संपादकीय : पैरेंटिंग कैलेंडर को लेकर सीबीएसई की सार्थक पहल
आज के दौर में बच्चों पर पढ़ाई को लेकर मानसिक तनाव जिस तरह से हावी होने लगा है, उसने अभिभावकों की चिंता भी बढ़ा दी है। स्कूली शिक्षा को बच्चों की नींव माना जाता है और नींव ही कमजोर हो जाए जो बच्चों के भविष्य की चिंताएं भी कम नहीं है। इसी चिंता को देखते […]


आज के दौर में बच्चों पर पढ़ाई को लेकर मानसिक तनाव जिस तरह से हावी होने लगा है, उसने अभिभावकों की चिंता भी बढ़ा दी है। स्कूली शिक्षा को बच्चों की नींव माना जाता है और नींव ही कमजोर हो जाए जो बच्चों के भविष्य की चिंताएं भी कम नहीं है। इसी चिंता को देखते हुए केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने बच्चों को पढ़ाई के दबाव से मुक्त रखने व उनकी शैक्षणिक प्रगति में साझेदारी के तहत स्कूलों से अभिभावकों को जोडऩे के इरादे को लेकर सत्र 2025–26 से पैरेंटिंग कैलेंडर जारी किया है। इस कैलेंडर के माध्यम से अभिभावकों का शिक्षकों से सतत संपर्क बनाए रखने की तैयारी की गई है। पैरेंटिंग कैलेंडर राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के उस भाव के अनुरूप है जिसमें कहा गया है कि अभिभावक व शिक्षकों की बेहतर भागीदारी से ही बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकता है। यह कहा जा सकता है कि इस तरह का कैलेंडर जारी होने में देरी हुई है फिर भी इसे उचित समय पर उठाया गया सही कदम कहा जा सकता है। इसकी बड़ी वजह यह है कि समुचित निगरानी व मार्गदर्शन के अभाव में कॅरियर को लेकर तनाव के चलते बच्चे कई बार अप्रिय कदम भी उठा लेते हैं।
यह सच है कि बच्चों की रुचियों तथा शैक्षणिक व सह-शैक्षणिक गतिविधियों में स्कूल प्रबंधन के साथ-साथ अभिभावकों की भी बड़ी जिम्मेदारी है। साथ ही अभिभावक अपने बच्चों को घर पर कैसा वातावरण देते हैं, यह जानना शिक्षकों के लिए भी उतना ही जरूरी है। खुले संवाद को प्रोत्साहन दिए बिना यह सब होना इतना आसान नहीं है। स्कूलों में होने वाली पैरेंट्स-टीचर्स मीट (पीटीएम) भी अधिकांशत: बच्चों की शैक्षणिक प्रगति की जानकारी देने तक ही सीमित रहती हैं। केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने जो कैलेंडर जारी किया है, उसमें बच्चों से जुड़े कई कार्यक्रमों में अभिभावकों की भागीदारी सुनिश्चित करना तय किया गया है। क्लास रूम से लेकर खेल मैदान तक भी। जाहिर है इसमें अभिभावकों को जोडऩे के लिए स्कूल प्रबंधन की भूमिका ही अहम होगी। सच यह भी है कि अभिभावकों की अपने बच्चों से कॅरियर को लेकर जरूरत से ज्यादा उम्मीदें भी बच्चों में कुंठा की बड़ी वजह बनती है। बच्चों को बेहतर शिक्षा मिले, इसके साथ ही उनका मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर रहे, इसकी जिम्मेदारी अभिभावक व शिक्षक समुदाय दोनों की है। पैरेंंटिंग कैलेंडर महज सुझावात्मक नहीं होना चाहिए। इस कैलेंडर के अनुरूप पालना हो सकी तो उम्मीद की जानी चाहिए कि स्कूल प्रबंधन और अभिभावकों के बीच बेहतर संवाद भी कायम हो सकेगा।
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