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भारत में सड़क हादसों के कारण और भी हैं

सड़कें राष्ट्र की वे धमनियां हैं, जिनसे होकर ही विकास रूपी रक्त प्रवाहित होता है। यह हम सब भलीभांति जानते हैं। इसके बावजूद अध्ययन और आंकड़े बताते हैं कि खराब सड़कों के कारण वाहनों की मरम्मत और अस्त-व्यस्त यातायात के कारण ईंधन पर अतिरिक्त खर्च का अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान उठाना पड़ता है।

जयपुरFeb 10, 2025 / 08:48 pm

Nitin Kumar

नितिन कुमार मित्तल
लेखक राजस्थान पत्रिका में सीनियर न्यूज एडिटर हैं
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एक बार फिर बात हुई सड़क सुरक्षा की। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की ओर से इस वर्ष सड़क सुरक्षा सप्ताह नहीं, बल्कि माह का आयोजन किया गया। यह 1 जनवरी से शुरू होकर 31 जनवरी तक चलाया गया। इस दौरान देशभर में होने वाले सभी सड़क सुरक्षा आयोजनों का लक्ष्य हमेशा की तरह सड़क सुरक्षा गतिविधियां, प्रशिक्षण, कार्यशालाएं, सेमिनार, नेत्र जांच शिविर और एडवोकेसी कार्यक्रम आयोजित करना था, वह भी हमेशा की तरह मुख्य रूप से वाहन चालकों और स्कूल जाने वाले बच्चों आदि के लिए। क्योंकि यह मान लिया गया है कि सड़क हादसों में जख्मी होने वाले और मरने वाले लोगों की संख्या कम करने में सबसे ज्यादा मदद इसी से मिलेगी।
यही वजह है कि भारत में सड़क हादसों की बात करें तो मुख्य रूप से ओवरस्पीडिंग और लापरवाह ड्राइविंग, नशे में ड्राइविंग, हेलमेट और सीट बेल्ट से जुड़ी लापरवाही, सिग्नल और ट्रैफिक लाइट के उल्लंघन, गलत दिशा में वाहन चलाना, मोबाइल फोन का उपयोग, नाबालिगों द्वारा ड्राइविंग, अधिक यात्री या सामान ले जाना आदि कारण गिनाए जाते हैं। ये सभी कारण हमारे इर्द-गिर्द मौजूद हैं भी। यह एक तथ्य है और इसे नकारा नहीं जा सकता।
स्वयं केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी दिसंबर में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान प्रश्नकाल के दौरान भारत में सड़क दुर्घटनाओं के बढ़ते मामलों को लेकर विदेशों में सम्मेलनों के दौरान शर्मिंदगी होने की बात कह चुके हैं। पर ऐसा नहीं है कि सड़क हादसों के पीछे अन्य कारण मौजूद नहीं हैं, या फिर जो हैं वे गौण हैं। देश में सभी सड़क सुरक्षा अभियानों के केंद्र में जिन अन्य कारणों को अक्सर कमतर आंका जाता है उनका नाता व्यवस्थागत खामियों, भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी और आधारभूत ढांचे की कमियों से है, जिनके बारे में जानते तो सभी हैं, पर जिन्हें मानना चाहिए वे मानने को तैयार नहीं हैं। एक तरफ भांकरोटा अग्निकांड, दूसरी तरफ जयपुर के डीटीओ के ठिकानों से भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को करोड़ों की संपत्ति के दस्तावेज मिलना और सीबीआइ का बीते साल मार्च में महाराष्ट्र के नागपुर में 20 लाख की रिश्वतखोरी के मामले में एनएचएआइ के दो अधिकारियों और जून में मध्य प्रदेश के छतरपुर में 10 लाख की रिश्वतखोरी के मामले में प्रोजेक्ट डायरेक्टर व कंसलटेंट को गिरफ्तार करना बानगी हैं सड़क सुरक्षा के जिम्मेदारों की अपनी जिम्मेदारी के प्रति उदासीनता और लोगों की जिंदगियों के साथ खिलवाड़ की प्रवृत्ति की। सड़क हादसों के पीछे के इन कारणों में यातायात सिग्नल और संकेतों की खामियां, सड़क डिजाइन और बुनियादी ढांचे की कमियां, हाईवे और प्रमुख सड़कों से जुड़ी समस्याएं जैसे गलत जगह कट या सही जगह यू-टर्न या कट न होना, हाईवे पर स्पीड ब्रेकर का अवैध रूप से होना या गलत जगह होना, हाईवे पर उचित सर्विस लेन की कमी, सड़क पर अव्यवस्थित पार्किंग और अतिक्रमण, खराब सड़क और रखरखाव की कमी, अपर्याप्त या गलत रोड लाइटिंग आदि शामिल हैं।
समझने की जरूरत है कि सड़क हादसों का कारण सिर्फ वाहन चालकों की गलती नहीं होती, बल्कि गलत यातायात प्रणाली, सड़क डिजाइन की खामियां, बुनियादी ढांचे की कमजोरियां भी बड़ी दुर्घटनाओं का कारण बनती हैं। ऐसे में यह सवाल भी वाजिब है कि सड़क खराब होने या सड़क पर गड्ढे होने के चलते वाहन के रखरखाव पर जो खर्च होता है उसे क्या बीमा कंपनियों को वहन नहीं करना चाहिए? यानी वाहन मालिक सारे टैक्स दे ताकि सड़कें दुरुस्त रहें, वाहन का बीमा कराए, प्रीमियम अदा करे और इस सबके बावजूद खराब सड़कों पर आवाजाही के कारण वाहन को जो नुकसान पहुंचे उसकी भरपाई भी अपनी जेब से करे।
यहां उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में बीते वर्ष 11 नवंबर की रात हुए भीषण सड़क हादसे का उल्लेख जरूरी लगता है क्योंकि इस रोंगटे खड़े कर देने वाले हादसे में तीन युवक और तीन युवतियों की दर्दनाक मौत हो गई थी। इस मामले में जांच के बाद एक ओर पुलिस ने ओवरस्पीडिंग और नशे में ड्राइविंग के आरोपों को खारिज किया तो दूसरी ओर खुलासा किया कि युवाओं की कार जिस कंटेनर से टकराई थी उसका फिटनेस सर्टिफिकेट 2013 में और नेशनल परमिट 2015 में ही खत्म हो गया था। इससे जाहिर है कि सड़क सुरक्षा तभी संभव है जबकि पूरा सिस्टम सही तरीके से काम करे। हाल ही जयपुर में वाहनों को फिटनेस का प्रमाण पत्र देने वाले दो फिटनेस सेंटरों की जांच में खामियों का उजागर होना और छह माह के लिए दोनों सेंटरों को निलंबित करने की राज्य परिवहन विभाग से सिफारिश करना भी इसी बात को पुख्ता करता है कि यदि हम वाकई सड़कें सुरक्षित चाहते हैं तो पूरे सिस्टम को ही दुरुस्त करना होगा।
सड़कें राष्ट्र की वे धमनियां हैं, जिनसे होकर ही विकास रूपी रक्त प्रवाहित होता है। यह हम सब भलीभांति जानते हैं। इसके बावजूद अध्ययन और आंकड़े बताते हैं कि खराब सड़कों के कारण वाहनों की मरम्मत और अस्त-व्यस्त यातायात के कारण ईंधन पर अतिरिक्त खर्च का अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। यह नुकसान भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर वाहन चालकों को ही वहन करना पड़ता है। आइआइएम कोलकाता और ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (टीसीआइ) की संयुक्त स्टडी रिपोर्ट ‘भारत में सड़क द्वारा माल परिवहन की परिचालन दक्षता’ के 2016 में जारी तीसरे संस्करण के अनुसार, भारत को हर साल सड़क पर देरी की वजह से 6.6 अरब डॉलर और इसके कारण अतिरिक्त ईंधन उपभोग पर 14.7 अरब डॉलर तक खर्च करने पड़े हैं।
सड़क सुरक्षा माह का मौजूदा स्वरूप सड़क दुर्घटनाएं रोकने की सारी जिम्मेदारी वाहन चालकों पर ही डाल देने वाला है। इसका उद्देश्य चालकों को जागरूक करना कम और अपराधबोध कराने की कोशिश अधिक मालूम पड़ता है। इसे सालाना रस्मअदायगी भी कह सकते हैं क्योंकि जनवरी में वाहन चालकों को जागरूक करने की औपचारिकता के बाद 31 मार्च तक टारगेट पूरे करने के लिए चालान काटने की मुहिम शुरू हो जाती है। बेहतर होगा कि इस माह के दौरान सड़क सुरक्षा से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर की तमाम खामियों को जानने, इस बारे में सुनने और सुधार करने के प्रति तत्परता और दृढ़ इच्छाशक्ति भी जागृत की जाए और संकल्प के साथ धरातल पर उतारा जाए।

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