यह समस्या किसी एक शहर की नहीं है। जयपुर, जोधपुर, उदयपुर और कोटा जैसे तेजी से बढ़ते शहरों में ज्यादा इसलिए हो गई है क्योंकि सरकार खुद वर्टिकल विकास की नीति को बढ़ावा दे रही है। जाहिर है, ऐसे विकास में बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान देना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। हैरत की बात यह है कि पिछली कांग्रेस सरकार मल्टीस्टोरी में जल कनेक्शन के मामले में बाकायदा नीति जारी कर चुकी है। सवाल यह है कि जब जलदाय विभाग के पास पर्याप्त पानी ही नहीं है तो जल कनेक्शन की नीति जारी करने का दिखावा क्यों किया गया। सीधे-सीधे इसे जनता के साथ छल ही कहा जाएगा।
मामला केवल तकनीकी या प्रशासनिक ढिलाई का नहीं, बल्कि आम जनता के भरोसे का है। लोगों ने अपनी जीवनभर की पूंजी इन मल्टीस्टोरीज में यह सोचकर लगाई कि कम से कम सरकार द्वारा अनुमोदित योजनाओं में तो पानी जैसी मूलभूत सुविधा तो सुनिश्चित होगी। मल्टीस्टोरीज में सरकारी जलापूर्ति नहीं होने के कारण भू-जल का भी अत्यधिक दोहन हो रहा है।
जलदाय विभाग को राजस्व से वंचित होना पड़ रहा है सो अलग। इनमें रह रहे लाखों परिवार पानी के लिए बोरवेल या टैंकरों पर ही निर्भर हैं। चिन्ताजनक यह भी है कि जलदाय विभाग के इंजीनियर खुद कह कर रहे हैं कि लोग आवेदन कर सकते हैं, लेकिन पानी होगा तब कनेक्शन मिलेगा। जलदाय मंत्री भी कह चुके कि मल्टीस्टोरी में जल कनेक्शन पर विभाग के अफसरों से मंथन चल रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस मंथन से फ्लैट्स में रहने वाले लोगों को जल रूपी अमृत जल्द ही नसीब हो सकेगा।
आशीष जोशी: ashish.joshi@epatrika.com