विवाद ये कि इस जांच के दौरान गर्भ में पल रहा भ्रूण मेल है या फिमेल, ये पता चल जाएगा। प्रदेश में सिकलसेल की रोकथाम के लिए स्कूलों में स्क्रीनिंग की जा रही है, लेकिन यह भी नियमित नहीं है। एक्सीलेंस ऑफ सिकलसेल सेंटर का निर्माण भी अभी तक पूरा नहीं हुआ है।
CG News: आधुनिक दवाइयों से मिल रही है असहनीय दर्द से बड़ी राहत
सिकलसेल से करीब 36 लाख आबादी प्रभावित है। जाति विशेष के 2.25 लाख लोग तो मरीज हैं। वाहक से मतलब है कि उन्हें खास स्वास्थ्यगत परेशानी नहीं आती, लेकिन शादी के दौरान वाहक-वाहक के मिलने से वाहक व सिकलसेल से संक्रमित बच्चा पैदा हो सकता है। इसलिए डॉक्टरों का कहना है कि शादी के पहले कुंडली मिलान से ज्यादा जरूरी सिकलसेल की जांच है। कुछ समाज में सिकलसेल जांच कराने के बाद शादी करवाई जा रही है।
करोड़ों का फंड भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा, आरोपी डॉक्टर पर कार्रवाई नहीं
पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज परिसर में सिकलसेल संस्थान की पहचान भ्रष्ट संस्थान के रूप में है। करोड़ों रुपए का फंड आने के बावजूद सिकलसेल को रोकने के लिए ठोस उपाय नहीं किया गया है। 1.65 करोड़ रुपए के घोटाले में जांच में एक सीनियर डॉक्टर पर आरोप साबित हो चुका है, लेकिन डीएमई कार्यालय की अनुशंसा के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई। बताया जाता है कि डॉक्टर का रिश्तेदार एक अन्य राज्य में
आईएएस है इसलिए कार्रवाई अटक गई है। बिना कार्रवाई का सामना किए उक्त डॉक्टर 30 जून को रिटायर भी हो जाएंगे। सिकलसेल का बोन मेरो ट्रांसप्लांट व स्टेमसेल से इलाज संभव है। बोन मेरो ट्रांसप्लांट की सुविधा केवल तीन निजी अस्पतालों में है। जबकि स्टेमसेल लैब नेहरू मेडिकल कॉलेज में है, लेकिन यह केवल सफेद हाथी साबित हो रहा है।
सिकलसेल के लक्षण इस तरह
शरीर में बार-बार दर्द होना खून की कमी यानी एनीमिया थकान, पीलापन व कमजोरी पीलिया, त्वचा और आंखों में पीलापन हाथ व पैरों में दर्दनाक सूजन छाती में तेज दर्द सांस लेने में तकलीफ ब्लड में ऑक्सीजन की कमी
बीमारी जेनेटिक, रुकने के बजाय बढ़ती जा रही
आधुनिक दवाइयों से मरीजों को असहनीय दर्द से बड़ी राहत मिल रही है। मरीजों को बार-बार खून चढ़ाने की भी जरूरत पड़ती है। इसलिए ऐसे मरीजों को फ्री में ब्लड दिया जा रहा है। सीनियर पीडियाट्रिशियन डॉ. शारजा फुलझेले व ब्लड रोग व बोन मेरो ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ डॉ. विकास गोयल के अनुसार सिकलसेल लाइलाज है, लेकिन दवाइयों से मरीजों को मैनेज किया जा रहा है। मरीजों को कई तरह की शारीरिक व मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इनमें दर्द, थकान, संक्रमण का खतरा व विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचने की आशंका रहती है। एडवांस दवाइयों से ये परेशानी कम हो जाती है। बीमारी जेनेटिक है और रुकने के बजाय बढ़ती जा रही है। प्रदेश के 10 जिलों रायपुर, नारायणपुर, महासमुंद, धमतरी, राजनांदगांव, दुर्ग, गरियाबंद, जांजगीर-चांपा, बालोद, बलौदाबाजार जिले में सबसे ज्यादा मरीज हैं। मेडिकल कॉलेज में सिकलसेल मरीजों की जांच फ्री की जा रही है। साथ ही इलाज भी मुफ्त में हो रहा है। यही नहीं उन्हें ट्रेन में आने-जाने के लिए फ्री पास भी मिलता है। उनके साथ एक सहयोगी भी जा सकता है। 2018 से दिव्यांग सर्टिफिकेट भी बनने लगा है। यह सर्टिफिकेट जिला अस्पताल का मेडिकल बोर्ड बनाता है।