संपादकीय : टोल के जाल से मुक्त कराने के प्रयास भी हों
देश में एक अप्रेल से टोल दरों में परिवर्तन हो गया है। टोल की दरें आधा प्रतिशत से लेकर दस प्रतिशत तक बढ़ाई गई हैं। जब देश में टोल की कहानी शुरू हुई तो कहा गया था कि सड़क निर्माता कंपनी निर्माण लागत राशि वसूलने के बाद टोल वसूली बंद कर देगी, लेकिन ऐसा नहीं […]


देश में एक अप्रेल से टोल दरों में परिवर्तन हो गया है। टोल की दरें आधा प्रतिशत से लेकर दस प्रतिशत तक बढ़ाई गई हैं। जब देश में टोल की कहानी शुरू हुई तो कहा गया था कि सड़क निर्माता कंपनी निर्माण लागत राशि वसूलने के बाद टोल वसूली बंद कर देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सड़क निर्माण की लागत से भी ज्यादा की टोल वसूली हो रही है। जयपुर-दिल्ली नेशनल हाईवे इसका उदाहरण है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले दिनों संसद में इस बात को स्वीकार किया था कि पिछले सोलह वर्ष में इस मार्ग पर मंत्रालय ने सड़क बनाने के काम में 8919 करोड़ रुपए खर्च किए, जबकि टोल वसूली इससे कहीं ज्यादा 11945 करोड़ हो चुकी है। मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार गत पांच वर्ष में देशभर के टोल प्लाजा से कुल 1.93 लाख करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं। यह बात सच है कि देश में एक्सप्रेस-वे, आठ लेन, सिक्स लेन और हाईवे के निर्माण से आवागमन सुगम हुआ है। आला दर्जे के बुनियादी ढांचे के लिए टोल प्रणाली जरूरत सी बन गई है। राजमार्गों के निर्माण में निवेश करने वाली कंपनियां सड़कें भी आला दर्जे की बनाएं, यह भी उम्मीद की जाती है।
चिंता की बात यह है कि आधी-अधूरी सड़कों पर भी टोल वसूली जारी रहती है। जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख हाईकोर्ट के नेशनल हाईवे-44 के संबंध में दिया गया निर्णय इस संबंध में महत्त्वपूर्ण है, जिसमें उसने अधूरे बने हिस्से पर वसूली जा रही टोल राशि को 80 फीसदी तक घटाने के निर्देश दिए। हाईवे पर जहां-जहां भी निर्माण चल रहे हों और सड़कें टोल वसूली के पैमाने पर खरी नहीं उतरती हों, वहां भी टोल की दरें घटाई जानी चाहिए। सड़क निर्माण की लागत से ज्यादा टोल वसूली हो रही हो, टोल टैक्स देने के बावजूद क्षतिग्रस्त सड़कें हादसों का कारण बन रही हों और हाईवे पर घायलों को त्वरित उपचार का बंदोबस्त नहीं हो तो चिंता होना स्वाभाविक है। टोल वसूली में राहत देने के बजाय साल दर साल टोल की दरें बढ़ाने को तो मनमानी ही कहा जाएगा।
टोल रोड पर गुणवत्तापूर्ण सड़कें बनें। इनकी डिजाइन इंडियन रोड कांग्रेस के तय मानकों से तो हो ही, लेन सिस्टम की पूरी तरह पालना होना भी जरूरी है। हाल ही टोल वसूली में घोटाला भी उजागर हुआ है, जिसमें देशभर के 42 टोल नाकों पर एक सॉफ्टवेयर के माध्यम से अवैध वसूली का खेल सामने आया था। हालांकि ऐसे मामले भी सामने आए हैं जहां खासतौर से मालवाहक वाहन पुरानी सड़कों के वैकल्पिक मार्ग तलाश कर टोल बचा रहे हैं। सड़क की लागत वसूल होने पर टोल खत्म करने के बजाय अब टोल नाकों पर बिना रुके ऑटोमेटिक टोल वसूली की बातें की जा रही है। टोल के जाल से मुक्त कराने और टोल वसूली में मनमानी पर अंकुश लगाने के प्रयास तो कहीं नहीं दिखते। टोल वसूली कब तक पूरी तरह खत्म कर दी जाएगी, इसकी भी कोई न कोई अवधि तो तय होनी ही चाहिए।
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