मैनेजर की क्या भूमिका
आरोपियों से पूछताछ में सामने आया कि बैंक मैनेजर सोनू वर्मा ने बैंक में कस्टमर की उपस्थिति के बिना ही आरोपी आदित्य वाल्मीकि से फार्म भरवा कर फर्जी फर्म के नाम से करंट/कॉर्पोरेट खाता खोला। साइबर क्राइम पोर्टल पर दर्ज शिकायतों में हॉल्डशुदा राशि को विड्रोल करवाने में सहयोग किया। साथ ही हॉल्डशुदा राशि में से अन्य लोगों के इंश्योरेंस किए।
गिरोह यूं करता काम
पुलिस के अनुसार आरोपी इन्वेस्टमेंट फ्रॉड (फर्जी ट्रेडिंग एप बनाकर टेलीग्राम के जरिए लोगों से सम्पर्क कर शेयर मार्केट पर पैसा लगाने का झांसा देना), अवैध गैमिंग, क्रिप्टोकरंसी फ्रॉड आदि की राशि को म्यूल/फर्जी बैंक खातों में लेकर कैश के रूप में निकलवा कर गिरोह के अन्य सदस्यों में बांट देते थे। इसमें बैंक कर्मियों की ओर से अकांउट ओपनिंग, नेट बैंकिंग एवं कैश निकासी में जालसाजी कर साइबर ठगों की सहायता करना सामने आया था। गिरोह से जुड़े आरोपी आदित्य वाल्मीकि के परिजन बैंक में काम करते थे। इसलिए उसका बैंकों में आना-जाना था। गिरोह के सदस्य बैंक कर्मियों की मिलीभगत से बैंक खाते खुलवाकर राशि मंगवाते थे।
फर्जी फर्म का पंजीयन
पुलिस के अनुसार साइबर ठग गिरोह के सदस्यों ने भारत सरकार के उद्यम पोर्टल पर फर्जी फर्म का रजिस्ट्रेशन किया। इसके बाद नशेड़ी प्रवृत्ति तथा पैसों का लालच देकर लोगों के कागजात से विभिन्न बैंकों में बैंक खाते खुलवा लेते थे। बैंक की पास बुक, एटीएम, चेक बुक, सिम कार्ड व हस्ताक्षरशुदा चेक अपने पास रख लेते थे। फिर उन बैंक खातों में साइबर ठगी की राशि आने पर हस्ताक्षरशुदा चेक से निकाल लेते।