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सम्पादकीय : आतंकवाद पर एससीओ में दोहरा चरित्र उजागर

यह वाकई चिंताजनक है कि आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ मिलकर लड़ने का दावा करने वाले संगठन एससीओ में पहलगाम आतंकी हमले पर शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर छुपाने की कोशिश की जाती है।

जयपुरJun 29, 2025 / 07:59 pm

Neeru Yadav

Indian Prime Minister Narendra Modi with Chinese President Xi Jinping

Indian Prime Minister Narendra Modi with Chinese President Xi Jinping

आतंकवाद के मुद्दे पर चीन और पाकिस्तान का दोहरा चरित्र शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में उजागर हो गया। चीन में हुए सम्मेलन में संयुक्त बयान जारी नहीं किया जा सका, क्योंकि भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस पर दस्तखत से इनकार कर दिया। भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई कि इसमें पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र नहीं किया गया, जबकि पाकिस्तान के प्रांत बलूचिस्तान का मुद्दा थोपने की कोशिश की गई। पाकिस्तान अपने इस प्रांत में अस्थिरता के लिए भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाता रहा है। यह वाकई चिंताजनक है कि आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ मिलकर लड़ने का दावा करने वाले संगठन एससीओ में पहलगाम आतंकी हमले पर शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर छुपाने की कोशिश की जाती है। एससीओ के एक सदस्य (पाकिस्तान) को बचाने के लिए ऐसी कोशिश निंदनीय है।
भारत पहलगाम हमले को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठा रहा है। भारत चाहता था कि एससीओ के संयुक्त बयान में इस हमले को शामिल किया जाए, ताकि आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक सहमति बनाई जा सके। पाकिस्तान और चीन की मिलीभगत ने ऐसा नहीं होने दिया। कहा जा रहा है कि पाकिस्तान के इशारे पर चीन ने संयुक्त बयान में पहलगाम हमले के जिक्र से परहेज किया। दरअसल, चीन का पाकिस्तान प्रेम इस कदर बढ़ चुका है कि वह उसके लिए आंख मूंदकर कुछ भी करने को तैयार नजर आता है। उसने बलूचिस्तान के हालात से भी आंखें मूंद रखी हैं। बलूचिस्तान के संकट को आतंकवाद का रूप देकर पाकिस्तान वहां के लोगों पर हो रहे अत्याचारों पर पर्दा डालना चाहता है। खुद चीन पर शिनच्यांग में उइगुर मुस्लिमों के खिलाफ दमनकारी नीतियों को लेकर अंगुलिया उठती रही हैं।
एससीओ में चीन का दबदबा है। इसका इस्तेमाल वह अपने हित साधने के लिए ज्यादा करता है। सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ उसका पहले से 36 का आंकड़ा है। वह 2023 के एससीओ शिखर सम्मेलन में भारत की तरफ से मिला झटका भी नहीं भुला पा रहा है। तब भारत ने उसकी बेल्ट एंड रोड परियोजना (बीआरआइ) को समर्थन से इनकार कर दिया था।
विडंबना यह भी है कि एससीओ में आतंकवाद की परिभाषा को लेकर सदस्य देशों में मतभेद हैं। पाकिस्तान और चीन अपने बचाव में आतंकवाद के उन रूपों को नजरअंदाज करते हैं, जिनको लेकर खुद उन पर अंगुलियां उठती हैं या जो भारत के खिलाफ इस्तेमाल होते हैं। भारत हर तरह के आतंकवाद का समूल नाश चाहता है। एससीओ के सम्मेलन में राजनाथ सिंह ने दो टूक कहा कि आतंकवाद के अपराधियों और प्रायोजकों को जवाबदेह ठहराना ही होगा। इससे निपटने में दोहरे मापदंड नहीं होने चाहिए। यही दोहरे मापदंड एससीओ की दुखती रग हैं। जब तक इसका इलाज नहीं होगा, आतंकवाद के खिलाफ साझा लड़ाई मृग मरीचिका बनी रहेगी।

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