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एसीआर टिप्पणियों पर महिला जज की आपत्ति, सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट से मांगा जवाब

चाइल्ड केयर लीव का मामला नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड केयर लीव अस्वीकृति के एक मामले में रिट याचिका दायर करने के बाद वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) में नकारात्मक प्रविष्टियों पर आपत्ति जताने वाली एक महिला एडिशनल जिला जज के अंतरवर्ती आवेदन पर झारखंड हाईकोर्ट से जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता अनुसूचित जाति वर्ग से […]

नई दिल्लीJun 14, 2025 / 03:47 pm

Nitin Kumar

Supreme Court

खेतड़ी ट्रस्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश ( फोटो- एएनआई)

चाइल्ड केयर लीव का मामला

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड केयर लीव अस्वीकृति के एक मामले में रिट याचिका दायर करने के बाद वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) में नकारात्मक प्रविष्टियों पर आपत्ति जताने वाली एक महिला एडिशनल जिला जज के अंतरवर्ती आवेदन पर झारखंड हाईकोर्ट से जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता अनुसूचित जाति वर्ग से है और एकल अभिभावक है। उन्होंने जून से दिसंबर तक 194 दिनों की चाइल्ड केयर लीव मांगी थी, लेकिन हाईकोर्ट ने केवल 92 दिन की छुट्टी मंजूर की, जिसे लेकर दायर रिट याचिका पर सीजेआइ बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने 29 मई को झारखंड राज्य और झारखंड हाईकोर्ट को नोटिस जारी किया था।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस मनमोहन की अवकाश पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि रिट याचिका दायर करने के बाद एसीआर में ‘परफॉर्मेंस काउंसलिंग’ जैसी टिप्पणी दर्ज की गई, जबकि उनका अब तक का प्रदर्शन बेहतरीन रहा है, जिसमें 4,660 मामलों का निपटारा शामिल है। जस्टिस मनमोहन ने सुझाव दिया कि अब उठाया जा रहा मुद्दा मूल रिट याचिका की विषय-वस्तु के अंतर्गत नहीं आता है इसलिए अंतरवर्ती आवेदन (आइए) किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता ने अंतरवर्ती आवेदन कर अदालत को अवगत कराया। अदालत ने इसे स्वीकार कर लिया।
हाईकोर्ट ने हलफनामे में कहा कि छुट्टी के आवेदन पर पुनर्विचार कर 10 जून से 9 सितंबर 2025 तक 92 दिन की छुट्टी स्वीकृत की गई है। हाईकोर्ट की ओर से पेश हुए एडवोकेट ने कहा कि बाल देखभाल नियमों के अनुसार 730 दिन की छुट्टी एक अधिकारी अपने पूरे करियर में ले सकता है, न कि एक बार में। इसके अलावा वह जिले की प्रमुख हैं और लंबी अनुपस्थिति से न्यायिक कार्य प्रभावित होगा। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका और आइए पर हाईकोर्ट को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा और मामले को अगस्त के पहले सप्ताह में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।

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