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सम्पादकीय : चीन से रिश्तों की बहाली में सावधानी की दरकार

भारत और चीन के बीच हवाई सेवाओं की बहाली पर भी बातचीत हो रही है। पूर्वोत्तर में बाढ़ प्रबंधन के लिए आपस में हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा करना फिर शुरू किया जा रहा है।

जयपुरJun 22, 2025 / 08:25 pm

Neeru Yadav

इस हफ्ते रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के चीन दौरे से दोनों देशों के रिश्तों में और सुधार के आसार हैं। गलवान झड़प को लेकर चार साल तक तनावपूर्ण रिश्तों के बाद 2024 में बर्फ पिघलने की शुरुआत हुई थी, जब दोनों देशों में कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली समेत कुछ मुद्दों पर सहमति बनी थी। भारत और चीन के बीच हवाई सेवाओं की बहाली पर भी बातचीत हो रही है। पूर्वोत्तर में बाढ़ प्रबंधन के लिए आपस में हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा करना फिर शुरू किया जा रहा है। वीजा प्रक्रिया सुव्यवस्थित करने के साथ सांस्कृतिक, शैक्षणिक और मीडिया संपर्क बढ़ाने की कोशिश भी की जा रही है। गलवान झड़प के बाद लंबे समय तक राजनीतिक और सैन्य संवाद ठप रहने से रिश्तों पर छाई धुंध छंटना दोनों देशों के हित में है। भारत के साथ रिश्ते सुधारना चीन को अब ज्यादा जरूरी लग रहा है। अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की सख्त टैरिफ नीतियों ने उसके कारोबार का हिसाब-किताब बिगाड़ रखा है। वह भारत के साथ मिलकर आगे बढऩे की मंशा जता चुका है।
चूंकि राजनाथ सिंह शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के रक्षा मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने जा रहे हैं, उनका दौरा चीन के साथ रिश्ते सुधारने के अलावा वैश्विक समीकरणों के लिहाज से भी अहम है। एससीओ के सदस्य देशों में रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ईरान और बेलारूस शामिल हैं। यह बैठक भारत के लिए इन देशों के साथ रक्षा संबंधों के नए द्वार खोल सकती है। पाकिस्तान भी एससीओ का सदस्य है। बैठक में दूसरे मुद्दों के साथ आतंकवाद पर भी चर्चा होगी। विडंबना यह है कि आतंकवाद की नर्सरी चलाने वाले पाकिस्तान को चीन ने गले लगा रखा है। अमरीका भी संकीर्ण हितों को लेकर पाकिस्तान पर डोले डाल रहा है। वह ईरान के खिलाफ पाकिस्तान को अपने साथ खड़ा करना चाहता है। चीन और अमरीका के इस चक्रव्यूह से भारत को सतर्क रहने की जरूरत है।
चीन की विस्तारवादी नीतियां पहले से दक्षिण एशिया क्षेत्र में चिंताएं बढ़ा रही हैं। चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) प्रोजेक्ट के जरिए पाकिस्तान के अलावा नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार में जिस तरह पैर फैला रहा है, भारत की सुरक्षा और कूटनीति के लिए गंभीर खतरा है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी बीआरआइ का हिस्सा है। यह पाकिस्तान के बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को गिलगित-बाल्टिस्तान के रास्ते चीन के शिनजियांग से जोड़ता है। भारत इस गलियारे का विरोध करता रहा है। आशंका है कि ग्वादर बंदरगाह को चीन भविष्य में सैन्य ठिकाने के रूप में इस्तेमाल कर सकता है।
चीन की टेढ़ी चाल को देखते हुए सामान्य रिश्तों की बहाली की कोशिशों के दौरान भारत को फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाने की जरूरत है। सीमा विवाद को सुलझाए बगैर चीन के साथ रिश्ते पूरी तरह निरापद नहीं हो सकते। जब तक यह नहीं होता, आर्थिक और बहुपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर फोकस किया जा सकता है।

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