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खजूर की खेती पर संकट: आबोहवा अनुकूल लेकिन पौधे नहीं

जिले में पूरे नहीं होंगे खजूर बुवाई के लक्ष्य गहराते जल संकट और पारपरिक खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए उद्यान विभाग ने खजूर की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए कई योजनाएं शुरू की है लेकिन हकीकत यह है कि शेखावाटी अंचल की आबोहवा अनुकूल होने के बाद भी यहां के किसानों को […]

सीकरMar 06, 2025 / 11:33 am

Puran

जिले में पूरे नहीं होंगे खजूर बुवाई के लक्ष्य

गहराते जल संकट और पारपरिक खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए उद्यान विभाग ने खजूर की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए कई योजनाएं शुरू की है लेकिन हकीकत यह है कि शेखावाटी अंचल की आबोहवा अनुकूल होने के बाद भी यहां के किसानों को बगीचे लगाने के लिए अनुदान पर टिश्यू कल्चर से तैयार होने वाले पौधों की किस्म नहीं मिल पा रही है। नतीजन इस बार जिले में खजूर की खेती के लिए कृषि विभाग के लक्ष्य पूरे होने की उमीद नही है। हालांकि उच्चाधिकारियों ने इसके लिए प्रदेश स्तर पर डिमांड भेजी हुई लेकिन तक किसानों को तय किस्म के पौधे मिल पाना दूर की कौड़ी नजर आ रहा है। इसे देखते हुए कई किसानों ने दूसरे जिलों से निजी नर्सरी से पौधे खरीदने पड़ते हैं। हालांकि राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत जिले में खजूर का बगीचा लगाने के लिए वाले किसानों को उद्यान विभाग की ओर से निशुल्क परामर्श के साथ पौधों पर अनुदान देने की योजना है। इसके लिए प्रदेश में अनुदान पर किसान खजूर की पौध जोधपुर व जैसलमेर से ला सकते हैं। कृषि विभाग की ओर से राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में अनुदान पर खजूर की खेती के लिए लक्ष्य दिए गए है।

विशेषज्ञ बोले: हो सकता फायदा, आसानी से लग सकता है बगीचा

जिले में भूजल स्तर गहरा होने के कारण भूमि क्षारीय होने के साथ पानी का पीएच भी बढ़ रहा है। ऐसे में यहां की जलवायु खजूर की खेती के लिए अनुकूल है। इससे अंचल का किसान आसानी से खजूर का बगीचा लगा सकता है। एक्सपर्टस के अनुसार खजूर वहां पनपता है जहां पर नमी न हो। खजूर के पौधे की सिंचाई अधिक पीएच वाले पानी के जरिए की जाती है। अन्य फलों के बगीचों के लिए पानी की गुणवत्ता मायने रखती है। प्रदेश में नमी वाले वातावरण में खजूर का पौधा फंगस के कारण नष्ट हो जाता है। यही कारण है कि खाड़ी देशों में खारा पानी होने के बावजूद वहां का खजूर गुणवत्ता में सर्वश्रेष्ठ होता है। खजूर के पेड़ों पर फरवरी-मार्च में फूल आते हैं। इसके बाद मानसून के समय इनमें फल आ जाते हैं।

इनका कहना है

खजूर की खेती के आवेदन करने वालों ने बरई और खुनैजी किस्म के पौधों की डिमांड की है लेकिन जयपुर निदेशालय में इन नस्लों के पौधे नहीं मिल रहे हैं। इसके कारण परेशानी आ रही है।
मोहनलाल, उपनिदेशक उद्यान, सीकर

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