हृदय रोगों से युवाओं की बढ़ती मौतें, असली कारण क्या हैं?
डॉ. राजीव गुप्ता, सीनियर फिजिशियन एवं आरयूएचएस जर्नल ऑफ हैल्थ साइंसेज के एडिटरयुवाओं में हृदयाघात और उनसे हो रही मौतों के लिए ऐसा कहा जा रहा है कि ये कोविड-19 या फिर कोरोना वैक्सीन के बाद के प्रभाव हैं। आम लोगों के इस अनुमान व धारणा के विपरीत वैज्ञानिक व चिकित्सकीय अनुसंधानों के इस संबंध […]
डॉ. राजीव गुप्ता, सीनियर फिजिशियन एवं आरयूएचएस जर्नल ऑफ हैल्थ साइंसेज के एडिटर
युवाओं में हृदयाघात और उनसे हो रही मौतों के लिए ऐसा कहा जा रहा है कि ये कोविड-19 या फिर कोरोना वैक्सीन के बाद के प्रभाव हैं। आम लोगों के इस अनुमान व धारणा के विपरीत वैज्ञानिक व चिकित्सकीय अनुसंधानों के इस संबंध में निष्कर्ष बताते हैं कि युवाओं में हृदय रोग के कारण केवल कोरोनाजनित नहीं, अपितु बहुमुखी हैं और ये मामले कोई नए भी नहीं हैं। भारत और कई पश्चिमी देशों में दशकों से शोध कर रहे हृदय रोग विशेषज्ञों के समूह का कहना है कि भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों के युवाओं में दिल की बीमारी के लक्षण पैदा होने के अनेक ज्ञात-अज्ञात कारण कोविड-19 से काफी पहले से विद्यमान हैं। भारत के युवाओं में तीव्रता से हृदय रोग बढऩे की प्रवृत्ति पिछले 70-80 सालों से दिख रही है। 50 के दशक के मध्य से ही देश के प्रमुख शहरों से ऐसे मामले सामने आते रहे हैं। द ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी वर्ष 1990 से 200 देशों में हृदयाघात और इसके कारण होने वाली मौतों के व्यवस्थित आंकड़े इक_ा करती आ रही है और यह भारत में हृदय रोग के कारण हो रही मौतों में लगातार बढ़ोतरी को इंगित करती है। इसके अनुसार 1990 में भारत में 15 से 54 आयु वर्ग में दिल के दौरे से एक लाख 91 हजार मौतें हुई थीं। यह आंकड़ा 2019 में डेढ़ गुना बढ़कर 2 लाख 86 हजार हो गया। उल्लेखनीय है कि ये आंकड़े कोरोना काल से पहले के हैं।
अब सवाल यह है कि युवाओं में हृदयाघात से हो रही असमय मौतों में कोविड-19 की क्या भूमिका है। कोविड के हृदय व रक्तवाहिकाओं पर पड़े प्रभाव के अध्ययनों का गहन विश्लेषण हमें बताता है कि इसका हृदय व रक्तवाहिकाओं संबंधी रोगों का जोखिम न्यूनतम रहा और इसने सिर्फ उन पर ही असर डाला, जो कोविड की तीव्र चपेट में थे। यह जोखिम भी तीव्र संक्रमण के शुरुआती 12 महीनों तक बना रहा और समय के साथ कम हो गया। आईसीएमआर का एक अध्ययन भी बताता है कि जिन लोगों में मामूली लक्षण ही पाए गए, वे जोखिम के दायरे में नहीं आए। भारत समेत कई देशों में लाखों लोगों पर किया गया एक अध्ययन दर्शाता है कि कोविड-19 वैक्सीन हृदय रोग के लक्षणों से बचाने में समर्थ रही है और वैक्सीन न लगवाने वालों में इस रोग के लक्षण एवं मृत्यु की दर वैक्सीन लगवाने वालों की तुलना में दोगुनी रही। दरअसल, भारतीय युवाओं में बढ़ते इन मामलों के कारण कुछ और ही हैं। दुनिया के 52 देशों में 21 वीं सदी की शुरुआत में किया गया हृदय संबंधी अध्ययन बताता है कि हृदय रोगों से असमय मौतों के पीछे जाने-पहचाने जोखिम भरे कारण- धूम्रपान, उच्च तनाव, कोलेस्ट्रोल में वृद्धि, मधुमेह, मोटापा, अस्वास्थ्यकर भोजन, आलसी जीवनचर्या और मनोवैज्ञानिक दबाव हैं।
भारत में हुए कुछ अन्य अध्ययनों ने भी इन कारणों की पुष्टि की है। कोविड दूसरे रूप में भारतीय समाज के लिए घातक और रोगजनक रहा है। उस दौर में, विशेषकर उम्रदराजों में सामाजिक दूरी व अलगाव से अवसाद में वृद्धि, मनोचिकित्सकीय विकार जैसे लक्षण उपजे। खान-पान की आदतें भी बदलीं। ये सब हृदय रोगों के लिए जोखिम कारक हैं और विकसित देशों के आंकड़े बताते हैं कि आदतों में इस बदलाव ने जोखिम को बढ़ाया। असमय हृदयाघात कोई नई नहीं, बल्कि दशकों से मौजूद बीमारी है। 1940-50 के दशक में असमय हृदयाघात के मामलों से जूझ रहे पूर्ण विकसित देश उचित उपायों से बीमारी की लक्षित औसत आयु को 40 से 60 वर्ष पर ले गए। हमें भी वैज्ञानिक अध्ययनों से सीख लेनी चाहिए। इन आकस्मिक मौतों के लिए सिर्फ कोविड को कोसना बंद कर देना चाहिए।
Hindi News / Prime / Opinion / हृदय रोगों से युवाओं की बढ़ती मौतें, असली कारण क्या हैं?