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CG High Court: पॉवर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से भी लड़ा जा सकता है मुकदमा, हाईकोर्ट ने दिया आदेश चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की बेंच ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि यह टेंडर जारी करने वाली प्राधिकृत संस्था का अधिकार है कि वह अपनी आवश्यकता के अनुसार शर्तें निर्धारित करे। लेकिन वे शर्तें ऐसी नहीं होनी चाहिए जो मनमानी या अव्यवहारिक हों और इच्छुक निविदाकारों की भागीदारी को सीमित कर दें।
यह है मामला मेसर्स जय अंबे इमरजेंसी सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड द्वारा हाईकोर्ट में 2 याचिकाएं दायर की गई थीं। याचिकाओं में ‘108 संजीवनी एक्सप्रेस एंबुलेंस सेवा’ और ‘हाट बाजार क्लीनिक योजना’ के तहत मोबाइल मेडिकल यूनिट्स से संबंधित टेंडरों की शर्तों को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता पहले भी छत्तीसगढ़ में 108 सेवा संचालन कर चुका है। लेकिन उसको मध्यप्रदेश पुलिस द्वारा 2022 में एक असंबंधित परियोजना के संबंध में जारी ब्लैकलिस्टिंग आदेश के आधार पर नए टेंडर में भाग लेने से अयोग्य ठहराया गया, जबकि उक्त आदेश की अवधि समाप्त हो चुकी थी। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि ‘कभी ब्लैकलिस्ट नहीं किया गया’ ऐसा शपथपत्र देना एक अटपटी और अव्यावहारिक शर्त है, जिससे ऐसे सभी निविदाकार, जिनकी ब्लैकलिस्टिंग समाप्त हो चुकी है, टेंडर प्रक्रिया से स्वतः बाहर हो जाते हैं।
सरकार को शर्तें तय करने का अधिकार, पर मनमानी न हो सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय का उल्लेख करते हुए कहा कि सार्वजनिक प्राधिकरणों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि निविदा प्रक्रिया के दौरान किसी भी प्रकार की पक्षपात, पूर्वाग्रह या मनमानी न हो और पूरी प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी तरीके से संचालित हो। शपथपत्र से संबंधित शर्त पर न्यायालय ने कहा -यदि कोई निविदाकार पूर्व में कभी भी ब्लैकलिस्ट किया गया है, तो वह यह हलफनामा नहीं दे सकता कि उसे कभी ब्लैकलिस्ट नहीं किया गया, जिसका परिणाम यह होगा कि वह निविदा में भाग ही नहीं ले सकता।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी निविदाकार को पूर्व में ब्लैकलिस्ट किया गया है और ब्लैकलिस्टिंग की अवधि समाप्त हो चुकी है, तो वह अन्य सभी शर्तें पूरी करने की स्थिति में निविदा प्रक्रिया में भाग ले सकता है।”इसके साथ ही दोनों याचिकाएं निराकृत कर दी गईं।