ये हैं दस कानून जो प्रभावी हुए हैं
तमिलनाडु मत्स्य विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2020 तमिलनाडु पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2020तमिलनाडु विश्वविद्यालयों का कानून (संशोधन) अधिनियम, 2022 तमिलनाडु डॉ. अंबेडकर विधि विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2022तमिलनाडु डॉ. एमजीआर. चिकित्सा विश्वविद्यालय, चेन्नई (संशोधन) अधिनियम, 2022 तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2022तमिल विश्वविद्यालय (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 2022 तमिलनाडु मत्स्य विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2023तमिलनाडु पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2022 तमिलनाडु विश्वविद्यालय कानून (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 2022
कुलपति नियुक्त करने का अधिकार मिला सरकार को
नए अधिसूचित कानूनों के तहत, तमिलनाडु सरकार को 18 राज्य विश्वविद्यालयों के लिए कुलपति नियुक्त करने का अधिकार मिल गया है। यह अधिकार पहले राज्यपाल के पास था, जो इन संस्थानों के कुलाधिपति के रूप में कार्य करते हैं। हालांकि, कुछ विश्वविद्यालयों में, राज्यपाल कुलपति खोज समिति में एक सदस्य को नामित करके अपनी बात रखना जारी रखेंगे।
बन गया इतिहास
डीएमके के राज्यसभा सांसद पी विल्सन ने ट्वीट किया, “यह इतिहास बन गया है क्योंकि भारत में किसी भी विधानमंडल के ये पहले अधिनियम हैं जो राज्यपाल व राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बिना सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के आधार पर प्रभावी हुए हैं।” विल्सन इस मामले में पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं में से एक थे।
राष्ट्रपति के पास दो विधेयक
जिस समय राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की, उस समय विधानसभा द्वारा पारित 12 विधेयक राज्यपाल के पास लंबित थे, जिनमें से दो विधेयक 2020 की शुरुआत में ही पारित हो गए थे। राज्यपाल और राज्य सरकार को इस मुद्दे को सुलझाने के लिए न्यायालय की सलाह के बाद, राज्यपाल ने 12 में से 10 विधेयकों पर अपनी सहमति रोक दी और उन्हें विधानसभा को वापस कर दिया था्र जबकि शेष दो को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखा। अब राष्ट्रपति के पास चेन्नई विश्वविद्यालय अधिनियम और सिद्धा, आयुर्वेद, यूनानी, योग और प्राकृतिक चिकित्सा तथा होम्योपैथी के लिए विश्वविद्यालय की स्थापना और निगमन का विधेयक लम्बित है।लौटाए गए दस बिलों को 18 नवंबर 2023 को विधानसभा में फिर से पारित कर राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा गया था। हालांकि, राज्यपाल ने सभी दस विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रख लिया।
फिर से पारित विधेयकों को रोकने का अधिकार नहीं
राष्ट्रपति ने बाद में सात विधेयकों पर अपनी स्वीकृति रोक दी, एक को मंजूरी दी और दो को अनिर्णीत छोड़ दिया था। राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि राज्यपाल के पास संविधान के तहत उन विधेयकों को सुरक्षित रखने का कोई अधिकार नहीं है, जिन पर विधानसभा द्वारा पुनर्विचार किया गया हो और जिन्हें फिर से पारित किया गया हो। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि तमिलनाडु के राज्यपाल की ओर से भेजे गए 10 विधेयकों पर राष्ट्रपति ने अगर कोई कार्रवाई की है, तो वह भी गैरकानूनी है। अपने फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यपाल के लिए विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए बाहरी समय सीमा निर्धारित की, जो संदर्भ के आधार पर एक महीने से तीन महीने तक हो सकती है।