पिछले सात वर्षों में, चीन ने चार बार अरुणाचल प्रदेश की विभिन्न जगहों के नाम बदलने की कोशिश की है। पहली बार 2017 में, जब उसने छह स्थानों के नाम बदले थे। दूसरी बार 2021 में, जब 15 स्थानों के नाम बदले थे। तीसरी बार अप्रेल 2023 में, जब 11 स्थानों के नाम बदले और चौथी बार नौ महीने पहले, जब 30 स्थानों के नाम चीन ने बदल दिए थे। चीन की इस रणनीति का मकसद न सिर्फ भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने दावों को वैध साबित करना भी है। नाम बदलने की यह चाल खासकर तब ज्यादा देखने को मिलती है, जब सीमा विवाद को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा होती है। इसके जरिए चीन यह संदेश देना चाहता है कि ये क्षेत्र उसके भू-राजनीतिक इतिहास का हिस्सा हैं। इसके पीछे चीन का एक और खास उद्देश्य है, वह अपने नागरिकों के बीच राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा देता है। वह ऐसे कदम उठाकर घरेलू राजनीति में समर्थन जुटाने की कोशिश करता है। साथ ही, द्विपक्षीय बातचीत में अपनी शर्तें थोपने के लिए इन क्षेत्रों को विवादित क्षेत्र मानने से भी इनकार करता है। हालांकि, भारत ने हमेशा यह स्पष्ट किया है कि नाम बदलने से वास्तविकता नहीं बदलती है। भारत सरकार और कूटनीतिक तंत्र ने हर ऐसे प्रयास का विरोध किया है और यह संदेश दिया है कि भारत अपनी संप्रभुता से कोई समझौता नहीं करेगा।
एक खास बात देखने में आती है, जैसे ही चीन और भारत के बीच सब कुछ सामान्य चलने जैसा महसूस होता है या फिर चीन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आती है तो चीन की केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) द्वारा पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) की ओर से घुसपैठ शुरू हो जाती है। इसका बड़ा उदाहरण अप्रेल 2020 में पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ भी है। पीएलए और भारतीय सेना के बीच गतिरोध शुरू हो गया था, जो चार साल तक चला और इसमें 15 जून, 2020 का खूनी गलवान घाटी संघर्ष भी शामिल था, जिसमें भारत को अपने 20 सैनिक खोने पड़े थे। चीन के साथ-साथ हमें पाकिस्तान को लेकर भी सतर्क रहने की जरूरत है। 5 फरवरी, 2024 को संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रीय खुफिया निदेशक द्वारा जारी वार्षिक खतरा आकलन रिपोर्ट के अनुसार, चूंकि भारत के चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ संबंध नाजुक हैं, इसलिए इन तीन देशों के बीच युद्ध की आशंका है। ऐसा माना जा रहा है कि २०३५ तक भारत को चीन और पाकिस्तान दोनों मोर्चों पर युद्ध का सामना करना पड़ सकता है।
स्थानीय स्तर पर, सीमा क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों को सशक्त बनाना आवश्यक है। इन इलाकों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराकर पलायन रोका जा सकता है, जिससे वे राष्ट्रीय सुरक्षा में मदद करें। साइबर सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा क्योंकि चीन की साइबर क्षमताएं भारत के लिए खतरा बन सकती हैं। डिजिटल सुरक्षा के लिए साइबर विशेषज्ञों की नियुक्ति और नियमित अपडेटेड सिस्टम्स का उपयोग अनिवार्य है। सेना को स्थानीय भूगोल की जानकारी, मजबूत संचार सुविधाएं और खुफिया नेटवर्क पर ध्यान देना होगा। राष्ट्रीय सुरक्षा की यह लड़ाई सेना और नागरिकों की साझी जिम्मेदारी है।