scriptपत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – मतदाता अग्रणी | Patrika Group Editor In Chief Gulab Kothari Special Article On 10th February 2025 Voter Leading | Patrika News
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पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – मतदाता अग्रणी

दिल्ली में सत्ता परिवर्तन के पीछे कई अर्थ छिपे हुए हैं। कुछ प्रकट हैं, कुछ दबे हैं, कुछ दबाए जा रहे हैं। लेकिन स्पष्ट होता जा रहा है कि देश करवट बदल रहा है।

जयपुरFeb 10, 2025 / 08:05 am

Gulab Kothari

गुलाब कोठारी

दिल्ली में सत्ता परिवर्तन के पीछे कई अर्थ छिपे हुए हैं। कुछ प्रकट हैं, कुछ दबे हैं, कुछ दबाए जा रहे हैं। लेकिन स्पष्ट होता जा रहा है कि देश करवट बदल रहा है। भाजपा को दिल्ली में 45.56% मतों के साथ 48 सीटें (40 की बढ़त), आम आदमी पार्टी को 43.57% मतों के साथ 22 सीटें (40 की टूट) और कांग्रेस की हैट्रिक बनी यानी तीसरी बार शून्य मिला। क्या यह केवल राजनीति का गणित है जो अभिव्यक्त हो रहा है? पिछले कई राज्यों के और लोकसभा के चुनाव परिणाम क्या कहते हैं, समझना होगा।
भारत भी विश्व का चैतन्य अंग है। चारों ओर जो हो रहा है, हम भी देख रहे हैं। चारों ओर मार-काट मची हुई है। रूस-यूक्रेन युद्ध एक ओर है, मध्य-पूर्व का युद्ध दूसरी ओर। एक तीसरा युद्ध धर्म के नाम पर चल पड़ा है जो ठहरने का नाम नहीं ले रहा। पूरा यूरोप आज इस युद्ध की आशंका से आतंकित है। हमारे दोनों ओर पाकिस्तान और बांग्लादेश इस आतंक के जीवंत उदाहरण हैं। पिछले कुछ वर्षों में इस आतंक ने भारत में पैर फैलाने शुरू कर दिए हैं। इसमें किसी धर्म का सम्मान शेष नहीं रहा। धर्म के नाम पर जिहाद बन गया है।
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हमारे राजनेता वोटों की खातिर इनके आगे घुटने टेक चुके हैं। वे देश को, महिलाओं की इज्जत-आबरू को बेचने को तैयार हैं। एक ओर जम्मू-कश्मीर में नेताओं ने आतंकियों की घुसपैठ को हवा दी। इनको अपने घरों में छुपाकर रखा। हथियार लाने में मदद की। सूचनाएं भेजने में सहयोग किया। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने खुलेआम अवैध घुसपैठ को स्वयं अपना अभियान बना लिया। पूर्वोत्तर पहले ही आतंकित था। आज करोड़ों अवैध घुसपैठिए देशभर में पसर गए हैं। इन्होंने हमारी रोजी-रोटी-मजदूरी छीन ली। जमीनें कब्जे कर ली। अपराधों ने आसमान छू लिया। बहिन-बेटियां केक की तरह कटने लगीं। कश्मीरी पंडितों को जिस निर्ममता से निकाला था, वह मंजर कौन भूलेगा?
केन्द्र की भाजपा सरकार ने आखिर बीड़ा उठाया। जनता साथ हो गई। कांग्रेस-सपा-आप-तृणमूल-लालू की पार्टी राजद जैसे राजनीतिक दलों की पोल खुलती चली गई। सबसे पहले सरकार ने तीन तलाक के कानून से महिला वर्ग को साथ लिया। अनुच्छेद 370 हटाकर जम्मू-कश्मीर को देश की मुख्य धारा से जोड़ा। पहली बार लोगों ने अनुभव किया कि देश हमारा भी है। सत्ता में बैठे तत्कालीन दलों और पाकिस्तान की जुगलबन्दी का पर्दाफाश हो गया।
धर्म की भाषा का उत्तर, धर्म की भाषा से देने की शुरुआत देश में हो गई। समान नागरिक संहिता लागू करना ही धार्मिक विशेषाधिकार पर बड़ा कदम उठाकर देश के संविधान को प्राथमिकता देने का आह्वान हो गया।
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धर्म के नाम पर अतिक्रमण चिह्नित होने लगे। बिना स्वीकृति के धार्मिक स्थलों के निर्माण ध्वस्त किए जाने लगे।

हत्या-बलात्कार-लव जिहाद के मामलों को अब न तो हल्के में लिया जा रहा, न ही नजरंदाज किया जा रहा। बड़े पैमाने पर अपराधियों की धर-पकड़ ने जनता को आश्वस्त करना शुरू कर दिया। प्रयागराज के महाकुंभ में जन भागीदारी और योगीजी के उद्घोष ने बड़ा चमत्कार कर दिखाया। अपराधियों, समाजकंटकों और धर्म विरोधियों का प्रवेश रोक दिया गया। निश्चित रूप से मेला शान्तिपूर्ण चलने लगा।
धार्मिक बहिष्कार के कदम ने उग्रता दिखाने वाले नेता, अभिनेताओं को कठघरे में खड़ा कर दिया। इस कदम ने वैश्विक स्तर पर आक्रामकता की छवि धूमिल कर दी। देश में होने वाली घटनाओं को यूरोप की घटनाओं से जोड़कर देखा जाने लगा। भारत भी यूरोप जैसी स्थिति का सामना करेगा, स्पष्ट होने लगा था। कुंभ में एक ओर नागा साधुओं की बांग्लादेश के विरोध में प्रतिक्रिया, धर्म विशेष के प्रतिकार के स्वर ने वक्फ बोर्ड के हिमायती नेताओं के हौसले पस्त कर दिए। उनको अपना राजनीतिक भविष्य, व्यावसायिक विकास सब खतरे में दिखाई देने लग गए। इनके तेवर न केवल ठण्डे पड़े, बल्कि इनके घुटने भी टिकने लगे।
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इस बीच अमरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने स्पष्ट घोषणा कर दी कि सभी देश अमरीका की भांति अपराधियों-आतंककारियों को अपने-अपने देश से बाहर निकालें। भारतीय मतदाता अपना भला तो सोचता है, किन्तु देशहित को भी सर्वोपरि मानता है। सारे युद्ध इस तथ्य के साक्षी हैं। पिछले दिनों जितने भी चुनाव हुए, मतदाता देश के सम्मान में अग्रणी दिखाई दिया। राष्ट्रविरोधी-धर्म के नाम पर उच्छृंखल तत्वों को एक ओर सरकाता चला गया। उसने चेहरे देखने बन्द कर दिए। शब्दजाल के बाहर आ गया। निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर कांग्रेस की दिल्ली में हैट्रिक करवा दी। आप पार्टी की विदाई भी इसी अभियान का शंखनाद है।

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