‘ज्योतिष को वेदों का निर्मल नेत्र कहा गया’
आचार्य अनिल वत्स ने एक निजी चैनल द्वारा आयोजित ज्योतिष महाकुंभ में बताया कि ज्योतिष को वेदों का निर्मल नेत्र कहा गया है, क्योंकि यह वह विज्ञान है जो अंधकार को मिटा कर सत्य और असत्य के बीच का भेद स्पष्ट करता है। यह शुभ-अशुभ और पाप-पुण्य का बोध कराते हुए जीवन को सही दिशा प्रदान करता है।
‘27 तत्वों से बना है मानव शरीर’
उन्होंने आगे कहा, “हर जीव, जब शरीर धारण करता है, तब वह 27 तत्वों से निर्मित होता है। मृत्यु के समय इनमें से 10 तत्व—पंचतत्व और पंचप्राण—छिन जाते हैं, जबकि शेष 17 तत्व यह तय करते हैं कि उस जीव के माता-पिता कौन होंगे। इन 17 तत्वों से बना सूक्ष्म जीव मां के गर्भ में आता है, और यहीं से पिछले जन्मों की यात्रा के रहस्यों की कहानी शुरू होती है।” आचार्य अनिल वत्स ने बताया, “थॉमस अल्वा एडिसन जैसे महान वैज्ञानिक भी अपने आविष्कारों को अपने साथ नहीं ले जा सके। यही बात यह साबित करती है कि हमारे कर्म और उनकी यात्रा यहीं रह जाती है। ऐसे में ज्योतिष का महत्व बढ़ जाता है। ज्योतिष न केवल हमारे जीवन के रहस्यों को उजागर करता है, बल्कि यह पिछले जन्मों की याद दिलाने वाला एक महाग्रंथ भी है।”
‘नक्षत्रों के पास होता है कर्मों का लेखा-जोखा’
आचार्य अनिल वत्स का कहना है कि जब कोई व्यक्ति अपना शरीर त्यागता है, तो उसका पूरा डेटा नक्षत्रों में दर्ज हो जाता है। नक्षत्र न केवल इस जन्म के कर्मों का हिसाब रखते हैं, बल्कि पिछले जन्मों के कर्मों का लेखा-जोखा भी उनके पास होता है।