Opinion : जल संतुलन बनाने वाली होगी नदी जोड़ो परियोजना
देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती पर उनकी नदी जोड़ो संकल्पना को साकार करते हुए उत्तर प्रदेश की केन-बेतवा नदी जोडऩे की आधारशिला रख दी गई है। इसे जल प्रबंधन की दिशा में क्रांतिकारी पहल ही कहा जाना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि नदी जोड़ो योजना का लाभ आने वाली पीढ़ी को […]
देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती पर उनकी नदी जोड़ो संकल्पना को साकार करते हुए उत्तर प्रदेश की केन-बेतवा नदी जोडऩे की आधारशिला रख दी गई है। इसे जल प्रबंधन की दिशा में क्रांतिकारी पहल ही कहा जाना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि नदी जोड़ो योजना का लाभ आने वाली पीढ़ी को मिलेगा। हाल के वर्षों में देखा गया है कि देश के एक हिस्से को सूखे से जूझना पड़ता है, तो दूसरे को बाढ़ जैसी आपदा से। ऐसी योजना से इस तरह के जल असंतुलन को दूर करने में मदद मिलेगी। वर्ष 2016 में डॉ. महिर शाह समिति की रिपोर्ट में वर्ष 2050 में देश में पानी आवश्यकता और उपलब्धता का जिक्र करते हुए भविष्य के संकट को लेकर पहले ही आगाह कर दिया गया था। नदी जोडऩे की योजनाएं निश्चित ही ऐसे संकट को कम करने में अहम भूमिका निभाने वाली होगी।
वर्ष 2002 में तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने इस दिशा में काम शुरू किया था, लेकिन बाद में यह योजना अटक गई। इसके करीब 2 दशक बाद 22 मार्च, 2021 को मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने परियोजना के लिए त्रिपक्षीय समझौता किया था। करीब 44 हजार करोड़ रुपए की लागत वाली इस परियोजना से लगभग 61 लाख लोगों को पीने का पानी तो मिलेगा ही, साथ में रोजगार के तमाम अवसर भी मुहैया होंगे। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि दशकों से विकास की मुख्यधारा में शामिल होने की राह देख रहे सूखाग्रस्त बुंदेलखंड में भूजल की स्थिति में सुधार होगा और आर्थिक और सामाजिक विकास की नई राह खुलेगी। इसके अलावा हाशिए पर आए एक बड़े इलाके में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। वैसे तो नदी जोडऩे की यह योजना काफी व्यापक और दीर्घकालीन है।
देश की करीब 36 नदियों को जोडऩे की बात कही जाती रही है, लेकिन इस राह में चुनौतियां भी कम नहीं हैं। देश के कुछ पर्यावरणविद् सरकार की इस योजना से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि नदियों का अपना इकोसिस्टम होता है। इन्हें आपस में जोडऩे से यह बिगड़ेगा और एक बड़ा पर्यावरणीय संकट पैदा हो सकता है। यह एक पारिस्थितिकी आपदा को बुलाने जैसा होगा। इसके लिए वे ऑस्ट्रेलिया की स्नोई नदी परियोजना की विफलता का जिक्र करते हैं, जिसका प्रवाह 99 फीसदी कम हो गया था और नदी की पुनर्बहाली के लिए लाखों रुपए खर्च करने पड़े थे। नदी जोडऩे की इस अहम योजना के लिए सामने आ रहे तर्क-वितर्कों के बीच इस बात का खास ध्यान रखने की जरूरत है कि यह देश में अपनी तरह की पहली परियोजना है। इसकी सफलता पर ही ऐसी दूसरी परियोजनाओं का भविष्य टिका हुआ है। ऐसे में क्रियान्विति पर निगाह रखनी होगी।
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