scriptधीरे-धीरे, लेकिन व्यापक रूप ले रहा मृदा क्षरण का ‘मौन संकट’ | The 'silent crisis' of soil degradation is taking a slow but widespread form | Patrika News
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धीरे-धीरे, लेकिन व्यापक रूप ले रहा मृदा क्षरण का ‘मौन संकट’

वनों की कटाई रोकना और अधिक से अधिक पेड़ लगाना भी महत्त्वपूर्ण है। संवहनीय कृषि में फसल चक्रीकरण और मिश्रित फसल प्रणाली को बढ़ावा दिया जाए। इससे मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है। सरकार को मृदा संरक्षण के लिए कड़े कानून बनाने चाहिए। किसानों को मृदा संरक्षण तकनीकों के लिए प्रोत्साहन और सब्सिडी दी जानी चाहिए।

जयपुरNov 22, 2024 / 09:23 pm

Gyan Chand Patni

डॉ. रिपुन्जय सिंह सदस्य, राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड
मृ दा (मिट्टी) हमारी धरती का सबसे महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। यह खाद्य उत्पादन, पारिस्थितिकी तंत्र संतुलन और जलवायु स्थिरता का आधार है, पर आज मृदा क्षरण एक गंभीर संकट बन चुका है। यह न केवल खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करता है, बल्कि जलवायु परिवर्तन की समस्या को और अधिक जटिल बनाता है। इस संकट को ‘मौन संकट’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह धीरे-धीरे, मगर व्यापक रूप से हो रहा है, जिससे इसके परिणामों पर तत्काल ध्यान देना आवश्यक हो गया है। मृदा क्षरण का तात्पर्य मिट्टी की गुणवत्ता, संरचना और उत्पादकता में गिरावट से है। यह समस्या मुख्य रूप से अत्यधिक कृषि, रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग, वनों की कटाई, बाढ़ व कटाव और जलवायु परिवर्तन आदि कारणों से उत्पन्न होती है। भारतीय कृषि का मुख्य आधार मृदा (मिट्टी) है, जो हमारी खाद्य उत्पादन प्रणाली की रीढ़ मानी जाती है। आज मृदा क्षरण का संकट न केवल कृषि उत्पादकता को प्रभावित कर रहा है, बल्कि जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकी तंत्र को भी बाधित कर रहा है। राष्ट्रीय मृदा और जल संरक्षण बोर्ड के अनुसार, भारत की लगभग 120 मिलियन हेक्टेयर भूमि मृदा क्षरण से प्रभावित है। मिट्टी के कटाव, लवणता, अम्लीयता और जलभराव जैसे विभिन्न कारकों के कारण कृषि भूमि की उत्पादकता में कमी आ रही है। मिट्टी की उर्वरता में कमी के कारण फसलों की उपज घटती है। यह खाद्यान्न संकट को जन्म दे सकता है, खासकर भारत जैसे विकासशील देश में जहां पहले से ही कुपोषण एक गंभीर समस्या है।
मृदा क्षरण के प्रमुख कारणों में वनों की कटाई शामिल है जिसकी वजह है तीव्र शहरीकरण और औद्योगिकीकरण। वनस्पति हटने से मिट्टी की ऊपरी परत कमजोर हो जाती है और यह वर्षा और हवा के कारण कटाव का शिकार हो जाती है। भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण खाद्यान्न उत्पादन की मांग बढ़ रही है और लगातार एक ही तरह की फसल उगाने से मिट्टी के पोषक तत्व समाप्त हो जाते हैं। मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग से मृदा में उपस्थित सूक्ष्मजीव और जैविक पदार्थ नष्ट हो जाते हैं। मृदा की गुणवत्ता में गिरावट के कारण फसलों की उत्पादकता कम हो रही है। यह भारत की बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्य सुरक्षा के गंभीर संकट का कारण बन सकता है। मृदा क्षरण के कारण जल का अवशोषण करने की मिट्टी की क्षमता घट जाती है। इससे भूजल स्तर में गिरावट और सूखे की समस्या बढ़ रही है। मृदा क्षरण रोकने के लिए रसायनों की जगह जैविक खाद और कम्पोस्ट का उपयोग किया जाना चाहिए। इससे मृदा की प्राकृतिक उर्वरता और संरचना को बनाए रखा जा सकता है।
वनों की कटाई रोकना और अधिक से अधिक पेड़ लगाना भी महत्त्वपूर्ण है। संवहनीय कृषि में फसल चक्रीकरण और मिश्रित फसल प्रणाली को बढ़ावा दिया जाए। इससे मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है। सरकार को मृदा संरक्षण के लिए कड़े कानून बनाने चाहिए। किसानों को मृदा संरक्षण तकनीकों के लिए प्रोत्साहन और सब्सिडी दी जानी चाहिए। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का भी एक उद्देश्य जल संरक्षण और मृदा क्षरण रोकना है। राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना भी अच्छी पहल है जिससे किसानों को मिट्टी के स्वास्थ्य के बारे में सही जानकारी मिलती है। इससे किसानों को फसल और उर्वरक के सही चयन में मदद मिलती है। मृदा क्षरण एक गंभीर समस्या का रूप ले चुका है, जो खाद्य सुरक्षा और जलवायु स्थिरता दोनों को खतरे में डाल रहा है। यह समस्या केवल किसानों की नहीं, बल्कि पूरे समाज की है। यदि समय रहते इस समस्या को नहीं सुलझाया गया, तो यह कृषि, पर्यावरण और देश की आर्थिक स्थिति पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। इस संकट से उबरने के लिए यह बेहद जरूरी है कि सरकार, समाज और व्यक्तिगत स्तर पर ठोस प्रयास किए जाएं।

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