scriptबात-बात किसी को समन जारी नहीं…ट्रेडिंग कंपनी के मामले में हाईकोर्ट ने निरस्त किया ट्रायल कोर्ट का आदेश | Delhi High Court canceled trial court summons in trading company case | Patrika News
नई दिल्ली

बात-बात किसी को समन जारी नहीं…ट्रेडिंग कंपनी के मामले में हाईकोर्ट ने निरस्त किया ट्रायल कोर्ट का आदेश

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि समन जारी करना मात्र औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर कानूनी प्रक्रिया है। इसके लिए मजिस्ट्रेट को पर्याप्त तथ्यों और साक्ष्यों की जांच करनी अनिवार्य है।

नई दिल्लीJun 28, 2025 / 12:16 pm

Vishnu Bajpai

Delhi High Court: बात-बात किसी को समन जारी नहीं…ट्रेडिंग कंपनी के मामले में हाईकोर्ट ने निरस्त किया ट्रायल कोर्ट का आदेश
Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम और दूरगामी असर डालने वाले फैसले में समन जारी करने की स्थिति स्पष्ट की है। साथ ही ट्रायल कोर्ट द्वारा 12 साल पहले एक युवक के खिलाफ जारी किए गए समन के आदेश को भी रद कर दिया। मामले की सुनवाई करते दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा “ट्रायल कोर्ट किसी भी व्यक्ति को आरोपी के रूप में समन तब तक जारी नहीं कर सकता। जब तक मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट और सभी सबूतों का गहन अध्ययन न कर ले। समन जारी करने में ट्रायल कोर्ट किसी भी तरह की लापरवाही नहीं बरत सकते। समन जारी करना सिर्फ एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर कानूनी प्रक्रिया है। इसलिए समन जारी करने से पहले मजिस्ट्रेट को पर्याप्त तथ्यों और साक्ष्यों की जांच करनी अनिवार्य है।”

98 लाख की धोखाधड़ी के आरोप का मामला

दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई 23 जून को की गई। इस दौरान जस्टिस अमित महाजन की एकल पीठ ने स्पष्ट किया “अगर किसी शिकायत में अपराध का तत्व स्पष्ट रूप से नहीं दिखता है तो समन जारी करना कानून का दुरुपयोग माना जाएगा।” इसके साथ ही दिल्ली हाईकोर्ट कोर्ट ने साल 2013 में ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी समन खारिज कर दिया। मामला साल 2013 का है। इसमें इंडियाबुल्स सिक्योरिटीज लिमिटेड नाम की कंपनी ने एक व्यक्ति पर 98 लाख रुपये की धोखाधड़ी का आरोप लगाया था।
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इंडियाबुल्स सिक्योरिटीज लिमिटेड का दावा था कि आरोपी व्यक्ति ने उस कंपनी में खाता खुलवाया। इसके बाद ‘मार्जिन ट्रेडिंग’ की सुविधा प्राप्त की। मार्जिन ट्रेडिंग में कंपनी निवेशक को उधार देकर शेयर खरीदवाती है। कंपनी ने आरोप लगाया था कि खाता खुलवाने वाले व्यक्ति ने बार-बार कहने के बावजूद उधार राशि नहीं चुकाई। 28 सितंबर 2013 को इस शिकायत के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ समन जारी कर दिया था। आरोपी व्यक्ति ने इसी समन को दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी।

याचिकाकर्ता और कंपनी ने हाईकोर्ट में दी ये दलीलें

दिल्ली हाईकोर्ट में चली लंबी सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने दलील दी कि ट्रायल कोर्ट ने बिना किसी ठोस जांच के और स्पष्ट कारण बताए उसे समन जारी कर दिया। याचिकाकर्ता का कहना था कि ट्रायल कोर्ट का यह कदम न्यायिक सिद्धांतों के खिलाफ है। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट को ये भी बताया कि कंपनी ने उनकी सहमति के बिना उनके 7 करोड़ रुपये के शेयर बेच दिए और अब उल्टा आरोप लगाकर उन्हें फंसा रही है। दूसरी ओर कंपनी के वकील ने याचिकाकर्ता की अपील को ‘अप्रासंगिक’ और ‘विलंब से दायर’ बताते हुए इसे खारिज करने की मांग की। कंपनी का तर्क था कि सात साल तक याचिका दाखिल न करना यह दर्शाता है कि मामला गंभीर नहीं था।

हाईकोर्ट ने क्या कहा?

मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस अमित महाजन ने कंपनी के तर्कों को खारिज कर दिया। जस्टिस महाजन ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को आरोपी के तौर पर अदालत में बुलाना उसके अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसलिए यह फैसला ठोस कानूनी आधार और पर्याप्त प्रमाणों के बिना नहीं लिया जा सकता। उन्होंने कहा कि केवल किसी आर्थिक लेन-देन में विवाद को ‘आपराधिक रंग’ देना न्याय प्रणाली का दुरुपयोग है। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि यह मामला पूरी तरह से सिविल प्रकृति का है और इसमें आपराधिक मंशा का कोई प्रमाण नहीं है।
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बदले की भावना से कानूनी प्रक्रिया का इस्तेमाल गलत

अदालत ने यह भी चेताया कि आपराधिक न्याय प्रणाली का उपयोग व्यक्तिगत बदले की भावना या मानसिक उत्पीड़न के लिए नहीं किया जा सकता। समन एक कानूनी उपकरण है। जिसका उद्देश्य आरोपी को कोर्ट में पेश करना होता है, लेकिन इसका इस्तेमाल प्रताड़ना के लिए नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के समन आदेश को रद कर दिया। न्यायालय ने कहा कि यदि कोई शिकायत प्राथमिक दृष्टया आपराधिक प्रकृति की नहीं है। इसलिए बात-बात पर समन जारी करना न्याय का उपहास है।

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