script70th Foundation Day of Patrika: पाठक ही पूंजी | Patrika Group Editor In Chief Gulab Kothari Special Article On 70th Foundation Day Of Patrika On 7th March 2025 Readers Are The Capital | Patrika News
ओपिनियन

70th Foundation Day of Patrika: पाठक ही पूंजी

संस्कारविहीन संतानें कितनी भी हों अंत में आसुरी संपदा ही साबित होती है। राज भी वही करती है, किंतु कठिनाई के समय जनता का साथ नहीं देती।

जयपुरMar 07, 2025 / 10:19 am

Gulab Kothari

गुलाब कोठारी

महर्षि याज्ञवल्क्य ने कहा था कि जो स्त्री उत्तम संतान प्रसव करती है वह राष्ट्र का, विष्णु का कार्य करती है। उसकी रक्षा करना राष्ट्र का धर्म है। उसकी दो प्रकार से देखभाल होनी चाहिए। एक- यह देखना कि जो गर्भवती के शरीर में जाता है- भोजन, वस्त्र, जल, वायु आदि- सब स्वच्छ हो। दो- जो कुछ बाहर जाता है वह भी समयानुसार हो। याज्ञवल्क्य संतान को कितना महत्व देते थे। विष्णु यज्ञ (संगठन) का नाम है। देखभाल करने वाली वैष्णवी (समाज) है।
इस दृष्टि से राजस्थान पत्रिका वह उत्तम संतान है जिसके विकास में समाज का पूरी जागरूकता के साथ सहयोग रहा है। पाठक ही हमारी पूंजी है। आज जब मीडिया ने मुद्रा का रूप ले लिया, सोशल मीडिया तो सत्य रूपी खानदान को बेचकर खाने लगा है, वहीं पत्रिका लोकतंत्र के जागरूक प्रहरी की भूमिका संकल्प की तरह निभा रहा है। गीता के उद्घोष-‘धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे’ का अनुसरण करते हुए-‘परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्’ यज्ञ में अपनी विनम्र आहुतियां जारी रखे हुए है। यही तो पत्रिका के बीज-पुरुष श्रद्धेय बाबूसा. का ध्येय था। गुठली का मधुर रस आम में बना हुआ है। पाठक खाद-पानी के प्रति आज भी उतने ही संवेदनशील हैं, जितने पत्रिका के शैशव काल में थे। नतमस्तक होकर पाठकों का आभार!
यह सच है कि मीडिया सभ्यता के साथ बदलता है। किंतु जहां संस्कृति सुरक्षित रहे, वहीं देश के विकास का प्रतिनिधि बनता है। संस्कारविहीन संतानें कितनी भी हों अंत में आसुरी संपदा ही साबित होती है। राज भी वही करती है, किंतु कठिनाई के समय जनता का साथ नहीं देती। हमारे बागवानों ने सदा हमें मर्यादा में रखा। हर खबर के प्रति जागरूक रहते हैं। हमारे दफ्तर पहुंचने से पहले शिकायतकर्ता पत्रिका लेकर पहुंच जाते थे। वे हमारी विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए तपते थे। आभार!
यह भी पढ़ें

पत्रिका का 70वां स्थापना दिवस: कलम की ताकत और जनता का विश्वास

कभी-कभी उठाईगिरे भी विज्ञापनों के माध्यम से धन बटोरते थे। ऐसे प्रत्येक विज्ञापनदाता के कामकाज का लगातार पीछा करते थे। आज यह भी गर्व का विषय है कि एक ओर तो पाठकों का विश्वास दृढ़ हो गया, वहीं दूसरी ओर विज्ञापनदाताओं को भी पत्रिका के साथ गर्व का अनुभव होता है। ‘जैसी संगत बैठिए तैसोई फलदीन।’ इसी कारण पत्रिका लोकतंत्र का चौथा पाया नहीं है। हर चुनाव में लोकतंत्र को सींचने का कार्य करता रहता है। अच्छे जनप्रतिनिधि चुनने के लिए जागो जनमत-जनप्रहरी जैसे अभियान चलाकर सही प्रतिनिधि चुनने में भूमिका निभाना एवं जनता के सहयोग से अच्छे को चुन लेना। इससे बड़ी दौलत क्या हो सकती है।
सरकारें भी अब पहले जैसे त्वरित निर्णय नहीं लेती। मंत्री कम, अफसरों की भीड़। दोनों की शिक्षा-दीक्षा के बीच बड़ी खाई। सबके अपने-अपने अहंकार और संस्कारों का टकराव। वहां भी देव और असुर उतने ही हैं जितने सृष्टि और समाज में हैं। धन कमाना सबकी प्राथमिकता हो गई। यश किसको चाहिए! सरिस्का में अवैध निर्माण, 700 हैक्टेयर सरकारी जमीन की लूट, संस्कृत विश्वविद्यालय पर प्रशासनिक अतिक्रमण, मास्टर प्लान एवं जलमहल जैसे मुद्दों पर कानून की अवहेलना, राजस्थान सरकार का कांग्रेस के भ्रष्ट मंत्री के पक्ष में गुहार (सर्वोच्च न्यायालय में) आदि कुछ बानगी है नए लोकतंत्र की। पत्रिका लगभग सभी मुद्दों पर दृढ़ता के साथ लोहा ले रहा है। लंका में सब बावन गज के, पत्रिका बहुत छोटा है। गिलहरी की तरह जुटा हुआ है।
पत्रिका को गर्व है कि उसने पाठकों के सहयोग से प्रदेश में जनहित के अनेक मामलों में कीर्तिमान बनाए। अमृतं जलम्, बाढ़ राहत, हरयाळो राजस्थान/हरित प्रदेश, एक मुट्ठी अनाज योजना, काला कानून के विरुद्ध संघर्ष, रामगढ़ बांध के लुटेरों से संघर्ष, पेपरलीक, मादक पदार्थ-बजरी तस्करी, भू-माफिया का आतंक, नकली दवाओं के विरुद्ध अभियान, तेल चोरी के डकैत, सट्टेबाज, महिला अत्याचारों-साइबर ठगों के खिलाफ आदि मुद्दों पर अभियान जारी हैं, आगे भी जारी रहेंगे। जन-जागरूकता प्रशिक्षण कार्य भी जारी रहेंगे।

चुनौती भरा होगा आने वाला कल

बारां जिले में बिजली संयंत्र के लिए एक लाख पेड़ काटने का बा मुद्य पत्रिका की नजीर रहा। जन आंदोलन पूरे आवेश में था। प्रधानमंत्री को पोस्टकार्ड भेजने का सिलसिला शुरू हुआ और अभियान ने योजना को रद्द करवा कर ही छोड़ा। हमारे अधिकारी पत्थरदिल हैं। उनको धन के आगे सब छोटे लगते हैं, इंसान भी। अफसर आज भी बिना जरूरत सड़कें बनाते रहते हैं-कमीशन जो खाना है। खेत उजड़े-गांव उजड़े-पशु-पक्षी मरे, उनकी बला से। देश में मानो फिर से अंग्रेजी राज लौट आया। अब तो मीडिया भी अंग्रेज होता जा रहा है। आने वाला कल चुनौतियों से भरा होगा। डिजिटल मीडिया, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ), और भी न जाने क्या-क्या। धीरे-धीरे आदमी झूठा होता जा रहा है। दूसरों पर तो अंगुली उठाता है। शिक्षा में आदमी का नाम ही नहीं है, विषय मात्र पढ़ाए जा रहे हैं। शिक्षित व्यक्ति संवेदनहीन-संस्कारविहीन होता जा रहा है। शरीर के लिए ही जीने लगा है। पत्रिका रोज सवेरे उसके मन के दरवाजे खोलता रहेगा। उसकी आत्मा को जगाए रखने का प्रयास जारी रखेगा। बीज की सार्थकता यही है कि समाज को उसके फल निरंतर प्राप्त होते रहें। इसे समाज ही हरा-भरा रखे, समाज ही छाया भोगे। शुभम !

Hindi News / Opinion / 70th Foundation Day of Patrika: पाठक ही पूंजी

ट्रेंडिंग वीडियो