तहव्वुर का प्रत्यर्पण: न्याय की ओर निर्णायक कदम
भारत ने आतंकवाद के विरुद्ध अपनी सतत लड़ाई में एक महत्त्वपूर्ण जीत हासिल की है। 26/11 के मुंबई आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा का अमरीका से भारत प्रत्यर्पण एक कानूनी सफलता भर नहीं है, बल्कि यह हमारी उस राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का प्रमाण भी है जिसमें हम न्याय की राह में कोई कसर नहीं […]


भारत ने आतंकवाद के विरुद्ध अपनी सतत लड़ाई में एक महत्त्वपूर्ण जीत हासिल की है। 26/11 के मुंबई आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा का अमरीका से भारत प्रत्यर्पण एक कानूनी सफलता भर नहीं है, बल्कि यह हमारी उस राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का प्रमाण भी है जिसमें हम न्याय की राह में कोई कसर नहीं छोड़ते, चाहे समय कितना भी बीत जाए। हालांकि, राणा का प्रत्यर्पण आसान नहीं था। अमरीका में राणा पहले से ही एक मामले में सजा काट रहा था। भारत ने 2020 में प्रत्यर्पण का अनुरोध किया था। उसके बाद से ही अमरीकी प्रशासन से लंबे संवाद के साथ कूटनीतिक और कानूनी दोनों मोर्चों पर लगातार प्रयास जारी रखे। भारत ने न केवल राणा की संलिप्तता के ठोस प्रमाण प्रस्तुत किए, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि उसके साथ अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप व्यवहार किया जाएगा। इसके बाद, अमरीकी अदालतों में लंबी कानूनी प्रक्रिया चली। राणा ने भारत में निष्पक्ष सुनवाई न होने का तर्क देने के साथ अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रत्यर्पण का विरोध किया। यह मामला अमरीकी न्याय व्यवस्था के विभिन्न स्तरों से गुजरते हुए समय लेता रहा।
तहव्वुर राणा पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक और डेविड कोलमैन हेडली का घनिष्ठ सहयोगी है। हेडली ने मुंबई हमले की रेकी की थी और इस साजिश को साकार करने में राणा ने उसकी मदद की थी। राणा ने अपनी इमीग्रेशन सेवा कंपनी का दुरुपयोग करते हुए हेडली को भारत की यात्रा में सहायता दी, जिससे आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को हमले की साजिश रचने में जमीनी जानकारी मिली। भारत में उसके खिलाफ गंभीर आरोप हैं। मुंबई हमले को दस आतंकियों ने अंजाम दिया था, जिनमें नौ को सुरक्षा बलों ने मार गिराया था और बचे एक कसाब को पकड़ा गया था, जिसे फांसी की सजा हुई। इस हमले में छह अमरीकियों सहित 166 लोग मारे गए थे। मुंबई हमला देश की आत्मा पर हुआ एक ऐसा घातक वार था जिसके जख्म आज भी हमारे सामाजिक मन में हरे हैं। तहव्वुर राणा को भारत लाना केवल एक अभियुक्त को कठघरे में लाना नहीं है, बल्कि यह उन लोगों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रतीक है, जिन्हें हमने उस भयावह रात खो दिया था।
राणा का प्रत्यर्पण न केवल भारत की न्याय व्यवस्था के लिए एक उपलब्धि है, बल्कि यह विश्व समुदाय के लिए भी एक संदेश है कि आतंकवाद के विरुद्ध कोई समझौता नहीं किया जाएगा। यह कदम उस वैश्विक एकजुटता को भी दर्शाता है जो आतंकवाद के खिलाफ आवश्यक है। अमरीका के इस सहयोग से दोनों देशों के रणनीतिक संबंधों में भरोसा और मजबूत होगा। अब जबकि तहव्वुर राणा भारत की न्यायिक प्रक्रिया के अधीन है, यह जरूरी होगा कि उसके खिलाफ मुकदमा पारदर्शिता और निष्पक्षता से चलाया जाए। यह भारत की न्याय प्रणाली के प्रति विश्वास को और मजबूत करेगा। साथ ही, उन पीडि़त परिवारों के लिए ढांढस बढ़ाने वाला भी है, जिन्हें उस आतंकी हमले ने अपूरणीय क्षति पहुंचाई।
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