गांव के एक छोटे से घर में राधा अपनी मां के साथ रहती थी। राधा की मां कमला हर सुबह जल्दी उठती। घर के सारे काम निपटाती और राधा के लिए प्यार से खाना बनाती। कमला का एक ही सपना था – राधा अच्छी शिक्षा पाए और जीवन में आगे बढ़े। आज भी राधा पढ़ाई के बाद घर लौटी तो बहुत भूखी थी। वह लकड़ी की छोटी सी मेज पर बैठी और हाथ जोड़कर खाने की प्रतीक्षा करने लगी। उसकी मां प्यार भरी मुस्कान के साथ थाली लेकर आई। मां के हाथों से बना गरमा-गरम खाना देखकर राधा की भूख और बढ़ गई। उसने मां की ओर देखा और बोली, मां तुम भी मेरे साथ खाओ ना! कमला मुस्कु राई और बोली, बेटा, पहले तू खा ले, मैं बाद में खा लूंगी। लेकिन राधा जिद करने लगी। मां उसकी जिद देखकर हंस पड़ी और उसके पास बैठकर खाने लगी। खाते समय राधा ने मां का हाथ पकड़ लिया और कहा, मां, जब मैं बड़ी हो जाऊंगी, तो तुम्हें काम नहीं करने दूंगी। मैं खूब पढ़-लिखकर तुम्हें आराम दूंगी। मां की आंखें भर आईं, लेकिन उसने मुस्कुराकर कहा, मुझे बस तेरी खुशी चाहिए बेटा। मां-बेटी का यह प्यार देखकर घर की दीवारें भी जैसे मुस्करा उठीं। मां का प्रेम ही तो वह अनमोल धन है, जो किसी भी सुख से बढ़कर होता है।
- विश्वास चौधरी, उम्र-12वर्ष
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छोटी अन्नू खाने की मेज पर बैठी थी, अपनी आंखें बंद करके हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही थी। उसकी नन्ही-सी नाक में ताजे बने खाने की खुशबू आ रही थी। उसकी मां सीता मुस्कुराते हुए गरम-गरम खाना परोसने के लिए बर्तन लेकर आ रही थी। आज मैंने तुम्हारी पसंदीदा दाल और चावल बनाए हैं। मां ने प्यार से कहा। अन्नू ने कहा, धन्यवाद मां! लेकिन पहले मुझे भगवान को इस स्वादिष्ट भोजन के लिए धन्यवाद देना है। सीता अपनी बेटी को गर्व से देख रही थी। उन्होंने हमेशा अन्नू को सिखाया था कि भोजन के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए। जब वह अन्नू की थाली में खाना परोसने लगी, तो उन्हें अपना बचपन याद आ गया-कैसे उनकी मां भी उन्हें इसी प्यार से खिलाया करती थी। सीता ने प्यार से अन्नू के सिर पर हाथ फेरा। बेटा, जब हम कृतज्ञता के साथ खाना खाते हैं, तो वह और भी पौष्टिक बन जाता है। अन्नू ने उत्साह से सिर हिलाया और पहला निवाला लिया। मां, तुम्हारे हाथ का खाना तो जादू जैसा लगता है! उसने स्वाद लेते हुए कहा। सीता हंस पड़ी। बेटा, यह जादू नहीं, यह प्यार है। मां और बेटी प्यार भरे पल के साथ खाना खाने लगीं। रसोई में सिर्फ स्वादिष्ट भोजन की नहीं, बल्कि उस प्रेम और अपनेपन की भी खुशबू थी, जो हर निवाले को खास बना रही थी।
- भुवनेश पटेल, उम्र-8वर्ष
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एक गांव में भारती नाम की एक प्यारी बच्ची अपनी मां के साथ रहती थी। भारती की मां बहुत मेहनती थी और अपने परिवार का बहुत ध्यान रखती थी। हर दिन सुबह और शाम भारती की मां स्वादिष्ट भोजन बनाती थी। भारती हमेशा खाने से पहले हाथ जोड़कर भगवान का धन्यवाद करती थी। उसकी मां ने उसे सिखाया था कि भोजन का आदर करना चाहिए क्योंकि यह ईश्वर का आशीर्वाद होता है। एक दिन भारती के घर एक साधु महात्मा आए। उन्होंने भारती को भोजन करने से पहले प्रार्थना करते हुए देखा और मुस्कुराए। उन्होंने कहा, बेटी, तुम्हारे संस्कार बहुत अच्छे हैं। भोजन का सम्मान करना बहुत आवश्यक है। इससे न केवल शरीर स्वस्थ रहता है, बल्कि मन भी शुद्ध होता है। भारती ने खुशी-खुशी महात्मा जी की बात सुनी और मां को धन्यवाद दिया कि उन्होंने उसे अच्छे संस्कार दिए। उस दिन के बाद भारती ने गांव के अन्य बच्चों को भी भोजन के महत्त्व के बारे में सिखाया। धीरे-धीरे पूरे गांव में लोग भोजन का आदर करने लगे और जरूरतमंदों को भोजन दान करने की आदत डाल ली। सीख-हमें भोजन का आदर करना चाहिए और इसे कभी व्यर्थ नहीं करना चाहिए।
- तक्षवी श्रीवास्तव, उम्र-6वर्ष
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राधा एक छोटी सी प्यारी बच्ची थी। वह अपनी मां के साथ एक छोटे से गांव में रहती थी। उसकी मां सुमित्रा बहुत मेहनती और दयालु महिला थी। वह हर दिन सुबह जल्दी उठती, घर का काम करती और राधा के लिए स्वादिष्ट खाना बनाती। एक दिन जब राधा स्कूल से घर लौटी, तो उसे बहुत भूख लगी थी। वह जल्दी से हाथ-मुंह धोकर खाने की मेज पर बैठ गई। उसकी मां मुस्कुराते हुए रसोई से ताजा गरमा-गरम खाना लेकर आई। राधा ने अपनी थाली में चपाती, दाल और चावल देखे। खाना देखकर उसके चेहरे पर खुशी आ गई। खाने से पहले राधा ने दोनों हाथ जोड़कर भगवान का धन्यवाद किया और भोजन की महत्ता को समझते हुए प्रार्थना की। मां प्यार से उसे देख रही थी और उसके लिए खाना परोस रही थी। राधा ने पहला निवाला खाया और मां की तरफ देखा। वह बोली, मां, तुम्हारे हाथ का खाना सबसे स्वादिष्ट होता है! सुमित्रा की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। उसने राधा के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और बोली, बेटा, मां के हाथ का खाना सिर्फ स्वादिष्ट नहीं, उसमें प्यार भी मिला होता है! राधा मुस्कुराई और मन ही मन सोचने लगी – मां का प्यार ही दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है। शिक्षा-हमें हमेशा अपने माता-पिता के प्रेम और परिश्रम का सम्मान करना चाहिए।
- काव्या शर्मा, उम्र-11वर्ष
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नैना की चाची अहमदाबाद में रहती थीं। इन्होंने नैना को जन्मदिन के उपहार में एक कटोरा दिया। वह एक जादुई कटोरा था। कटोरे पर सब्जी और फलों का चित्र बना था। नैना की मां खाना खाते समय कटोरे को मेज पर रख देती थी। खाने का कटोरा कभी किसी सब्जी से तो कभी किसी दाल से भर जाता था। नैना को जादुई कटोरा बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। वह केवल पास्ता, बर्गर, पिज्जा, टॉफी, चॉकलेट बिस्किट आइसक्रीम खाना चाहती थी। आइसक्रीम की वजह से उसके दांत में कीड़े लग गए और पेट में भी दर्द रहता था। मां उसे समझाती थी तो वह रोने लगती थी। मां कहती है तुम्हें जो खाना है। जादुई कटोरे से मांगो, लेकिन यह क्या नैना ने जैसे ही कटोरे से चॉकलेट मांगी, कटोरे से आवाज आई, नैना चॉकलेट खाना छोड़ दो नहीं तो तुम्हारे दांत पूरे खराब हो जाएंगे। नैना डर गई। इसके बाद धीरे-धीरे नैना को सब्जी और दाल पसंद आने लगी। उसके दांत भी ठीक हो गए।
- कृष्णा सिंह, उम्र-14वर्ष
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स्नेहा एक छोटी बच्ची थी, जो अपनी मां के साथ एक छोटे से गांव में रहती थी। वह बहुत संस्कारी और मां की आज्ञाकारी थी। उसकी मां राधा, बहुत मेहनती थी और स्नेहा का हमेशा अच्छे संस्कारों के साथ पालन-पोषण करती थी। एक दिन सुबह जब स्नेहा स्कूल से वापस आई, तो उसकी मां ने प्यार से उसके लिए खाना बनाया। स्नेहा ने अपनी मां से कहा, मां, आज खाना बहुत स्वादिष्ट लग रहा है! उसकी मां मुस्कुराई और बोली, बेटा, यह मां के प्यार का स्वाद है। स्नेहा खाना खाने बैठी, लेकिन खाने से पहले उसने हाथ जोड़कर भगवान का धन्यवाद किया। उसकी मां यह देखकर बहुत खुश हुई और स्नेहा के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली, बेटा, हमेशा भोजन को प्रसाद की तरह ग्रहण करना चाहिए। इससे हमारे अंदर संतोष और कृतज्ञता की भावना बनी रहती है। स्नेहा ने खुशी-खुशी खाना खाया और अपनी मां के गले से लग गई। उसकी मां ने उसे आशीर्वाद दिया और स्नेहा ने मन ही मन सोचा, मां का प्यार ही दुनिया का सबसे अनमोल तोहफा है!
- रूहान, उम्र-7वर्ष
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एक बार की बात है कि एक घर में मां और बेटी रहते थे। बेटी का नाम नित्या था। नित्या बहुत ही लापरवाह थी। एक रोज वह स्कूल के लिए तैयार होकर नाश्ता करने बैठी। उसे नाश्ता अच्छा नहीं लगा, तो वह उसे झूठा छोड़ कर चली गई। उसकी बस निकल गई। तो वह पैदल ही स्कूल जाने लगी। तभी उसे रास्ते में एक छोटी तितली दिखाई दी। वह उसके पीछे दौड़ती दौड़ती बहुत दूर चली। उसे पता ही नहीं चला वह कहां आ गई और खो गई। दोपहर में बहुत धूप थी। उसे जोरों की भूख लग गई। उसे पता चल गया कि खाने का क्या महत्त्व होता है। तभी उसे एक व्यक्ति दिखाई दिया। उसने उससे मदद मांगी। वह व्यक्ति बहुत ही दयालु था। उसे घर पर छोड़कर आया। वह घर जाकर अपनी मां के गले से लग गई। उसकी मां ने उसे खाना खिलाया। उसने खाने के सामने हाथ जोड़े। फिर खाना खाना शुरू किया। वह भोजन का महत्त्व समझ गई थी। यह देखकर उसकी मां बहुत खुश हुई।
- सुमित प्रजापत, उम्र-12वर्ष
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छोटी रीमा बहुत चंचल और शरारती थी। खाने-पीने में बहुत नखरे करने की आदत थी। कभी कहती, मुझे दाल-चावल नहीं पसंद, तो कभी कहती, सब्जी अच्छी नहीं बनी। उसकी मां सुमित्रा हर दिन उसे प्यार से समझाती, लेकिन रीमा मानती ही नहीं थी। एक दिन मां ने सोचा कि रीमा को एक सबक सिखाना चाहिए। अगले दिन जब रीमा स्कूल से घर आई, तो बहुत भूखी थी। उसने मां से पूछा, मां, खाने में क्या बना है? मां मुस्कु राई और बोली, आज तुम्हारे लिए कुछ खास नहीं है। बस जो कुछ बचा है, वही मिलेगा। रीमा ने देखा कि उसके सामने सादा दाल-चावल था। भूख के कारण उसने बिना किसी शिकायत के खाना खाया। जब उसने पहला कौर मुंह में डाला, तो उसे बहुत स्वादिष्ट लगा। वह मां की ओर देखने लगी और सोचने लगी कि मां रोज इतना स्वादिष्ट खाना बनाती है, लेकिन वह हमेशा शिकायत करती थी। रीमा को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने मां के पास जाकर कहा, मां, माफ कर दो। मुझे अब समझ में आ गया कि हर खाना प्यार से बनता है और उसका आदर करना चाहिए। मां ने रीमा को गले से लगा लिया और कहा, बेटा, भोजन ईश्वर का दिया हुआ प्रसाद होता है। हमें उसे प्रेम और आदर के साथ ग्रहण करना चाहिए। उस दिन के बाद से रीमा ने कभी खाने की बेइज्जती नहीं की और हर चीज को खुशी-खुशी खाया। शिक्षा-भोजन की कद्र करनी चाहिए, क्योंकि यह हमें स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाता है।
- पर्णवी अग्रवाल, उम्र-9वर्ष
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पूर्णा- मां आप इतनी जल्दी सुबह उठ जाती हो और दिनभर खुशी खुशी काम करती हो आपके अंदर इतनी ताकत कहां से आती है। मां- प्यारी बेटी हम सुबह उठते के साथ भगवान को याद करते है, खाना खाने के पहले भगवान को याद करके खाते है जिससे भगवानजी हमें अपनी ढेर सारी शक्ति, खुशी और ताकत से भर देते हैं। पूर्णा- पर मां मैं तो सुबह उठते के साथ मोबाइल, खाते समय मोबाइल और सोते समय भी मोबाइल चलाती हूं। मां- हां बेटी सुबह उठते, खाते समय और सोते समय किसी को भी मोबाइल नहीं चलाना चाहिए ये हमारे शरीर और मानसिक स्वास्थ्य को कमजोर बनाता है। इसलिए तो मैं आपको मना करती हूं। पूर्णा= तो फिर ठीक है मां आज से मैं भी सुबह उठते के साथ और खाना खाते समय,सोते समय भगवान जी को याद करूंगी मोबाइल नहीं चलाऊंगी। मां- बहुत बढिय़ा बेटी। फिर तो भगवान जी आपको भी अपनी शक्ति और खुशी से भर देंगे।
- पूर्णा जोशी, उम्र-7वर्ष
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अनाया और निकुंज भाई-बहन थे। वे अपनी मां के साथ रहते थे, जो उनके लिए रोज स्वादिष्ट खाना बनाती थी। मां चाहती थी कि उनके बच्चे हमेशा आभार प्रकट करें और भोजन का सम्मान करें। एक दिन, जब मां ने खाना परोसा, तो अनाया ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की। यह देखकर निकुंज ने हंसते हुए कहा, अनाया, तुम हर बार ऐसा क्यों करती हो? अनाया मुस्कुराई और बोली, भैया, मां इतनी मेहनत से हमारे लिए खाना बनाती है। हमें भगवान और मां दोनों का धन्यवाद करना चाहिए। मां यह सुनकर भावुक हो गइ और निकुंज को समझाया, बेटा, जब हम कृतज्ञता के साथ खाते हैं, तो खाना और भी पौष्टिक और स्वादिष्ट बन जाता है। निकुंज को अनाया की बात समझ में आ गई। उस दिन से वह भी खाने से पहले धन्यवाद कहने लगा। मां के चेहरे पर खुशी थी, क्योंकि उनके बच्चों ने आभार और प्रेम का महत्त्व सीख लिया था।
- अनाया अरोड़ा, उम्र-8 साल
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छोटी दिशा खाने की मेज पर बैठी थी। उसकी थाली में गरम-गरम चावल और दाल थी, लेकिन वह चम्मच लेकर चावल को हिलाती रही। उसकी आंखें दरवाजे की ओर लगी थीं, जहां से उसकी माँ एक बड़े बर्तन में खाना लेकर आ रही थी। मां आज खाना बहुत अच्छा लग रहा है! दिशा ने खुश होकर कहा। मां मुस्कुराई और प्यार से बोली, हां बेटा, मैंने तेरी पसंद की सब्जी भी बनाई है। दिशा ने एक निवाला मुंह में डाला और तुरंत खुशी से उछल पड़ी, वाह! मां आपके हाथों में जादू है! आपके बनाए खाने जैसा स्वाद कहीं नहीं आता! मां हंस पड़ी और बोली, बेटा, यह जादू नहीं, यह मां का प्यार है। जब भी मैं तेरा खाना बनाती हूं, उसमें ढेर सारा प्यार मिला देती हूं। दिशा ने मां को गले लगा लिया और कहा, फिर तो मैं हमेशा बस तुम्हारे हाथों का खाना ही खाऊंगी। मां ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और दोनों ने हंसते हुए साथ में भोजन किया।
- उत्कर्ष पटेल, उम्र- 8 वर्ष
एक गांव में मीना और उसकी बेटी आराध्या रहती थी। आराध्या बहुत आलसी थी और हमेशा खाना खाने से पहले प्रार्थना करने से बचती थी। एक दिन मीना ने आराध्या से कहा, बेटा, भोजन से पहले प्रार्थना करना बहुत जरूरी है। यह हमारे भोजन को पवित्र करता है और हमें ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है। आराध्या ने मां की बात नहीं मानी और बिना प्रार्थना किए खाना खा लिया। उस रात आराध्या को बुरे सपने आए और वह बीमार पड़ गई। मीना ने उसे समझाया, देखा, जब हम प्रार्थना नहीं करते, तो हमारा मन और शरीर अशांत हो जाता है। अगले दिन, आराध्या ने मां की बात मानी और खाने से पहले प्रार्थना की। उसे अच्छा महसूस हुआ और उसकी बीमारी ठीक हो गई। आराध्या ने मां से कहा, मां, अब मैं हमेशा खाने से पहले प्रार्थना करूंगी। मीना ने उसे गले लगाया और कहा, बेटा, प्रार्थना से हमारा मन शांत रहता है और हमें ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है। इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि प्रार्थना करना हमारे जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और इसे कभी नहीं भूलना चाहिए।
- आराध्या गुप्ता, उम्र-10 वर्ष
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एक छोटे से गांव में एक अवनी रहती है। अवनी अपने माता-पिता की एकलौती संतान थी और उन्हें बहुत प्यार करती थी। अवनी हर दिन सुबह और शाम को प्रार्थना करती है और अपने दिन का खाना की शुरुआत प्रार्थना से करती है। एक दिन अवनी को अपने स्कूल में एक प्रार्थना सभा आयोजित करनी थी। वह बहुत उत्साहित थी और अपने दोस्तों के साथ मिलकर प्रार्थना सभा की तैयारी कर रही थी। प्रार्थना सभा के दिन अवनी ने अपने सबसे अच्छे कपड़े पहने और अपने बालों को सुंदर तरीके से सजाया। वह अपने माता-पिता के साथ स्कूल गई और प्रार्थना सभा के बाद अवनी को दोपहर का भोजन लेने के लिए कहा गया। भोजनालय में गई और अपना भोजन लिया। वह बहुत खुश थी। भोजन के दौरान अवनी को एक अच्छा विचार आया। उसने सोचा वह अपने दोस्तों के साथ मिलकर गरीब बच्चों के लिए भोजन का आयोजन करेगी। उसने अपने माता-पिता से बात की और उन्हें अपने विचार के बारे में बताया। अवनी के माता-पिता को उसका विचार बहुत पसंद आया। अवनी ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर गरीब बच्चों के लिए भोजन का आयोजन किया और उन्हें खाना खिलाया। इस तरह अवनी की प्रार्थना और उसके दोपहर के भोजन के बाद का काम एक अच्छा उदाहरण बन गया कि कैसे हम अपने जीवन में दूसरों की मदद कर सकते हैं और उन्हें खुशी दे सकते हैं।
- अविरल राठी
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सूरज ढलने को था और रसोई से स्वादिष्ट खाने की खुशबू पूरे घर में फैल रही थी। सुमन बड़े प्रेम से भोजन बना रही थी। आंगन में पायल खेल रही थी। जैसे ही मां ने आवाज दी। वह खुशी-खुशी हाथ धोकर खाने के लिए बैठ गई। सुमन ने पायल के सामने थाली रखी और वापस काम में लग गई। पायल ने थाली देखी और हाथ जोड़कर प्रार्थना की। सुमन काम करते-करते रुक गई और आश्चर्य से पायल को देखने लगी। उसके चेहरे पर गर्व भरी मुस्कान थी। वह पास आकर बोली, बेटा, तुमने यह प्रार्थना कहां से सीखी? पायल ने मुस्कुराते हुए कहा, मां मैं रोज आपको और पापा को यह प्रार्थना करते देखती हूं। आप हमेशा भोजन से पहले यह प्रार्थना करते हैं। इसलिए मैंने सोचा कि मुझे भी ऐसा करना चाहिए। उसने पायल को गले लगाते हुए कहा, शाबाश बेटा! हमारी संस्कृति में अन्न को अन्नं ब्रह्म कहा गया है, जिसका मतलब है कि अन्न में भगवान का वास होता है। इसे आदरपूर्वक ग्रहण करना चाहिए। सुमन ने समझाया, जो अन्न का सम्मान करता है, उसे हमेशा समृद्धि और सुख मिलता है। अन्न व्यर्थ नहीं करना चाहिए, यह भगवान का आशीर्वाद है। पायल ने मुस्कुराते हुए कहा, मां अब मैं रोज खाने से पहले प्रार्थना करूंगी।
- रिदम विजय, उम्र- 8 वर्ष
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एक बार की बात है, चिंकी अपने विद्यालय से आई और उसने अपनी मां से कहा, मां मुझे भूख लग रही है खाना दे दो। चिंकी की मां जब उसकी थाली लगा रही थी तो उन्होंने चिंकी से पूछा कि तुम अपने विद्यालय में खाना कैसे खाती हो? चिंकी ने जवाब दिया मैं हाथ धोकर अपना टिफिन खा लेती हूं। मां ने कहा, नहीं चिंकी यह खाना खाने का गलत तरीका है। चिंकी बोली, मां तो आप अपने विद्यालय में कैसे खाना खाती थीं। चिंकी की मां ने कहा, हम अपने भगवान को धन्यवाद करते थे कि उन्होंने हमें हमारा पेट भरने के लिए यह अन्न प्रदान किया है। और फिर हम अपने माता-पिता को धन्यवाद करते थे कि उन्होंने हमें यहां स्वादिष्ट खाना दिया है। चिंकी ने कहा मां अब से आपने जैसे बोला है, मैं वैसे ही अपने खाने को खाऊंगी। मैं पहले भगवान को धन्यवाद करूंगी। फिर आपको धन्यवाद करूंगी कि आपने मुझे यह स्वादिष्ट खाना बनाकर दिया है। धन्यवाद मां कि आज आपने मुझे खाना खाने का सही तरीका बताया। इसके बाद से चिंकी ऐसा ही करने लगी।
- हनी ताम्रकर, उम्र- 13 वर्ष