Opinion : सामाजिक ताने-बाने में विकृति की भयावह तस्वीर
यौन हिंसा को लेकर सख्त कानून बनने के बावजूद जब केरल में तेरह साल की बच्ची से दरिंदगी जैसी घटनाएं होती हैं तो लगता है कि कड़े कानून का खौफ भी यौनाचारियों को नहीं डरा रहा। पूरे देश को झकझोरने वाली इस घटना ने सामाजिक ताने-बाने में आ रही उस विकृति का खुलासा भी किया है जिसमें मर्यादाएं और नैतिकता ताक में रखी जाने लगी है। पांच साल में 64 लोगों की हवस का शिकार बनी इस किशोरी ने आपबीती नहीं सुनाई होती तो हो सकता है समाज में पनप रहे ऐसे भेडि़ए खुले ही घूम रहे होते। पहले निर्भया कांड, उसके बाद कोलकाता में रेजीडेंट डॉक्टर से बलात्कार के बाद हत्या और अब केरल में यौन शोषण की यह वारदात समाज को आईना दिखाने वाली है। यह आईना इसलिए भी दिखाना जरूरी हो जाता है क्योंकि अपने आस-पड़ोस से लेकर स्कूल ओर कार्यस्थल तक यौन शोषण की घटनाएं आए दिन सामने आने लगी हैं। अबोध बच्चियां अपने घर में ही सुरक्षित नहीं रह पाएं और नजदीकी रिश्तेदारों की बुरी नजर की शिकार हो जाएं, शिक्षा केंद्र भी यौन शोषण के स्थान बनने लगें और कार्यस्थलों पर भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हों तो इससे ज्यादा डराने वाला विषय और क्या होगा?
बाल कल्याण समिति की ओर से स्कूल में की गई काउंसलिंग में बालिका ने इस रूह कंपा देने वाली वारदात का खुलासा किया तब जाकर पुलिस से लेकर राष्ट्रीय महिला आयोग तक हरकत में आया है। लेकिन हकीकत यह भी है कि ज्यादातर शिक्षण संस्थाओं में इस तरह की काउंसलिंग या तो होती ही नहीं और होती भी है तो खानापूर्ति बनकर रह जाती है। लोकलाज के डर से यौन हिंसा की पीडि़ताएं सामने नहीं आती हैं। लंबे समय तक ब्लैकमेल की शिकार केरल की इस बालिका ने जो साहस दिखाया उसने ही इंसानों के भेष में बैठे हैवानों को उनकी सही जगह पहुंचाने का रास्ता खोला है। लेकिन समाज में बदनामी का डर व दरिंदों की ओर से मिलने वाली धमकियां यौन शोषण के ऐसे अनगिनत मामलों को दबाए रखती हैं। कोई बालपन में ही दरिंदों की यौन कुंठाओं का शिकार हो जाए तो भावी जीवन में उसकी मन:स्थिति कैसी रहने वाली होगी, इसका भी अंदाजा लगाया जा सकता है।
दरअसल, महिला सुरक्षा को लेकर बने कानून-कायदे अपनी जगह हैं। सख्त कानूनी प्रावधान होने के बावजूद बलात्कार के आरोपी तक कई बार बच निकलते हैं। इंटरनेट पर परोसी जाने वाली अश्लील सामग्री भी कम जिम्मेदार नहीं। ऐसी घटनाओं के प्रति समाज, पुलिस, सरकार व मीडिया सभी स्तरों पर सजगता व संवेदनशीलता ज्यादा जरूरी है।
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