नया मामला यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) के नियमों में बदलाव का है, जिसका मसौदा सामने आने पर न सिर्फ शिक्षाविदों बल्कि, राजनीतिक दलों में घमासान मच गया है। दुर्भाग्यवश इसका समर्थन और विरोध भी राजनीतिक सुविधा के आधार पर हो रहा है। यूजीसी के नए मसौदे में कुलाधिपति, जो राज्यपाल ही होते हैं, को राज्य विश्वविद्यालयों की नियुक्ति में ज्यादा अधिकार देने की वकालत की गई । चूंकि राज्यपाल केंद्र सरकार का प्रतिनिधि होता है, इसलिए राज्यों को डर है कि उसके माध्यम से केंद्र सरकार मनमानी करेगी और राजनीतिक नफा-नुकसान में राज्य की सत्ता पर आसीन दल का समीकरण गड़बड़ा जाएगा। मसौदे में शिक्षाविदों के अतिरिक्त उद्योग जगत और सार्वजनिक क्षेत्र की हस्तियों को कुलपति नियुक्त करने के प्रावधान का भी प्रस्ताव है।
विश्वविद्यालय विकास का वैचारिक आधार प्रदान करते हैं। इसे हर तरह के आग्रहों से मुक्त रखना अकादमिक स्वतंत्रता की पहली शर्त है। राजनीति करना और इसके दुराग्रहों से मुक्त होना भी हम यहीं सीखते हैं। यहां राजनीति न हो यह आग्रह भी उतना ही गलत होगा जितना यह कि इसे राजनीति का अड्डा ही बना दिया जाए। इसलिए सभी पक्षों को आग्रहों-दुराग्रहों से मुक्त होकर कदम उठाने होंगे।