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चीता प्रोजेक्ट बना तेंदुओं के लिए संकट, मनुष्यों-वन्यजीवों के बीच बढ़ रहा टकराव

Cheetah project: मध्य प्रदेश नीमच में चीता परियोजना (Cheetah project) ने तेंदुओं के प्राकृतिक आवास को प्रभावित कर दिया है। इसके कारण अब इलाके में मनुष्यों-वन्यजीवों के बीच बढ़ रहा टकराव बढ़ रहा है।

नीमचMar 03, 2025 / 09:49 am

Akash Dewani

Cheetah project has become a crisis for leopards in Neemuch madhya pradesh
Cheetah project: मध्य प्रदेश नीमच के गांधीसागर क्षेत्र में चीता पुनर्वास परियोजना (Cheetah project) ने तेंदुओं के प्राकृतिक आवास को प्रभावित कर दिया है। क्षेत्र में तेंदुओं की संख्या बढ़ने से उनके बीच संघर्ष की घटनाएं बढ़ गई हैं, जिससे वे मानव बस्तियों की ओर बढ़ने को मजबूर हो रहे हैं। रामपुरा क्षेत्र में तेंदुओं द्वारा लोगों पर हमले की घटनाएं बढ़ने लगी हैं। वन विभाग इस समस्या के समाधान के लिए तेंदुओं को सुरक्षित स्थानों पर भेजने की योजना पर काम कर रहा है।

तेंदुओं की संख्या में बढ़ोतरी बनी चुनौती

नीमच और मंदसौर जिले से लगे गांधीसागर क्षेत्र में तेंदुओं की संख्या में इजाफा हुआ है। चीता परियोजना के तहत लगाए गए सीमांकन (वायर फेंसिंग) के कारण तेंदुओं को अपने प्राकृतिक आवास छोड़ने पड़ रहे हैं। वन विभाग हर चार साल में वन्यजीवों की गणना करता है, लेकिन कोरोना महामारी के कारण यह प्रक्रिया विलंबित हो गई। वन विभाग के अनुसार, तेंदुओं की संख्या में हुई वृद्धि के कारण मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामले तेजी से बढ़े हैं।
इस चुनौती को देखते हुए तेंदुओं को अन्य जिलों में स्थानांतरित करने की योजना बनाई जा रही है। इसके लिए अन्य संभावित आवासों की पहचान की जा रही है। नीमच और मंदसौर जिले की वन विभाग की टीमें इस क्षेत्र में तेंदुओं की निगरानी कर रही हैं।
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रोज़मर्रा की समस्या से किसान परेशान

वन विभाग के अनुसार, नीमच जिले में करीब 18,000 नीलगाय और रोजड़ हैं, जो किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। सरकार ने क्षेत्र के अनुविभागीय अधिकारी (एसडीएम) को यह अधिकार दिया है कि वे किसानों की समस्या को ध्यान में रखते हुए रोजड़ों को नियंत्रित करने के आदेश जारी कर सकते हैं। हालांकि, इस अधिकार की जानकारी जिले के अधिकांश किसानों को नहीं है।

पर्यावरण संरक्षण के लिए सीएसआर फंड का उपयोग जरूरी

नीमच वनमंडलाधिकारी एसके अटोदे के अनुसार, जिले में तेजी से विकास परियोजनाएं चल रही हैं, जिनमें करीब 11,000 करोड़ रुपये का निवेश हो रहा है। इन परियोजनाओं के कारण वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि इन परियोजनाओं से होने वाली आय का 2% कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) फंड के रूप में पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण और वन्यजीव संरक्षण पर खर्च किया जाना चाहिए।
यदि जंगलों में जल संरक्षण पर कार्य किया जाए, तो वन्यजीवों को पर्याप्त पानी और भोजन मिल सकेगा, जिससे वे अपने प्राकृतिक आवास नहीं छोड़ेंगे। वन और वन्यजीवों की सुरक्षा केवल सरकार और वन विभाग की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि आम जनता को भी जागरूक होकर इसमें योगदान देना होगा।
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नीमच से विलुप्त हो रहा खरमोर पक्षी

कभी नीमच जिले में बड़ी संख्या में पाया जाने वाला दुर्लभ खरमोर पक्षी अब तेजी से विलुप्त हो रहा है। इसकी प्रमुख वजह खेतों में कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग है, जिससे खरमोर की भोजन श्रृंखला टूट गई है। बारिश के मौसम में प्रजनन के लिए ऊंची झाड़ियों में घोंसला बनाने वाला यह पक्षी अब राजस्थान की ओर पलायन कर गया है।
वन विभाग ने खरमोर के संरक्षण के लिए प्रयास किए, लेकिन कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग के कारण इनके प्राकृतिक आवास नष्ट हो गए। विशेषज्ञों का मानना है कि जैविक खेती को बढ़ावा देकर और रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग को नियंत्रित करके इस संकट को टाला जा सकता है।

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