हनुमान चालीसा उनका एक दिव्य अनुपम उपहार है, जिसके सहारे भक्त भगवान के धाम तक की यात्रा को सहजता से तय कर लेता है। यह चित्त शुद्धि का सबसे सरल और सबसे उत्कृष्ठ साधन है।
तुलसीदास जी ने लिखा है…बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन कुमार, बल बुद्धि विद्या देऊ मोहि हरेहू कलेष विकार… यानी हनुमान चालीसा का पाठ करने से अंत:करण शुद्ध हो जाता है। काम, क्रोध, मद, भय आदि का नाश होता है। भक्त अपने सहज स्वरूप में प्रतिष्टित हो जाता है। हमारी बुद्धि रितम्भरा हो जाती है। हनुमान चालीसा हमें प्रभु श्रीराम तक पहुंचाने का भी एक माध्यम हैं।
कुमति निवार सुमति के संगी…कुमति माने तमोगुणी बुद्धि समाप्त हो जाती है और सुमति प्राप्त होती है। बुद्धि सतोगुणी हो जाती है और जैसे ही यह अवस्था प्राप्त होगी, भक्त में ब्रह्म को धारण करने की योग्यता आ जाती है।
विद्यावान गुनी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर। प्रभु चरित्र सुनवै को रसिया, रामलखन सीता मन बसिया। ये हनुमान जी के ह़दय में श्रीराम, सीता और लक्षमण की भक्ति को दर्शाता है। अगर कोई हनुमान जी को अपना गुरू मान लेता है तो वे उसके सदगुरू बनकर उसे भगवान तक पहुंचाते हैं। क्योंकि ये हनुमान जी के बहुत प्यारे हैं।
तुलसीदास जी कहते हैं…राम रसायन तुम्हरे पासा। यानी सारा राम रसायन इनके पास ही है। और राम दुआरे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे… यानी हनुमान श्रीराम जी के दरवाजे के पहरेदार हैं। बिना उनकी अनुमति के भगवान के दरबार में प्रवेश संभव नहीं है।
हनुमान चालीसा का पाठ करने से सभी तरह के दुख दर्द मिट जाते हैं। तुलसीदास जी हनुमान चालीस के जरिए कलयुग में भक्तों को ऐसी नौका उपलब्ध कराई है, जो इसका नियमित पाठ करेगा उस पर हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त होना तय है।