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सम्पादकीय : सोशल मीडिया के माध्यम से जासूसी बना नया खतरा

यह बात सही है कि डिजिटल युग में सोशल मीडिया और इंटरनेट ने आम लोगों की जिंदगी को आसान बनाया है लेकिन इसका दुुरुपयोग भी कम नहीं हो रहा।

जयपुरMay 22, 2025 / 01:49 pm

ANUJ SHARMA

भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ से जुड़े करीब 12 संदिग्ध जासूसों को गिरफ्तार किया है। इन गिरफ्तारियों से साफ है कि देश की सुरक्षा को खतरा सिर्फ सीमाओं पर ही नहीं, बल्कि घर के भेदियों से भी है। ऐसे लोग कई राज्यों में रहकर संवेदनशील जानकारियां दुश्मनों तक पहुंचा रहे हैं। चिंता की बात यह है कि अपने इन खतरनाक इरादों को पूरा करने के लिए सोशल मीडिया को ये लोग हथियार के रूप में इस्तेमाल करने लगे हैं।
एक तथ्य यह भी है कि राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त ये लोग किसी खास वर्ग, पृष्ठभूमि या विचारधारा से जुड़े हुए नहीं है, बल्कि इनमें व्यवसायी, यूट्यूबर, विद्यार्थी और मजदूर जैसे आम आदमी शामिल हैं। एजेंसियों की जांच में यह खुलासा हुआ है कि जिन्हें गिरफ्तार किया गया है। वे धन और सुविधाओं के लालच में हमारे यहां की खुफिया जानकारियां एकत्रित कर दूसरे देशों को भेज रहे थे। पहलगाम में आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई के दौरान जब समूचा देश एकजुट होकर सेना के साथ खड़ा था, तब ये लोग मोबाइल ऐप और सोशल मीडिया के जरिए सेना की हलचल और संवेदनशील जानकारियां दुश्मन को मुहैया करा रहे थे। हरियाणा की यूट्यूबर ज्योति रानी मल्होत्रा हो या फिर छात्र देवेंद्र सिंह ढिल्लन, उत्तर प्रदेश का व्यवसायी शहजाद हो या फिर मुर्तजा अली, गजाला और यामिन, ये सभी चेहरे हमारी आम जिंदगी में आसपास होते हैं। ऐसे लोगों से रोज मुलाकात होती है लेकिन इनके खतरनाक इरादों का पता नहीं चल पाता। इस तरह के अलग-अलग पृष्ठभूमि वाले लोगों का दुश्मन के जाल में फंसना खतरे की इस गंभीरता को बताता है कि अब दुश्मन को खास प्रोफाइल वालों की जरूरत नहीं है। वह सिर्फ सैन्य, तकनीकी और रणनीतिक सूचनाएं उपलब्ध कराने वाले लोगों को अपने जाल में फंसा रहा है। इन लोगों पर शिकंजा कसने के लिए सुरक्षा एजेंसियों की तारीफ की जानी चाहिए। जिस तरह से जासूसी की कडिय़ां जुड़ती जा रही हैं, उससे साफ है कि अभी और खुलासा होना बाकी है। यह बात सही है कि डिजिटल युग में सोशल मीडिया और इंटरनेट ने आम लोगों की जिंदगी को आसान बनाया है लेकिन इसका दुुरुपयोग भी कम नहीं हो रहा।
सुरक्षा एजेंसियों के साथ आम नागरिक के रूप में हमारा भी कर्तव्य है कि वे अपने आसपास के लोगों पर नजर रखें और किसी भी तरह की संदिग्ध गतिविधियों की जानकारियां पुलिस या सुरक्षा बलों को दें। अभिव्यक्ति की आजादी और संवेदनशील जानकारियों को सार्वजनिक करने के बीच खींची गई लक्ष्मण रेखा यही है कि किसी भी रूप में देश की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता। जो लोग ऐसा कर रहे हैं, उनको सख्त से सख्त सजा दिलाना और इनके मददगारों को उखाड़ फेंकना जरूरी है। हमें डिजिटल सुरक्षा और जनजागरूकता पर ज्यादा ध्यान देना होगा।

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