जब नेतृत्व जिम्मेदारी निभाता, तब संकट बनता अवसर


अहमदाबाद विमान हादसे के बाद एयर इंडिया का वैभव कायम रखने की चुनौती 12 जून के अहमदाबाद विमान हादसे की गहन जांच की आवश्यकता है। दुर्घटना से जुड़े सभी पहलुओं की जांच और समीक्षा के साथ-साथ प्रभावित परिवारों को उचित राहत मिलना भी निश्चित रूप से आवश्यक है और इसके साथ ही विमान कंपनी एयर इंडिया और उसके संचालक टाटा समूह को भी साख, विश्वसनीयता, प्रबंध कौशल, पारदर्शिता, नैतिकता आदि अनेक कसौटियों पर खरा उतरना होगा। यह केवल एक विमान कंपनी की ओर से संचालित एक उड़ान की दुर्घटना मात्र नहीं है। इसके साथ भारत के सर्वाधिक प्रतिष्ठित औद्योगिक घराने की, या यों कहें कि पूरे कॉर्पोरेट की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। उल्लेखनीय है कि एयर इंडिया की स्थापना मूल रूप से टाटा समूह ने ही 1932 में की थी। स्थापना के कुछ वर्षों में ही यह भारत का एक गौरवशाली प्रतिष्ठान बन गया और विश्व की बेहतरीन, सुरक्षित और उम्दा एयरलाइंस में इसकी गिनती होने लगी। जे.आर.डी. टाटा स्वयं संचालन संबंधी सभी पहलुओं में रुचि रखते थे और निरंतर सुधार की भावना से इसे विश्वस्तरीय सर्वश्रेष्ठ एयरलाइंस के समकक्ष खड़ा करने में सफल हुए थे। कालांतर में इस एयरलाइंस का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के रूप में प्रारंभिक कुछ वर्षों तक शानदार प्रदर्शन के बाद प्रशासनिक लाल फीताशाही, अदूरदर्शी सरकारी निर्णयों के कारण इसकी स्थिति बद से बदतर हो गई और हवाई यात्रियों ने इस एयरलाइंस से मुंह मोडऩा शुरू कर दिया। धीरे-धीरे भारत सरकार के लिए यह एक सफेद हाथी सिद्ध होने लगा तो सरकार ने इसे पुन: निजी हाथों को सौपने का निर्णय ले लिया। इस एयरलाइंस को पुन: लेने में टाटा समूह ने रुचि दिखाई और संभवत: व्यावसायिक लाभ-हानि के पहलुओं से ऊपर उठकर अपने ही द्वारा स्थापित इस एयरलाइंस को खरीदकर 2022 में अपने हाथों में ले लिया। समूह के इस निर्णय की पूरे भारत में प्रशंसा हुई और यह तब माना जाने लगा कि एयरलाइंस का खोया हुआ वैभव लौटकर आएगा और भारत की अपनी एक शानदार हवाई सेवा होगी।
एयर इंडिया निश्चय ही इस प्रक्रिया की ओर अग्रसर भी होने लगी। नए विमानों के लिए आर्डर दे दिए गए, स्टाफ में पुन: मनोबल का संचार होने लगा। आशा से अधिक गति में एअर इंडिया ने सुधार किए। निश्चित रूप में यह एक दीर्घकालिक और भारी पूंजीगत प्रयास है और इसमें कुछ और वर्षों का समय लगना अपेक्षित था कि 12 जून का हादसा घटित हो गया, जिसमें 241 यात्रियों की जान क्षण भर में चली गई। यह भयानक हवाई हादसा, विमानन और नागरिक उड्डयन के इतिहास में हुई भयंकरतम दुर्घटनाओं में से एक है। स्वाभाविक रूप से दुर्घटना से जुड़े कारणों पर विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जांच की जाएगी, समीक्षा भी होगी, जो ऐसी दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति की रोकने के लिए भी आवश्यक है। यह भी मानना होगा कि किसी भी प्रकार प्रकार की जांच, अभियोजन और मुआवजे से जान और माल के उस नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती जो इस दुर्घटना से हुआ है। विश्व में और ऐसे अनेक हादसे और प्राकृतिक आपदाएं हुई हैं, जो इससे भी व्यापक थे। किंतु इस हवाई हादसे ने विमानन कंपनियों को ही नहीं, सभी को स्तब्ध कर दिया। सबकी नजरें, खासतौर पर टाटा समूह पर टिकी हुई हैं। पूरे विश्व में टाटा की एक विशिष्ट पहचान है। अपने कोई 150 वर्ष से अधिक के इतिहास में समूह में अनेक झंझावातों का सामना किया है और हर बार कसौटी पर खरे उतरे हैं। इस दुर्घटना के तुरंत बाद भी समूह ने पूरी ईमानदारी, पारदर्शिता से दर्द का एहसास किया प्रतीत होता है।
दुर्घटना के तुरंत बाद शीघ्रता से टाटा समूह ने सभी मृतकों के लिए एक-एक करोड़ और उन्हीं की एयरलाइंस की ओर से अलग से 25-25 लाख रुपए की राशि की घोषणा की है। यह राशि, उस मुआवजा राशि से अतिरिक्त होगी जो मांट्रियल संधि के अनुसार मृतक हवाई यात्रियों के परिजनों को दी जाएगी। एक प्रारंभिक आंकलन के अनुसार यह राशि भी लगभग डेढ़ करोड़ रुपए से अधिक होगी। समूह और एयरलाइंस के अध्यक्ष एन. चन्द्रशेखरन स्वयं आगे रहकर हर परिस्थिति की समीक्षा कर रहे हैं। पूरे समूह का शीर्ष नेतृत्व भी इसी भावना का परिचय देता नजर आ रहा है। उनके इस सदाशयतापूर्ण आचरण से सहसा ही कोई सौ वर्ष पूर्व की उस परिस्थिति का भी स्मरण करा दिया है जब टाटा स्टील भयंकर तकलीफ में आ गई थी। प्रथम विश्व युद्ध के कुछ वर्षों बाद 1924-25 में अत्यधिक लागतें बढ़ जाने और यातायात तथा कामगारों की समस्याओं से जूझ रही टाटा स्टील का सारा गणित गड़बड़ा गया था। टाटा स्टील से भारी मात्रा में आयात करने वाले देश जापान में भीषण भूकंप ने ‘कोढ़ में खाज’ की स्थिति पैदा कर दी थी। कंपनी के रोजमर्रा के खर्चों के लिए भी पर्याप्त फंड उपलब्ध नहीं हो रहे थे। उसी समय कंपनी के जमशेदपुर कार्यालय से मुंबई स्थित मुख्यालय को टेलीग्राम मिला कि मजदूरों की मजदूरी देने भर के पैसे भी नहीं बचे हैं। संचालन मंडल की आपात बैठक में एक सदस्य ने सुझाव दे डाला कि हमें इस व्यवसाय को सरकार को सुपुर्द कर इससे अलग हो जाना चाहिए। आर.डी.टाटा ने मेज पर मुक्का मारते हुए खड़े होकर कहा कि मेरे जीवन काल में ऐसा कभी नहीं होगा। टाटा बंधुओं ने स्वयं कार्यशील पूंजी की व्यवस्था करने का बीड़ा उठाया। सर दोराबजी टाटा ने अपनी स्वयं की पूरी धन-दौलत इकट्ठी की जिसमें उनकी पत्नी के गहने भी थे और अपनी पूरी धन-दौलत जो उस समय की कोई एक करोड़ से अधिक की राशि थी, इंपीरियल बैंक में गिरवी रखकर कार्यगत पूंजी की व्यवस्था की। उनका यह निर्णय उस समय इसलिए बेमिसाल था क्योंकि टाटा स्टील की स्थापना के समय कंपनी की कुल पूंजी में टाटा समूह की पूंजी महज 11 प्रतिशत थी, जो 1925 तक आते-आते और काफी कम हो गई थी। यानी एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी की कार्यशील पूंजी की व्यवस्या करने के लिए स्वयं की निजी दौलत दांव पर लगा देने का यह एक अनुकरणीय उदाहरण था। जिसके परिणामस्वरूप देशव्यापी साख और भरोसा अर्जित किया गया और फिर टाटा स्टील और टाटा समूह ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। दोराबजी और आर.डी.टाटा की इसी सोच को जे.आर.डी. टाटा ने आगे बढ़ाया। उन्होंने भी कठिन से कठिन परिस्थिति में भी नैतिक मूल्यों से न समझौता किया, न करने दिया। एयर इंंडिया से अपने लगाव के चलते उसके राष्ट्रीयकरण हो जाने के बावजूद, इंदिरा गांधी के कहने पर उन्होंने इसका चेयरमैन बनना स्वीकार कर लिया लेकिन वे सरकार की कार्यशैली से नाखुश रहे। एक बार जब समूह की बोर्ड मीटिंग में एक भारी-भरकम टैक्स अदायगी पर विचार विमर्श चल रहा था तक कुछ सलाहकारों और ऑडिटर्स ने बताया कि कानूनी रूप से कंपनी उक्त टैक्स अदायगी के लिये बाध्य नहीं है और मुकदमा करके केस जीता जा सकता है तो जे.आर.डी. ने सवाल किया- क्या यह नैतिकता की दृष्टि से भी ठीक रहेगा? यह तथ्य सामने आया कि नैतिक दृष्टि से कंपनी को उक्त टैक्स की अदायगी कर देनी चाहिए- तुरंत जे.आर.डी. ने उस विषय पर अपना निर्णय दिया कि हमें निश्चित रूप से टैक्स की अदायगी कर देनी चाहिए।
जे.आर.डी के उत्तराधिकारी रतन टाटा ने भी समूह के नैतिक आदर्शों की हमेशा पालना की और उनको अगली ऊंचाई पर स्थापित किया। वर्ष 2008 में समूह के मुंबई स्थित प्रख्यात ताज होटल पर आतंकी हमले को हम कभी नहीं भुला पाएंगे। जिससे पूरा देश स्तब्ध हो गया था। रतन टाटा के व्यक्तिगत नेतृत्व में संपूर्ण ताज कर्मचारियों ने इस संकट में बेमिसाल उदाहरण पेश किया। वहां मौजूद अधिकारियों और कर्मचारियों ने अपने जीवन की परवाह किए बिना होटल में रुके मेहमानों को बचाने की कोशिश की। टाटा समूह ने उस आतंकी घटना से प्रभावित सभी मेहमानों और कर्मचारियों की पूरी तरह से संभाल ही नहीं बल्कि उन्हें पूरा आर्थिक, नैतिक और मनोवैज्ञानिक संबल भी पहुंचाया। रिकार्ड अवधि में पूरी प्रॉपर्टी को वापस मेहमानों की सेवा के लिय त्वरित गति से सज्ज किया। यह उनके कुशल प्रबंध कौशल और सहृदयता से ही संभव थी। ऐसे ढेरों उदाहरण है जिनके आधार पर पूर्ण विश्वास होता कि बड़े से बड़े संकट का सामना पूरी निष्ठा और ईमानदारी से किया जा सकता है। विश्वास है 12 जून को घटित इस दुर्घटना का भी इसी धैर्य और निष्ठा से सामना किया जाएगा। टाटा समूह एयर इंडिया के वैभव को कायम रखेगा।
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