योरेंस, रजिस्ट्रेशन फी। पेट्रोल-डीजल पर वैट, एक्साइज ड्यूटी और सेस, और सड़क पर ड्राइविंग के लिए टोल टैक्स। फिर, घर खरीदने की प्रक्रिया में भी टैक्स की मार है। स्टैंप ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन फी, कंस्ट्रक्शन सर्विसेज पर जीएसटी, सीमेंट, मार्बल, स्टील जैसे मटेरियल्स पर जीएसटी। सालाना प्रॉपर्टी टैक्स और हाउस टैक्स। अगर आप घर बेचते हैं, तो कैपिटल गेन्स टैक्स। शादी के मौके पर भी टैक्स से राहत नहीं मिलती। बैंक्वेट हॉल बुकिंग, कैटरिंग सर्विसेज, सोने के गहने, कपड़े, वेडिंग इनविटेशन कार्ड से लेकर ब्राइडल मेकअप और हनीमून ट्रैवल तक, हर चीज पर जीएसटी।” सातवां चरण: रिटायरमेंट में भी टैक्स
सांसद राघव चड्ढा ने रिटायरमेंट के बाद भी लगने वाले टैक्स का जिक्र किया। उन्होंने कहा, “इस उम्र में इंसान आरामदायक जीवन चाहता है। लेकिन, पेंशन पर टैक्स लगाया जाता है। ब्याज से होने वाली आय पर टैक्स भरना पड़ता है। दवाइयों, हेल्थकेयर सर्विसेज पर टैक्स भरते हैं। लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर जीएसटी देना पड़ता है। प्रॉपर्टी की वसीयत तैयार करने पर लीगल फीस और जीएसटी। वसीयत के रजिस्ट्रेशन पर भी स्टैंप ड्यूटी भरनी पड़ती है।”
आठवां चरण: मृत्यु के बाद भी टैक्स का पीछा
राघव चड्ढा ने जोर देकर कहा, “मृत्यु के बाद भी टैक्स पीछा नहीं छोड़ता। अखबार में शोक-संदेश छपवाने पर जीएसटी। अंतिम संस्कार में देसी घी, चंदन, नारियल, इत्र पर जीएसटी। जमीन या प्रॉपर्टी पर टैक्स। प्रॉपर्टी को परिवार में ट्रांसफर करने पर लीगल फी और जीएसटी। अगर परिवार वाले इसे आगे बेचते हैं, तो कैपिटल गेन्स टैक्स, स्टैंप ड्यूटी, और रजिस्ट्रेशन फी चुकानी पड़ती है। इसके अलावा जमीन या प्रॉपर्टी की म्युटेशन पर कई राज्यों में स्टॉम्प ड्यूटी भी चुकानी पड़ती है।”
टैक्स का अर्थव्यवस्था पर असर
आप सांसद राघव चड्ढा ने टैक्स के अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर का भी संसद में जिक्र किया। उन्होंने पूछा, “इतना टैक्स देने के बाद सरकार हमें देती क्या है? टैक्स सरकार के लिए जरूरी हैं, लेकिन, सवाल यह है कि क्या ये टैक्स हमारी इकॉनमी को बढ़ा रहे हैं या हमारी इकॉनमी को खा रहे हैं? हमारी जिंदगी बेहतर हो रही है या बदतर? टैक्स की वजह से आमदनी घट रही है, खपत गिर रही है, डिमांड नहीं बढ़ रही, प्रोडक्शन गिर रहा है। इकॉनमी का चक्का धीमा हो गया है।”
गरीबों पर टैक्स और समाधान का सुझाव
उन्होंने कहा, “इस देश में 80 करोड़ जनता 5 किलो फ्री राशन के सहारे जी रही है। लेकिन, उनसे भी जीएसटी लिया जाता है। गरीब से गरीब आदमी भी जीएसटी देता है। टैक्स की वजह से एफएमसीजी की सेल्स घट रही है, स्टॉक्स गिर रहे हैं, खपत घट रही है, नई गाड़ियों की सेल सिकुड़ रही है। सरकार को जीएसटी कम करना चाहिए। अगर जीएसटी कम करेंगे, तो जनता की जेब में पैसा आएगा। पैसा आएगा, तो मांग बढ़ेगी, खपत बढ़ेगी और इकॉनमी का चक्का चलेगा।”