इस बार महाकुंभ में एक अलग दुनिया का अहसास
प्रयागराज मेला प्राधिकरण के अनुसार, कुंभ में भाग लेने के लिए आने वालों के लिए अस्थायी नगरी का निर्माण किया जा चुका है। इस बार यहां एक अलग दुनिया का अहसास होगा। इस महाकुंभ नगर में बहुत ही मनोहारी दृश्य दिखाई देने वाले हैं, जो श्रद्धालुओं को दिव्यता से भर देंगे।
मेला क्षेत्र में प्रवेश करते ही 14 रत्नों का होगा दर्शन
सबसे पहले मेला क्षेत्र में प्रवेश करते ही पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकलने वाले 14 रत्नों का दर्शन होगा। इसके बाद नंदी द्वार और भोले भंडारी का विशालकाय डमरू नजर आएगा। इसी के साथ समुद्र मंथन द्वार और कच्छप द्वार समेत 30 विशेष तोरण द्वार श्रद्धालुओं को देवलोक की अनुभूति कराएंगे। यहां रहने के लिए मेला प्राधिकरण ने टेंट सिटी का निर्माण किया है। करीब 1.50 लाख टेंट में श्रद्धालुओं के रहने की व्यवस्था की गई है। साथ ही लग्जरी आवास भी तैयार किए गए हैं।
कैसे पड़ा ‘कुंभ’ का नाम
बता दें कि ‘कुंभ’ मूल शब्द ‘कुंभक’ (अमृत का पवित्र घड़ा) से आया है। ऋग्वेद में ‘कुंभ’ और उससे जुड़े स्नान अनुष्ठान का उल्लेख है। महाकुंभ की उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी है। जिसके अनुसार, देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। इस मंथन के दौरान अमृत से भरा कलश निकला था। इसके पीछे मान्यता है कि इस अमृत को जो भी पीएगा, वह अमर हो जाएगा। ऐसे में इसे पीने के लिए देवताओं और दानवों के बीच युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में अमृत कलश कई बार आसमान में उड़ गया और उसकी कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरीं। वह स्थान हैं – हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक। मान्यता है कि जिन स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं, वो स्थान पवित्र हो गए। इन स्थानों पर स्नान का धार्मिक महत्त्व है।
हेल्पलाइन नंबर पर पाए सभी जानकारी
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