चिकित्सा और वैज्ञानिक विकास के इस युग में जीवन प्रत्याशा में वृद्धि व रुग्णता में कमी सार्वजनिक स्वास्थ्य की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक मानी जाती है। नवीनतम उपचार तकनीक के साथ टीकों का विकास इस प्रगति के मुख्य सोपान रहे हैं। टीके 30 से अधिक जानलेवा बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करते हैं। ‘सभी के लिए टीकाकरण मानवीय रूप से संभव है’ के बैनर तले विश्व टीकाकरण सप्ताह 2025 का उद्देश्य टीकाकरण के प्रति जागरूकता बढ़ाना और इसे बच्चों, किशोरों, वयस्कों और उनके समुदायों सभी के लिए सुलभ बनाना है। यह हर साल अप्रेल के अंतिम सप्ताह में मनाया जाता है और इसका मुख्य लक्ष्य टीके से रोके जा सकने वाले रोगों से बचाव सुनिश्चित करना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2021 में पूरे विश्व से 2,41,742, वर्ष 2022 में 3,81,029 तथा वर्ष 2023 में 3,84,785 मम्प्स के मामले रिपोर्ट किए। वास्तविक संख्या अधिक हो सकती है क्योंकि कई देशों में यह नॉटिफिएबल बीमारी नहीं है, जहां इसकी सूचना नहीं दी जाती।
डिप्थीरिया के मामलों की संख्या भी धीरे-धीरे बढ़ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन को दी जानकारी के अनुसार भारत में वर्ष 2021 में 1768, वर्ष 2022 में 3286 डिप्थीरिया के मामले सामने आए। वर्ष 2023 में यह संख्या बढ़कर 3850 हो गई। कई बार इनका दस्तावेजीकरण भी नहीं होता। विश्वभर में डिप्थीरिया के पचास फीसदी से ज्यादा मामले भारत में मिलते हैं। अन्य वायरस जनित संक्रामक रोग खसरा के भी दुनियाभर में मामले बढ़ रहे हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमरीकी रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (सीडीसी) की संयुक्त रिपोर्ट में पाया गया कि वर्ष 2023 में विश्वभर में खसरे के एक करोड़ तीन लाख मामले थे, जो साल 2022 से 20 फीसदी अधिक हैं। पिछले साल 2024 में भी इन रोगों के मामलों में विभिन्न क्षेत्रों में अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई , जिसके आधिकारिक आंकड़े आना अभी बाकी है लेकिन इनका फिर से उभरना हमें सावचेत होने के लिए इशारा कर रहा है।
संक्रामक रोगों के बढऩे की संभावित वजह प्रतिरोधी टीकों के कवरेज में कमी, प्रतिरक्षा प्रणाली में कमी या जीवाणु के स्वरूप में परिवर्तन के साथ इसका दवा प्रतिरोधी होना हो सकता है। टीकाकरण कवरेज में कमी का बीमारी के नए सिरे से उभरने के बीच सीधा संबंध बताया जाता है क्योंकि अपूर्ण टीका कवरेज से बचाव की चैन टूट जाती है, जिससे इन रोगों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है और संचरण का मौका मिल जाता है। बदलते परिदृश्य में अब इस बिंदु पर भी विचार करना होगा कि जनसांख्यिकीय और जलवायु परिवर्तनों ने संक्रामक रोगों के जोखिम को किस हद तक बढ़ा दिया है । तेजी से हो रहे शहरीकरण और भीड़-भाड़ युक्त रहन सहन ने संक्रामक रोगों के उभरने और संचरण में मदद की है। हमने कोरोना, स्वाइन फ्लू जैसी कई महामारियां देखी हैं, जिनका जीवन और आजीविका पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। इन संक्रामक रोगों के कहर से बचाने में सार्वभौमिक टीके एक वरदान की तरह साबित हुए हैं। टीकाकरण कवरेज बढऩे के साथ रोग का प्रकोप घटता है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य विभागों को अब अच्छी तरह से संगठित होकर निदान व नियंत्रण कार्यों के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए ताकि टीकाकरण अभियान अपने लक्ष्य को हासिल कर सके। इसके लिए जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य प्रणालियों का मजबूत होना जरूरी है। टीकाकरण को लेकर चलाए जा रहे अभियानों में आमजन की भूमिका बेहद महत्त्वपूर्ण है, पोलियो जैसे अभियान में आमजन की भागीदारी और प्रतिबद्धता के चलते ही देश को पोलियो मुक्त बनाया जा सका है। इसलिए सरकार के साथ-साथ आमजन को भी अपना पूरा सहयोग करना होगा क्योंकि आखिर यह उनके अपने स्वास्थ्य का सवाल है ताकि संक्रामक रोगों के खिलाफ उपलब्ध व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम का पूर्ण अनुपालन इस तरह सुनिश्चित किया जा सके कि नियमित टीकाकरण के साथ-साथ बूस्टर डोज भी न छूटे।