पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकार को मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया था ताकि जमानत की अनिवार्यता का पता लगाया जा सके। दोनों राज्यों द्वारा उठाए गए कदमों पर असंतोष जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अब एम्स दिल्ली को एक मेडिकल बोर्ड गठित करने और 21 अप्रैल को रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है।
मेडिकल बोर्ड गठित करने में लगा समय
शीर्ष अदालत ने कहा कि हमें पता चला कि उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकार ने भी एक मेडिकल बोर्ड गठित किया था। मेडिकल बोर्ड गठित करने में क्रमशः सात और 10 दिन का समय लिया। जब तक मेडिकल बोर्ड विकास यादव की मां से मिलने अस्पताल गया। तब तक उन्हें छुट्टी दे दी गई थी। हालांकि कोर्ट को सूचित किया गया कि उन्हें अगले दिन फिर से भर्ती कराया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्यों के मेडिकल बोर्ड के कामकाज पर असंतोष जताते हुए कहा, “जिस तरह से दोनों राज्यों ने काम किया, उसे देखते हुए हम निर्देश देते हैं कि एम्स एक मेडिकल बोर्ड गठित करे। यह बोर्ड तुरंत अस्पताल का दौरा कर विकास यादव की मां की स्वास्थ्य स्थिति पर रिपोर्ट तैयार करे।” गौरतलब है कि फरवरी 2002 को नीतीश कटारा की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2016 में विकास यादव और विशाल यादव को 25-25 साल की कैद की सजा सुनाई थी।
ये है पूरा मामला
नीतीश कटारा हत्याकांड में सजा काट रहे विकास यादव ने अपनी मां की गंभीर बीमारी को आधार बनाते हुए अंतरिम जमानत की याचिका दाखिल की थी। इसमें उन्होंने बताया कि उनकी मां आईसीयू में भर्ती हैं और सर्जरी से इनकार कर चुकी हैं। याचिका में कहा गया कि मां की स्थिति को देखते हुए उनकी उपस्थिति और सहायता जरूरी है। इसलिए उन्हें जमानत दी जानी चाहिए। दरअसल, यूपी के नोएडा निवासी विकास यादव और उसके चचेरे भाई विशाल यादव को 2002 में नीतीश कटारा की हत्या के मामले में 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने 25-25 साल की सजा सुनाई थी। इस हत्या के पीछे यादव परिवार का विरोध था, क्योंकि नीतीश और विकास की बहन भारती के बीच प्रेम संबंध थे। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इन्हें 30 साल की सजा दी थी, जबकि सुखदेव पहलवान को 25 साल की सजा दी गई।
इलाहाबाद हाईकोर्ट को भी सुप्रीम कोर्ट ने लपेटा
दूसरी ओर मंगलवार को बच्चा तस्करी मामलों में लापरवाही के लिए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और इलाहाबाद हाई कोर्ट को कड़ी फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन मामलों में अब कोई लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी। कोर्ट ने सभी राज्यों के हाई कोर्ट्स को आदेश दिया कि बच्चा तस्करी मामलों की सुनवाई छह महीने में पूरी की जाए। कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की जमानत पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि आरोपी को जमानत देना लापरवाही थी। इसके अलावा, अस्पतालों के लिए भी सख्त आदेश दिए गए कि यदि अस्पताल से बच्चा चोरी होता है, तो उनका लाइसेंस तुरंत सस्पेंड किया जाए। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को भी फटकारते हुए कहा कि पुलिस आरोपियों को पकड़ नहीं पा रही है और समाज को खतरा है। कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हुआ, तो अवमानना कार्रवाई की जाएगी।