scriptखुशहाली का मानक ‘सकल घरेलू उत्पाद’ नहीं, ‘सकल राष्ट्रीय खुशी’ | The standard of happiness is not 'Gross Domestic Product' but 'Gross National Happiness' | Patrika News
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खुशहाली का मानक ‘सकल घरेलू उत्पाद’ नहीं, ‘सकल राष्ट्रीय खुशी’

— विनोद यादव
(शिक्षाविद् एवं इतिहासकार)

जयपुरMay 06, 2025 / 12:50 pm

विकास माथुर

यू एन की वल्र्ड हैप्पीनेस इंडेक्स रिपोर्ट-2025 में दुनिया के 147 देशों को शामिल किया गया। कोविड के बाद दुनिया में लगातार आठवीं बार उत्तरी यूरोप के देश फिनलैंड को सबसे खुशहाल देश चुना गया। हमारा देश इस लिस्ट में 118वें नंबर पर रहा। मशहूर आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा कहते हैं, ‘हरेक शख्स अपने जीवन में खुशी चाहता है। मनुष्य जीवन का मकसद ही खुश रहना है। लेकिन रोजमर्रा की भागदौड़ में हम अपने लिए एक घंटा भी नहीं निकाल पाते और आखिरकार खुशी के अहसास से वंचित रह जाते हैं।’
दलाई लामा का कहना है कि मन की शांति और खुशी सिक्के के दो पहलू हैं यानी एक दूसरे के पूरक हैं। साइकोलॉजिस्ट कहते हैं कि हमारे देश में लोग आपसी बर्ताव में पारदर्शिता के बजाय बौद्धिक चतुराई का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। इसके उलट फिनलैंड के लोग आपसी व्यवहार में ईमानदारी बरतते हैं। उनकी खुशी शांति, संतोष और सोशल सिक्योरिटी पर आधारित है। यहां के लोगों का क्षमाशीलता में अटूट भरोसा है। असल में क्षमाशीलता ऐसा गुण है, जिसके व्यावहारिक इस्तेमाल से दिल में लंबे वक्त तक ठहरने वाली खुशी का अहसास होता है।
जब हम दूसरों की खुशी के लिए अपनी शर्तें बदल देते हैं तो हमारे दिल में शांति और खुशी स्वाभाविक रूप से पैदा होती है। आमतौर पर कुछ संगोष्ठियों में भी यह सवाल उठता है क्या खुशियां धन-दौलत से खरीदी जा सकती हैं या उन्हें हासिल करने का कोई और फॉर्मूला है? गौरतलब है कि दुनिया में यदि खुशियों को दौलत से तौला जा सकता तो सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ‘एप्पल’ का विशाल साम्राज्य स्थापित करने वाले स्टीव जॉब्स अपने आखिरी दिनों में ‘डेथ बेड’ से यह नहीं कहते कि पूरी जिंदगी इस बेशुमार दौलत को अर्जित करने के लिए मैंने कड़ी मेहनत की, व्यापार-जगत की नई बुलंदियों को छुआ, किंतु खुद को संतुष्ट करने के लिए यानी अपने लिए समय निकालना जरूरी नहीं समझा।
दरअसल, खुशी का संबंध इससे नहीं है कि हमारे पास बहुत-से भौतिक संसाधन हैं या अथाह दौलत है, बल्कि इसका संबंध हमारे अंतर्मन की स्थिति से है। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर्स ने ‘हैप्पीनेस’ के मानकों को निर्धारित करने के लिए रिसर्च वर्क किया और इस रिसर्च का निष्कर्ष यह निकलकर आया कि आर्थिक समृद्धि की अपेक्षा व्यक्ति की खुशियां उसकी मनोदशा के भावनात्मक बदलाव पर अधिक निर्भर करती हैं। जरूरी नहीं है कि किसी व्यक्ति की जेब रुपयों से भरी हो और वह खुश भी हो। यह भी जरूरी नहीं है कि धनकुबेरों से भरा देश अमीर होने के बावजूद खुशहाल भी हो।
अब अमरीका को ही लें तो खुशहाली के लिहाज से उसका रिकॉर्ड इतना अच्छा नहीं है। अमरीका में सिर्फ आर्थिक विकास पर ही ध्यान दिया जाता है, लेकिन खुश रहने के लिए यह पर्याप्त नहीं है। किसी भी देश की खुशहाली मापने के लिए आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा, पारस्परिक सहिष्णुता, उदार राष्ट्रवादी-चिंतन, शिक्षा की गुणवत्ता जैसे कारकों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। आमतौर पर दुनिया में किसी भी देश की खुशहाली मापने का पैमाना जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर तय किया जाता है। जबकि भूटान दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जिसने जीडीपी के पीछे भागती-दौड़ती दुनिया को बतलाया कि खुशहाली का मानक ‘सकल घरेलू उत्पाद’ नहीं बल्कि ‘सकल राष्ट्रीय खुशी’ है।
हम खुश रहना इसलिए भूल गए हैं, क्योंकि हम अपनी खुशी को किसी दूसरे पर निर्भर रखते हैं। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एवं वल्र्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट के सह-संपादक जॉन हैलीवेल का कहना है कि किसी भी देश के नागरिकों का आपसी भरोसा, उदारवादी सोच और मददगार होने का खुशी से सीधा जुड़ाव है। फिनलैंड और भूटान के लोगों में ये तमाम गुण दूसरे देशों की तुलना में ज्यादा मिलते हैं। फिनलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ हेलसिंकी के साइकोलॉजिस्ट भी इस बात से सहमत हैं कि खुशी के लिए आपसी भरोसा, दूसरे के हितों को तरजीह देना और उदारता सबसे अहम है।

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