विश्व गुरु बनने और ‘अतिथि देवो भव’ की बात करने वाला भारत इस कानून में एक बंद किले जैसा दिखता है। इस कानून की धारा 3 सबसे खतरनाक है। यह केंद्र सरकार को अधिकार देती है कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे आधारों पर किसी विदेशी को देश में आने या रहने से रोक सकती है। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती। इसमें एक खुला प्रावधान है कि सरकार बाद में अपने मन से कोई भी नया कारण जोड़ सकती है, बिना संसद की मंजूरी और बिना किसी जवाबदेही के। क्या यह लोकतंत्र है, जहां एक सरकारी आदेश हमारी संसद को ही दरकिनार कर दे? असली झटका तो वह धारा है, जिसमें कहा गया है कि एक आव्रजन अधिकारी का फैसला अंतिम होगा। कोई अपील या दलील नहीं।
सोचिए, एक अधिकारी की मर्जी से किसी का पासपोर्ट, उसकी पहचान, उसका भविष्य खत्म हो सकता है। क्या हम ऐसा भारत चाहते हैं, जहां एक सिपाही सुपर कमिश्नर बन जाए? धारा 3 (3) इस डर को और बढ़ाती है। यह कहती है कि आव्रजन अधिकारी किसी विदेशी से कभी भी, कहीं भी उसके दस्तावेज या कोई भी जानकारी मांग सकता है। ‘जरूरी’ क्या है, यह वही तय करेगा। क्या यह उत्पीडऩ की खुली छूट नहीं? यह कानून हमारे संविधान की आत्मा पर हमला है। अनुच्छेद 14 और 21 समानता और जीवन व स्वतंत्रता का अधिकार देते हैं, लेकिन इस कानून में विदेशी ऐसे दिखाए गए हैं, जैसे उनके कोई अधिकार ही नहीं हों। गोपनीयता, जो अनुच्छेद 21 का हिस्सा है, को यह पूरी तरह नष्ट कर देता है। धारा 8, 9 और 10 मकान मालिकों, स्कूल-कॉलेजों और अस्पतालों को विदेशियों की हर तरह की सूचना जुटाने के लिए कहती हैं। अगर कोई विदेशी विद्यार्थी पढ़ाई के लिए आता है या कोई पर्यटक बीमार पड़ता है तो उनकी हर जानकारी सरकार तक पहुंचेगी। क्या हम मेहमानों को ऐसा डर देना चाहते हैं?
इसके अलावा यह अधिनियम अपराधों से सुरक्षा, हिरासत के नियम और धर्म की आजादी की गारंटी देने वाले अनुच्छेद 20, 22 और 25 को अनदेखा करता है। क्या हमारा संविधान इतना कमजोर है कि उसे एक कानून आसानी से कुचल दे? धारा 7 तो और भी खतरनाक है। यह सरकार को विदेशियों के हर कदम को नियंत्रित करने की शक्ति देती है- वे कब आएं, कहां जाएं, किससे मिलें। धारा 17 परिवहन कंपनियों पर इतना कागजी बोझ डालती है कि छोटी सी गलती भी उन्हें भारी पड़ सकती है। धारा 26 में एक हेड कांस्टेबल को बहुत अधिक ताकत दी गई है। हालांकि इस अधिनियम में कुछ अच्छे प्रावधान भी हैंं। धारा 21, 23, 24 और 25 कुछ छोटे अपराधों को सुलझाने की सुविधा देती हैं, इसलिए इन्हें बचाए रखना चाहिए। लेकिन बाकी प्रावधान बहुत खतरनाक हैं। अगर इसे चुनौती दी गई, तो अदालत इसे असंवैधानिक करार दे सकती है।
हमारी अदालतें पहले भी मनमानी के खिलाफ खड़ी हुई हैं। अगर आज हम विदेशियों के अधिकार छीनने की इजाजत दे देंगे तो कल यही तंत्र हमारे अपने लोगों को निशाना बना सकता है। आज यह पर्यटकों या विद्यार्थियों पर नजर रखता है, कल यह हमारी आजादी पर पहरा बिठा सकता है। हमारी वैश्विक छवि भी दांव पर है। क्या हम चाहते हैं कि दुनिया हमें एक ऐसे देश के रूप में देखे, जो मेहमानों को दुश्मन समझता है? विश्व गुरु बनने का सपना तब टूट जाएगा, जब हम अपनी मेहमाननवाजी को भूल जाएंगे। यह अधिनियम सुरक्षा की आड़ में अराजकता लाएगा। हमें इसे सुधारना होगा, न केवल विदेशियों के लिए, बल्कि अपने लोकतंत्र की रक्षा के लिए। हमारा भारत वह देश है, जो सभी को गले लगाता है, न कि उन्हें डराता है। (राज्यसभा में सांसद डॉ. अभिषेक सिंघवी ने आव्रजन और विदेशी विधेयक 2025 पर हुई बहस के दौरान ये सभी मुद्दे उठाए थे)